फ़िल्म ‘कांतरा ‘ यदि नहीं देखा तो क्या देखा..


संजय ‘अनंत’©

अभी कुछ देर पहले आरती के  साथ यह फ़िल्म देखी…उफ़  क्या कहुँ अद्भुत, अकल्पनीय फ़िल्म.. ये बॉलीवुड के ताबूत पर एक़ और कील है .. हमारे शहर में टाकीज़ तो सब बंद  हो चुके .. दोनों बड़े  मॉल के थिएटर  में केवल दो शो इसके चल रहे थे,  बम्बइया  षड्यंत्र  असफल हुए, रिलीज़ के इतने  दिनों के बाद  कुल आठ से दस शो चल रहे है वो भी जनता की उपस्थिति के साथ.. एक़ कन्नड़ फ़िल्म का इतना क्रेज़.. भाई मान गए कुल 16 करोड़ में बनी फ़िल्म 200करोड़ का बिजनेस अब तक कर चुकी है.. यदि हमारी  बम्बइया  लॉबी कामयाब न हुई तो ये फ़िल्म जरूर ऑस्कर के लिए  जाएगी। भगवान  के वराह अवतार जो  मानव शरीर में दैव  स्वरुप आते है और  वनवासी  जन के विश्वास में बसते  है। राजा के दैव को दिए वचन को उनके उत्तधिकारी भंग करते है… ये फ़िल्म बहुत बड़ा सन्देश भी देती है। हम शहर में रहने वाले जंगल पर्यवारण  पर गोष्ठी  सेमिनार ही  करते है किन्तु हमारे वनवासी उसके साथ जीते और मरते है, वन  और उसकी सम्पदा उनके जीवन का हिस्सा  है.. फ़िल्म का अंत बहुत ही सुंदर है.. पूरी फ़िल्म आप को रोमांच रहस्य और एक़ प्रकार के भय  में बांधे रखती है। दैव वन की  ओर प्रस्थान करने के पूर्व   ग्रामीण, फॉरेस्ट के अधिकारी सबको एक़ सूत्र करते  है.. मानो कह रहे हो कोई किसी का विरोधी नहीं.. हम सब मिल कर अपने वनो की  अपने पर्यावरण की रक्षा करें.. कोई भी कलाकार जाना पहचाना  नहीं है, पर एक्टिंग गज़ब की है उतना ही शानदार डायरेक्शन.. गीत संगीत की  कोई  गुंजाईश इस फ़िल्म में है ही  नहीं.. मन्त्रपाठ देव स्तुति मधुर है।दक्षिण की संस्कृति को, कर्नाटक के सुंदर प्रकृतिक दृश्यों को कैमरे ने बखूबी  कैद किया गया है .. सौ में सौ नंबर 

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