इस वर्ष दीपावली की तिथि और मुहूर्त को लेकर संशय की स्थिति, क्या है इसके पीछे का कारण आइए जानते हैं

आजकल अक्सर देखने को मिलता है कि हमारे सनातनी पर्व 2 दिन मनाये जाते हैं। कभी मुहूर्त दोपहर बाद का निकलता है तो कभी शाम का। ऐसे में कई लोगों के विचार में यह बात आती है कि हमारे पर्व दो दो दिन क्यों मनाये जा रहे हैं? अधिकांश लोग इसके कारण से अनभिज्ञ है तो आइये इसका कारण जानते हैं

भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाले कई पन्थ प्रचलन में हैं. इनमें सबसे बड़ी संख्या वैदिक-पौराणिक पन्थ के अनुयायियों की है. वस्तुतः यही भारत की प्राचीनतम धारा है. इसी कारण हम हिन्दू कहते ही उसका अर्थ वैदिक-पौराणिक पन्थ के रूप में ही लगाते हैं.

आज का पौराणिक पन्थ वस्तुतः कई पन्थों के समायोजन से बना है. इनमें मुख्यतः शैव, शाक्त, वैष्णव और स्मार्त हैं. ये पन्थ आपस में इस प्रकार समरस हो चुके हैं कि हर व्यक्ति अब एक साथ चारों पन्थों का अनुयायी है. किन्तु किसी समय शैव, शाक्त और वैष्णव पन्थ सर्वथा पृथक पन्थ होते थे. स्मार्त पन्थ का प्रचलन जगद्गुरु आदि शंकराचार्य से बढ़ा है जिसमें मुख्यतः पाँच देवताओं (गणेश, शिव, विष्णु, शक्ति तथा सूर्य) की उपासना की जाती है. शेष पन्थों के विषय में नाम से ही स्पष्ट है – शैव शिव की उपासना करते हैं, शाक्त शक्ति की और वैष्णव विष्णु की.

अब बात करते हैं तिथियों की और वारों की. तिथियाँ चन्द्रमा की गति पर निर्भर हैं और प्रत्येक तिथि का मान घण्टों में नापने पर सामान न होकर भिन्न होता है. वार पृथ्वी के द्वारा अपनी धुरी पर घूर्णन पर निर्भर हैं और सूर्योदय से सूर्योदय तक चलते हैं. प्रत्येक तिथि किसी वार के बीच से प्रारम्भ होकर अगले वार के बीच कहीं समाप्त होती है. अतः हम कह सकते हैं कि हरेक तिथि दो वारों में फैली होती है.

वैष्णव परम्परा में उदया तिथि मानने का प्रचलन है. उदहारण के लिए कोई तिथि सोमवार को दोपहर प्रारम्भ हो गई और मंगल दोपहर तक चली तो वह तिथि मंगल को मानी जाएगी और उस तिथि से सम्बन्धित पर्व का पालन मंगलवार को किया जायेगा. इसके विपरीत स्मार्त परम्परा में तिथि के मुहूर्त को माना जाता है और यदि उस तिथि से सम्बन्धित पर्व का मुहूर्त सोमवार को पड़ता है तो उस पर्व को सोमवार को ही मनाया जाता है.

अब इस बार धनतेरस, छोटी दिवाली और दीपावली की बात लें. अमान्त आश्विन (पूर्णिमान्त कार्तिक) मास की त्रयोदशी को धनतेरस मनाई जाती है. यह अंग्रेजी 22 अक्टूबर को प्रारम्भ हुई और 23 अक्टूबर संध्या 06:03 तक रहेगी. स्मार्त परम्परा से 22 अक्टूबर को धनतेरस हुई, वैष्णव परम्परा से 23 अक्टूबर को.

चतुर्दशी 23 अक्टूबर संध्या 06:03 से 24 अक्टूबर संध्या 05:27 तक रहेगी. स्मार्त परम्परा से नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली 23 अक्टूबर को मनाई जा रही है, वैष्णव परम्परा से 24 अक्टूबर को.

अमावस्या 24 अक्टूबर को संध्या 05:27 से प्रारम्भ होकर 25 अक्टूबर अपराह्न 04:18 तक रहेगी. दीपावली रात्रि का पर्व है. स्मार्त परम्परा से इसे 24 अक्टूबर को मनाया जायेगा. वैष्णव परम्परा से इसे 25 को मनाना चाहिए किन्तु इस वर्ष 25 को अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण है. ग्रहण में शुभ कार्य नहीं किये जाते. अतः वैष्णव भी इस वर्ष 24 अक्टूबर को ही दीपावली मनाएंगे.

वैसे आप क्या हैं – स्मार्त या वैष्णव? नहीं पता? यही अच्छी बात है. पौराणिक हिन्दुओं ने अपनी अपनी पन्थ की पहचान को अपनी राष्ट्रीय पहचान ‘हिन्दू’ में घोल कर समाप्त कर दिया है. उन्हें तो यह भी नहीं पाता कि वे हिन्दुओं में पौराणिक पन्थी हैं. पौराणिक हिन्दू इतनी महीन बातों में नहीं उलझते और प्रत्येक समस्या का व्यावहारिक समाधान ढूँढ लेते हैं. ऐसा ही अन्य हिन्दू पन्थों के लोग भी कर पाते तो भारत की राष्ट्रीयता और प्रखर होती और इस राष्ट्र के लिए शुभ होता।

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