सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर नया फरमान,अब स्कूलों में आवारा कुत्तों के साथ सांप-बिच्छू भगाने की जिम्मेदारी भी शिक्षकों पर

बिलासपुर। शिक्षा विभाग ने सरकारी और निजी स्कूलों के शिक्षकों की जिम्मेदारियों का दायरा और बढ़ा दिया है। पहले जहां स्कूल परिसर में आवारा कुत्तों और मवेशियों के प्रवेश को रोकने का निर्देश दिया गया था, अब उससे आगे बढ़ते हुए शिक्षकों को सांप, बिच्छू और अन्य जहरीले जीव-जंतुओं को स्कूल में प्रवेश से रोकने की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई है। यह निर्देश डीपीआई की ओर से जारी आदेश के बाद जिला शिक्षा अधिकारियों, प्राचार्यों और प्रधान पाठकों तक पहुंचाया गया है।

18 दिन में दूसरा आदेश, विरोध रोकने सुप्रीम कोर्ट का सहारा

20 नवंबर को डीपीआई ने आदेश जारी कर शिक्षकों को आवारा कुत्तों की पहचान कर उन्हें हटवाने और संबंधित निकाय को जानकारी देने का निर्देश दिया था। मात्र 18 दिन के भीतर ही नया आदेश जारी कर शिक्षकों पर एक और अतिरिक्त जिम्मेदारी डाल दी गई है—अब उन्हें स्कूल परिसर में सांप, बिच्छू और अन्य जहरीले जीवों के प्रवेश को भी रोकना होगा।

इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला दिया गया है, जिसके कारण शिक्षक खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे। प्राचार्यों और प्रधान पाठकों को आदेश का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने को कहा गया है।

शिक्षकों पर बढ़ता बोझ – यह सभी काम भी सौंपे गए

स्कूलों में शिक्षकों को पहले ही कई प्रशासनिक और गैर-शैक्षणिक कार्य सौंपे गए थे, जिनमें अब और इजाफा हो गया है।

  • यदि स्कूल परिसर में खेलते-खेलते बच्चे नदी या तालाब में चले गए और कोई दुर्घटना हुई—जिम्मेदारी सीधे शिक्षकों और प्राचार्य पर होगी।
  • जर्जर भवन से चोट लगना,
  • मध्याह्न भोजन खराब मिलना,
  • बच्चों का आधार कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, स्मार्ट कार्ड और SIR अपडेट कराना,
  • और स्कूल खुलते ही गांव-गांव जाकर सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए पालकों से संपर्क करना—ये सभी कार्य पहले से ही शिक्षकों के जिम्मे थे।

अब इसमें खतरनाक जीव-जंतुओं को रोकने की जिम्मेदारी भी जोड़ दी गई है।

अधिकारी का बयान

जिला शिक्षा अधिकारी विजय टांडे ने कहा—
“यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। सभी प्राचार्य और प्रधान पाठकों को इसका पालन अनिवार्य रूप से करना होगा। आदेश सभी स्कूलों को जारी कर दिया गया है।”

शिक्षक संगठन इसे लेकर अपनी नाराजगी जता रहे हैं, हालांकि आदेश में कोर्ट का हवाला होने के कारण खुला विरोध संभव नहीं दिख रहा है।

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