प्रकृति पूजन के सबसे बड़े पर्व छठ पर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य देने बिलासपुर छठ घाट पर उमड़ा शहर, हजारों चेहरों पर दिखी आस्था की अनूठी चमक

चार दिवसीय छठ पूजन के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान किया गया। लोक आस्था के इस सबसे बड़े पर्व पर इस वर्ष बिलासपुर छठ घाट पर अभूतपूर्व छटा नजर आई। सूर्य देव के रूप में प्रकृति पूजन के लिए यहां व्रती पारंपरिक परिधानों में दोपहर बाद से ही पहुंचने लगे थे। बिलासपुर के तोरवा छठ घाट पर इस वर्ष तैयारियां भी विराट थी। दउरा सजाकर अपनी बहंगी लेकर गाजे-बाजे के साथ घाट पर पहुंचे व्रती, बिलासपुर की जीवनदायिनी अर्पपा नदी के तट पर, सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले, तैयारियों में जुटे नजर आए। नदी तट पर गन्ने से मंडप बनाया गया। दउरा में तरह तरह के फल, फूल, सब्जियां और पूजा अनुष्ठान की सामग्रियों के साथ पारंपरिक छठ गीत के साथ अस्ताचलगामी सूर्य देव की प्रतीक्षा की गई।


शाम 5:24 पर अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य देकर संतान और पूरे परिवार के लिए सुख, समृद्धि एवं दीर्घायु की कामना की गई। 36 घंटे के कठिन व्रत के बाद भी सभी चेहरे दमकते नजर आए।
पौराणिक काल से ही भारत में सूर्य देव और मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की छठी मैया के रूप में पूजा अर्चना की जा रही है। भगवान श्रीराम को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त कराने सीता मैया ने और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस दिलाने के लिए देवी द्रोपदी ने भी यह व्रत किया था।
दावा किया जाता है कि बिलासपुर का छठ घाट दुनिया का सबसे बड़ा स्थायी छठ घाट है, जिसकी लंबाई 1 किलोमीटर के करीब है। 8 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस घाट पर रविवार को कदम रखने की जगह तक नहीं थी। केवल छठ पूजा करने वाले ही नहीं, बल्कि प्रकृति पूजन के इस अनुष्ठान को समझने और करीब से देखने के लिए भी हजारों की भीड़ घाट पर पहुंची थी । अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार छठ पर्व पर बिलासपुर छठ घाट में करीब एक लाख लोग रविवार शाम को एकत्र हुए। इस अवसर पर यहां मेला भी लगा था, जिसका भी लोग सपरिवार आनंद उठाते नजर आए। इस अवसर पर समिति की ओर से निशुल्क चाय आदि की सेवाएं प्रदान की गई। वहीं सुरक्षा व्यवस्था बिलासपुर पुलिस ने बखूबी संभाली। अब उदित सूर्य को अर्घ्य देने के साथ उत्तरांचल के सबसे बड़े लोक पर्व छठ का परायण होगा। बिलासपुर में साल दर साल जिस तरह से लोगों की आस्था इस पर्व के प्रति बढ़ती जा रही है उससे इतना तो स्पष्ट है कि भाषा और प्रांत की दीवारें गिरा कर अब छत्तीसगढ़ के लोगों ने भी छठ महापर्व को पूरी तरह से अंगीकार कर लिया है।

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