चांटीडीह का ‘ईरानी मोहल्ला’: बेजा कब्जा, अपराध और  प्रशासनिक भेदभाव के खिलाफ कलेक्ट्रेट पर फूटा जनआक्रोश

आकाश दत्त मिश्रा

दुर्भाग्य का विषय है कि आजाद भारत में भी ऐसे ऐसे छोटे-छोटे उपनिवेश बन गए हैं जिनके आगे प्रशासन और पुलिस भी पस्त है। ऐसे इलाकों को कभी मिनी पाकिस्तान कहा जाता है तो कभी ईरानी मोहल्ला। बिलासपुर भी इस समस्या से अछूता नहीं है। इसी भेदभाव के खिलाफ हिंदू संगठनों के नेतृत्व में पीड़ितों ने कलेक्ट्रेट के सामने प्रदर्शन किया।

प्रदर्शन कारियो ने आरोप लगाया कि यहां अतिक्रमण हटाने में प्रशासनिक भेदभाव किया गया है। मेला पारा चांटीडीह में अतिक्रमण हटाने के नाम पर पुलिस बल का प्रयोग करते हुए हिंदुओं के मकान तो आसानी से हटा दिए गए लेकिन अब वहीं पास में ईरानी मोहल्ले के निवासियों को हटाने में हाथ पांव फूल रहे हैं।

यहां हिंदुओं के मकान आसानी से तोड़ दिए गए और उन्हें दूसरी जगह स्थानांतरित भी कर दिया गया लेकिन जब ईरानी मोहल्ले को हटाने की बारी आती है तो अधिकारी लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने का हवाला देकर पीठ दिखा देते हैं, जिस कारण से यहां कार्रवाई नहीं हो रही और इसका खामियाजा आसपास के लोग उठा रहे हैं। ईरानी मोहल्ले में रहने वाले अपराधी तत्व द्वारा यहां आए दिन मारपीट, गुंडागर्दी आदि की जाती है। सड़क से गुजरने वाली लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और उनके फोटो- वीडियो खींचने की बात तो आम है। हद तो तब हो जाती है जब आसपास रहने वाले लोगों के कच्चे शौचालय और बाथरूम में नहाती लड़कियों के आपत्तिजनक वीडियो बनाए जाते हैं । इस मामले में आधा दर्जन से अधिक शिकायत थाने में दर्ज है लेकिन कोई कार्यवाही नहीं होने से आरोपियों के हौसले बुलंद है। प्रशासन से न्याय की गुहार लगाते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई।

दरअसल चांटीडीह मेलापारा के आसपास बेजा कब्जा खाली करा कर हाउसिंग प्रोजेक्ट लाने की योजना थी। इसी प्रयास में बिलासपुर नगर निगम ने पिछली वर्ष 300 से अधिक बेजा कब्जाधारियों के मकान को तोड़कर जमीन खाली कराई और यहां रहने वालों को अटल आवास में शिफ्ट कर दिया। उस दौरान ईरानी मोहल्ले को यह कहते हुए छूट दे दी गई थी कि उनके पुनर्वास के लिए अटल आवास उपलब्ध नहीं है। एक वर्ष बीत जाने के बाद भी निगम ना तो ईरानी मोहल्ले की भूमि को मुक्त करा सका है और ना ही उनके विस्थापन के लिए कोई आवास तैयार हो पाया है।

इस अधूरी कार्यवाही का सीधा असर निगम के हाउसिंग प्रोजेक्ट योजना पर भी पड़ रहा है, इसलिए योजना कभी धरातल पर उतर ही नहीं पा रही। स्थानीय लोगों का सीधा आरोप है कि निगम ने कार्यवाही में हिंदुओं को निशाना बनाया, जबकि ईरानी समुदाय को जानबूझकर छोड़ दिया गया। ईरानी मोहल्ले में बड़ी संख्या में अपराधी तत्व के लोग रहते हैं इसलिए उनके खिलाफ आये दिन मारपीट, नशे और विवादों की शिकायतें थाने में पहुंचती है। निगम आयुक्त अमित कुमार भी स्वीकार करते हैं कि ईरानी मोहल्ले को हटाने में कानूनी व्यवस्था बड़ी चुनौती है। मोहल्ले को हटाने के दौरान लॉ एंड ऑर्डर को भी कंट्रोल नहीं कर पाएंगे। इतना ही नहीं उनके पुनर्वास की समस्या भी है , क्योंकि कोई भी ईरानियन के आसपास नहीं रहना चाहता । लोगों ने इसे लेकर भी शिकायत की है। यही कारण है कि सरकारी जमीन पर आज भी ईरानियन का बेजा कब्जा बरकरार है। इस कारण हाउसिंग प्रोजेक्ट की फाइलें आगे नहीं बढ़ पा रही।

बिलासपुर नगर निगम और जिला प्रशासन के साथ पुलिस प्रशासन का यह भय और ईरानियन के आगे समर्पण हैरान करने वाली है। इससे एक तरफ जहां यह आरोप लग रहा है कि जिला प्रशासन अपराधी तत्वों को संरक्षण दे रहा है, वही इसका खामियाजा आसपास रहने वाले हिंदू परिवार उठा रहे हैं।

वैसे यह कोशिश 2018 से चल रही है और आज इतने सालों बाद भी ईरानियन को हटाया नहीं जा सका 1। बड़ा सवाल यह है कि अगर यहां से बेजा कब्जा पूरी तरह हटाना ही नहीं था तो फिर हिंदुओं के साथ भेदभाव और पक्षपात पूर्ण कार्रवाई करते हुए गरीब मजदूरों को क्यों बेघर किया गया, जबकि वे 50 से 60 सालों से यहां रह रहे थे । जिन लोगों ने उस दौरान कब्जा खाली करने से इनकार किया, उन पर तो बल का प्रयोग भी किया गया। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किए गए लेकिन यही हिम्मत ईरानी मोहल्ले तक पहुंचते पहुंचते कहीं गायब हो जाती है। कार्यवाही के दौरान निगम के अधिकारी दावा करते थे कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा और सब के मकान तोड़े जाएंगे लेकिन हिंदुओं की आबादी को हटाने के बाद ही जैसे निगम ने ईरानियन के आगे समर्पण कर दिया।

ईरानी मोहल्ला आसपास के लोगों के लिए श्राप बन चुका है। ईरानी बस्ती को हटाने के लिए वर्ष 2012 में ही आसपास के पांच वार्डो के तत्कालीन पार्षदों और नागरिकों ने रैली निकालकर एसपी और कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा था क्योंकि सभी लोग ईरानी बस्ती के गुंडो की गुंडागर्दी और छेड़खानी से परेशान थे।

धरना प्रदर्शन कर रहे धनंजय गिरी गोस्वामी ने बताया कि ईरानी बस्ती के लोगों द्वारा बेजा कब्जा कर एक अवैध मस्जिद का निर्माण कर लिया गया है। उसी से लग कर एक अवैध दुकान भी बनाया गया है जिसे अवैध तरीके से किराए पर देकर उगाही की जा रही है, लेकिन निगम इस पर कार्यवाही करने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। धनंजय ने कहा कि बिलासपुर में कहीं भी किसी जाति या धर्म के नाम पर इलाके नहीं है लेकिन यहां कुछ लोगों ने एक अलग मुल्क के रहने वालों के नाम पर एक अलग बस्ती बसा ली है।

साथ ही हैरानी की बात है कि बिलासपुर जैसे शहर में भी बेजा कब्जा हटाने की कार्यवाही धर्म देखकर की जाती है। स्थानीय लोगों के धरना प्रदर्शन ने एक बार फिर से इस मामले को सुर्खियों में ला दिया है लेकिन बड़ा सवाल यही है कि जिस प्रशासन की हिम्मत ईरानी बस्ती से बेजा कब्जा हटाने की नहीं है उनके आगे आवेदन और विनती का भला कितना असर होगा। भारत में ऐसे छोटे-छोटे न जाने कितने इलाके बन चुके हैं, जहां रहने वाले आसपास के नागरिक तो परेशान है ही पुलिस और प्रशासन की भी हिम्मत वहां कार्रवाई की नहीं हो पाती, इससे अधिक शर्मनाक बात क्या हो सकती है और बिलासपुर के चांटीडीह का लाइलाज ईरानी मोहल्ला भी उन्हीं में से एक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!