

हम सभी जानते हैं कि एक लम्बी गुलामी, कठोर संघर्ष एवं ऐतिहासिक बलिदान के बाद भारत को केवल आजादी ही नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत का स्वतंत्र संविधान प्राप्त हुआ था। वास्तव में संविधान निर्माण की प्रक्रिया आजादी के पूर्व ही 1946 में प्रारंभ हो गई थी। संविधान निर्माञी सभा के लिए 292 सदस्यों का चुनाव प्रांतों से वयस्क मताधिकार द्वारा तथा 93 सदस्य रियासतों से थे। भारत विभाजन की स्थिति में यह संख्या 229 सदस्य चुनाव से तथा 70 सदस्य मनोनीत अर्थात 299 सदस्यों की संविधान निर्माञी सभा ने संविधान को 1949 में पूर्ण किया। संविधान निर्माण के लिए जिन 22 समितियों को भिन्न-भिन्न भागों में बांट कर जिम्मेवारी दी गई थी। उसमें 8 समितियां विशेष जिसमें एक “प्रारूप समिति” महत्वपूर्ण भूमिका में थीं। जिसके अध्यक्ष जाने माने सुविज्ञ, उच्च शिक्षा प्राप्त बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर थे। जिन्होंने 25 नवम्बर 1949 को संविधान की अंतिम रूप रेखा संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा। 26 नवम्बर 1949 को सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किया -26-जनवरी 1950 से स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ । अभी संविधान लागू हुए महज तीन वर्ष ही हुए थे कि संसद के प्रथम सदन/उच्च सदन (राज्यसभा) में जोरदार बहस के दौरान ( 2 सितंबर 1953 में) डॉ अम्बेडकर ने आवेश में आकर कहा कि – मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि संविधान मैंने बनाया है। मैं बताना चाहता हूं कि इसको जलाने वाला पहला इंसान भी मैं हीं होऊंगा। यह किसी के लिए भी ठीक नहीं है। कई लोग इसे लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं……..। दो वर्ष बाद -19 मार्च 1955 को चौथे संसोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान पंजाब के एक सांसद डॉ अनूप सिंह ने सवाल पुछा था कि – पिछली बार आखिर क्यों यह बयान दिया था? तब डॉ अम्बेडकर ने बेवाकी से कहा कि पिछली बार जल्दबाजी में पुरा जबाब नहीं नहीं दे पाए थे-उन्होने कहा – मैंने यह एकदम सोंच समक्षकर कहा था कि संविधान को जला देना चाहता हूं। आगे बाबा साहब ने कहा कि- -हमलोग मंदिर इसलिए बनाते हैं, जिससे भगवान आकर उसमें रहें, अगर भगवान से पहले ही दानव आकर रहने लगे तो मंदिर को नष्ट करने के सिवा और कोई रास्ता ही क्या बचेगा। कोई यह सोचकर तो मंदिर बनाता नहीं है कि उसमें असुर रहने लगें। सब चाहते हैं कि मंदिर में देवों का निवास हो। यही कारण है कि- संविधान जलाने की बात कही थी। वास्तव में बाबा साहब का मानना था कि कोई भी संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो,जब तक इसे ढंग से लागू नहीं किया जाएगा तो उपयोगी साबित नहीं होगा। प्रो. अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा कि डॉ भीमराव अंबेडकर जिस सामाजिक आर्थिक विषमता को लेकर चिंतित थे,- वह खाई घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। हम एक दूसरे के करीब आने के बजाय दूर होते जा रहे हैं। जिसे राष्ट्रीय हित में दुर किया जाना ही बाबा साहब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जिस ब्यवस्था में सामाजिक आर्थिक विषमता को दूर करने के बजाय उसे और भी पुष्ट किया जाएगा वहां भुखमरी, कंगाली विपन्नता राष्ट्रीय प्रगति में बाधक होगा ही होगा। जहां भारतीय ब्यवस्था के बजाय पाश्चात्य संस्कृति सभ्यता का अंधानुकरण करने की होड़ लगी हो वहां आत्म सम्मान स्वाभिमान का लोप होना स्वाभाविक है। ऐसे में हमें अपने उपर सकारात्मक ऊर्जा को प्रभावी करने का सुअवसर प्राप्त करने हेतु,सुगम सरल मार्ग चुनना ही होगा — यही बाबा साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
लेखक परिचय
प्रोफेसर (कैप्टन)अखिलेश्वर शुक्ला, पूर्व प्राचार्य/विभागाध्यक्ष -राजनीति विज्ञान, राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर – 222001. सम्पर्क -9451336363.
