
लोक आस्था के महापर्व छठ का आरंभ शुक्रवार को नहाए खाए के साथ हो गया। इस दिन बिलासपुर तोरवा छठ घाट में अरपा मैया की महा आरती की गई। बिलासपुर की जीवनदायिनी अरपा नदी को भी गंगा, जमुना नर्मदा की तरह सम्मान दिलाने के उद्देश्य के साथ पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच, भोजपुरी समाज और सहजानंद समिति द्वारा साल 2011 में अरपा मैया की आरती कार्यक्रम का आरंभ किया गया था। बिलासपुर शहर का विकास इसी नदी तट पर हुआ है और आज भी इसी नदी पर पूरा शहर आश्रित है। दुख का विषय है कि बिलासपुर वासी अपने इस धरोहर को लेकर गंभीर नहीं है और इस नदी में शहर भर का कचरा और प्रदूषित जल प्रवाहित किया जा रहा है। हालांकि सरकार अब इस मामले में सचेत हुई है। अरपा नदी पर एनीकट निर्माण के साथ दोनों किनारों पर नालियों का निर्माण किया जा रहा है।

इसी अरपा मैया की महिमा प्रतिपादित करने के लिए बिलासपुर छठ घाट में अरपा मैया की गंगा मैया की तर्ज पर महा आरती की गई। बिलासपुर छठ पूजा समिति द्वारा आयोजित इस महा आरती में बतौर मुख्य अतिथि ब्रह्मा बाबा आश्रम के संत श्री श्री 1008 प्रेम दास जी महाराज अपना आशीर्वाद देने उपस्थित रहे , तो वहीं विशिष्ट अतिथि के तौर पर धरमलाल कौशिक, अटल श्रीवास्तव, रश्मि सिंह, शैलेश पांडे , धर्मजीत सिंह, रजनीश सिंह, रामशरण यादव, अरुण सिंह चौहान , प्रमोद नायक आदि उपस्थित रहे ।
प्रवासी उत्तरांचल के निवासियों द्वारा बिलासपुर में छोटे पैमाने पर छठ पूजा का आरंभ किया गया था। बाद में यहां नदी तट पर 8 एकड़ क्षेत्रफल में विशाल छठ घाट का निर्माण किया गया, जहां घाट की लंबाई ही एक किलोमीटर से अधिक है। दावा किया जाता है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा स्थाई छठ घाट है। इससे बड़ा घाट केवल जुहू बीच को माना जाता है।

वैसे तो साल 2000 से ही पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच द्वारा यहां छठ पूजा का आयोजन किया जा रहा है लेकिन साल 2011 से अरपा मैया की महाआरती की जा रही है। बिलासपुर के प्रसिद्ध गायक अंचल शर्मा के स्वरों में स्वरबद्ध भजन के साथ अतिथियों ने अरपा मैया की महा आरती की। इसी दौरान बिलासपुर के छठ घाट पर 5000 दीपदान किया गया। नन्हें-नन्हें दीपको को प्रज्वलित कर उन्हें अरपा नदी में प्रवाहित कर दिया गया। छठ पर्व के मद्देनजर घाट में जिस तरह की साफ-सफाई, रोशनी आदि की गई है, ऐसी व्यवस्था पूरे वर्ष भर हो इस दिशा में पहल करने की उम्मीद पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने जगायी है। दीपदान के बाद नदी में तैरते और टिमटिमाते दीपको की रोशनी मनोहारी और अलौकिक नजर आ रही थी। इस अवसर पर पूरे छठ घाट को आकर्षक ढंग से सजाया गया है तो वहीं रविवार शाम 5:24 मिनट पर डूबते हुए सूर्य देवता को अर्घ्य देने और अगली सुबह 6:05 पर उदित सूर्य को अर्घ्य देने की पूरी तैयारी कर ली गई है। छठ पूजा समिति के कोषाध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र दास ने व्यवस्थाओं की जानकारी दी। शनिवार को घरों में खरना का प्रसाद तैयार किया जाएगा, तो वहीं रविवार दोपहर बाद से ही लोग सर पर दउरा रखकर छठ घाट पहुंचेंगे, जहां घाट पर गन्ने का मंडप सजाकर व्रती सूर्य देवता और छठी मैया को अर्घ्य प्रदान करेंगे।

छठी मैया असल में मां दुर्गा की छठवी स्वरूप मां कात्यानी है, जो संतान की रक्षा करती है। इन्हें सूर्य भगवान की बहन माना जाता है इसलिए सूर्य देवता के साथ छठी मैया की पूजा की जाती है और उनसे संतान के मंगल की कामना की जाती है।
खास बात यह है कि छठ पूजा में ना किसी पुरोहित की आवश्यकता होती है और ना ही कोई मंत्रोच्चार किया जाता है। यहां पुरोहित व्रती स्वयं होता है और मंत्रोच्चार लोकगीतों के माध्यम से किया जाता है। आस्था का यही उफान अब रविवार और सोमवार को नजर आएगा। इससे पहले अरपा मैया की महाआरती में भी बड़ी संख्या में शहरवासी शामिल होने पहुंचे। इस अवसर पर घाट पर आकर्षक रंगोली भी सजाई गई और विद्युत सज्जा भी की गई।