छठ पूजा के बाद छठ घाट में लगा कचरे का अंबार, इसे साफ करने का बीड़ा उठाया शहर के कुछ एनजीओ ने, कहा अब नियमित रूप से करेंगे घाट की सफाई

प्रवीर भट्टाचार्य

छठ पूजा के बाद लोग अपने पीछे कूड़ा करकट का अंबार छोड़कर गए। छठ पूजा से पहले नियमित रूप से बिलासपुर नगर निगम, शहर के अलग-अलग एनजीओ और छठ पूजा समिति द्वारा छठ घाट की व्यापक पैमाने पर सफाई की परंपरा रही है, लेकिन पूजा के पश्चात घाट को अक्सर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। खासकर पूजा के पश्चात पूजन सामग्री, गन्ना के अवशेष, दीपक मिट्टी के कुंड आदि यहां वहां पड़े रहते हैं। निगम के सफाई कर्मचारी घाट के ऊपरी हिस्से की सफाई कर भी देते हैं लेकिन घाट की सीढ़ियों पर चीजें जस की तस पड़ी रहती है। जिसे देखते हुए इस बार अभिनव पहल किया गया। छठ पूजा समिति से जुड़े कुछ कार्यकर्ताओं, ख्वाब वेलफेयर फाउंडेशन के सदस्य और लॉरेंस सामाजिक संस्था द्वारा मंगलवार को तोरवा छठ घाट की सफाई की गई।

समिति के सदस्य महिला और पुरुष दोनों झाड़ू आदि लेकर दोपहर से जुटे रहे, जिन्होंने घाट के इस छोर से लेकर उस छोर तक सफाई करते हुए घाट पर इधर-उधर बिखरे पड़े दीये, फूल, प्लास्टिक की थैलियों, पूजन सामग्री, गन्ना के अवशेष आदि को एकत्रित किया, तो वहीं सीढ़ियों पर झाड़ू लगाकर उनकी सफाई की। सभी ने एक स्वर में माना कि बिलासपुर के इस सबसे बड़े और उपयोगी घाट की सफाई बिलासपुर के हर एक नागरिक की अपनी जिम्मेदारी है और इसके लिए स्वस्फूर्त नियमित प्रयास की आवश्यकता है। घाट पर सफाई करने पहुंचे एनजीओ के सदस्यों ने कहा कि वे एक निश्चित अंतराल पर नियमित रूप से घाट की सफाई करेंगे ताकि छठ के अवसर पर जिस तरह की सफाई तोरवा छठ घाट पर नजर आती है, वैसी ही स्थिति वर्ष भर रहे।


मंगलवार को छठ घाट की सफाई करने पहुंचे वॉलिंटियर्स के उत्साहवर्धन के लिए पहुंचे छठ पूजा समिति के कोषाध्यक्ष डॉक्टर धर्मेंद्र दास ने इस पहल के लिए सब के प्रति आभार जताया, तो वहीं उन्हें यथासंभव मदद का भी भरोसा दिया। डॉ धर्मेंद्र दास ने कहा कि पूजा के पश्चात घाट पर अवशेष स्वाभाविक है, इसकी सफाई हम सबको मिलकर करनी होगी। वहीं आम नागरिकों की भी जिम्मेदारी है कि वे घाट पर गंदगी ना फैलाएं।


भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां नदी को मां या फिर ईश्वर माना जाता है। संभवत भारत ही एकमात्र ऐसा भी देश है, जहां नदी में ही दुनियाभर की गंदगी डाली जाती है। घर में पूजा करने के बाद पूजन सामग्री, फूल आदि भी नदी में फेंके जाते हैं। गंदी नालियों का पानी भी नदी में उड़ेला जाता है । प्लास्टिक की पन्नियां, डिस्पोजल आदि भी नदी में डाल दी जाती है। अगर हम अपनी इन आदतों में ही बदलाव कर ले, तो फिर नदी का कायाकल्प संभव है। वैसे अगर घाट पर नियमित आयोजन होने लगे, पिकनिक आदि के लिए लोग जुटने लगे तो भी घाट की स्थिति बेहतर हो सकती है । इन विकल्पों पर भी विचार करना होगा। एस भारत न्यूज़ बिलासपुर।

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