

रायपुर।
डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में एचआईवी संक्रमित मां और नवजात की पहचान उजागर करने के मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने इसे “बेहद अमानवीय, असंवेदनशील और निंदनीय” करार देते हुए राज्य के मुख्य सचिव से व्यक्तिगत शपथपत्र मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने शुक्रवार को जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह घटना न केवल नैतिकता बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार का भी गंभीर उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी अस्पतालों से अपेक्षा की जाती है कि वे मरीजों के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार रवैया अपनाएं, खासकर एचआईवी-एड्स जैसे मामलों में गोपनीयता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
दरअसल, रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में एक नवजात शिशु के पास पोस्टर लगाया गया था, जिस पर लिखा था— “बच्चे की मां एचआईवी पॉजिटिव है।” यह पोस्टर प्रसूता वार्ड और नर्सरी के बीच लगाया गया था। जब बच्चे के पिता ने इसे देखा, तो वे भावुक होकर रो पड़े। मामला सार्वजनिक होने पर हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश सिन्हा ने कहा कि इस तरह की लापरवाही मां-बच्चे की पहचान उजागर कर उन्हें सामाजिक कलंक और भेदभाव का शिकार बना सकती है। कोर्ट ने इसे मानव गरिमा पर “सीधा प्रहार” बताते हुए कहा कि भविष्य में इस तरह की गलती दोबारा नहीं होनी चाहिए।
कोर्ट ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे 15 अक्टूबर 2025 तक शपथपत्र दाखिल करें और बताएं कि—
- सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों, सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
- कर्मचारियों, डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को संवेदनशील बनाने के लिए अब तक क्या प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान चलाए गए हैं।
- भविष्य में इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए क्या ठोस व्यवस्था की गई है।
हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले की गंभीरता देखते हुए आदेश की प्रति तत्काल मुख्य सचिव को भेजी जाए, ताकि समय पर कार्रवाई और जवाब सुनिश्चित किया जा सके।
अगली सुनवाई 15 अक्टूबर 2025 को निर्धारित की गई है।
