ग्रामीण किसान का बेटा बना एमबीबीएस डॉक्टर ,यूक्रेन से मेडिकल डिग्री हासिल करने के बाद पास की भारत में भी कठिन परीक्षा

आकाश दत्त मिश्रा

भले ही इस दौर में मेडिकल की डिग्री हासिल करना चर्चा का विषय ना हो, लेकिन यह विषय चर्चा का तब बन जाता है जब ग्रामीण गरीब किसान का बेटा एमबीबीएस डॉक्टर बन जाता है। वह भी तब जब विपरीत परिस्थितियों में, हिंदी माध्यम में पढ़ा बच्चा विदेश से डिग्री लेकर आता है। ऐसी ही कुछ उपलब्धि हासिल की है कवर्धा जिले के ग्राम नवागांव मुसउ वार्ड नंबर 8 निवासी चैतराम चंद्राकर के बड़े बेटे शंभू राम चंद्राकार ने। आम धारणा है कि विदेश से, खासकर यूक्रेन से मेडिकल की डिग्री हासिल करना आसान है, जहां पेड सीट से कोई भी डॉक्टर बन सकता है, लेकिन गांव के हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़ाई करने वाले उस किसान के बेटे के लिए यह कतई आसान नहीं था जिनका परिवार विदेश तो क्या गांव से बाहर भी इतनी बार गया है जो उंगली पर गिनी जा सके।

एक छोटे से पिछड़े हुए गांव नवागांव मुसउ में रहने वाले किसान के बेटे की पढ़ाई की प्रति लगन थी कि उन्होंने एक अनजाने देश में मेडिकल की पढ़ाई की, जहां की भाषा भी वे नहीं जानते थे। चैतराम चंद्राकर के बड़े पुत्र शंभू चंद्राकर ने 6 वर्षों तक यूक्रेन में रहकर मेडिकल की पढ़ाई की, वह भी तब जब यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध के चलते संकट के बादल गहरा रहे थे। शंभू राम के लिए भाषा की दिक्कत बड़ी समस्या थी, जिसे पार पाते हुए उन्होंने 6 साल तक पढ़ाई कर मेडिकल की डिग्री हासिल की। भारतीय कानून के अनुसार विदेशों से मेडिकल की डिग्री हासिल करने के बाद भी कोई भी व्यक्ति तब तक प्रेक्टिस नहीं कर सकता जब तक कि वह भारत में एफएमजीई की कठिन परीक्षा पास ना कर ले। यह चुनौती पूर्ण इसलिए भी है कि विदेशों से मेडिकल डिग्री हासिल करने वाले अधिकांश मेडिकल स्टूडेंट इस कठिन परीक्षा में असफल होते हैं, लेकिन अपनी लगन और अथाह इच्छाशक्ति के चलते शंभू राम ने यह कठिन परीक्षा भी पास कर ली और अब वे अपने गांव के पहले एमबीबीएस डॉक्टर बन चुके हैं। इससे न केवल उनका परिवार बल्कि पूरा गांव खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है ।

डॉ शंभूराम चंद्राकर भी कहते हैं कि गांव में हिंदी मीडियम पढ़ाई करने के बाद विदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई इंग्लिश में करना आसान नहीं था। सबसे पहले भाषायी दिक्कत दूर करना, फिर विदेश में खुद तालमेल बिठाना, उसके बाद भारत लौटने पर एक कठिन परीक्षा की चुनौती को पार करना आसान तो नहीं था, लेकिन परिवार के सहयोग और प्रबल आत्म शक्ति के बल पर उन्होंने इस चुनौती को पार कर लिया है ।अब शंभू रामचंद्र कर भारत में ही रहकर मेडिकल प्रैक्टिस कर जरूरतमंदों की सेवा की बात कह रहे हैं। इधर ग्रामीण इस बात से फूले नहीं समा रहे हैं कि उनके बीच का एक बेटा विदेश से डॉक्टर बनकर लौटा है ।यह उनके लिए गौरव का विषय है, साथ ही इससे उन ग्रामीण बच्चों में भी आसमान छूने की हिम्मत पैदा हो गयी है जिनके लिए आज डॉ शंभू राम चंद्राकार एक आदर्श बनकर उभरे हैं।

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