बिलासपुर में धूमधाम से मनाया जा रहा है दुर्गा पूजा उत्सव, महा सप्तमी पर पूजा- अर्चना, पुष्पांजलि के साथ किया गया भोग वितरण

प्रवीर भट्टाचार्य

शारदीय नवरात्र का पर्व पूरे भक्ति भाव और धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। इस वर्ष 9 की जगह 10 दिन का उत्सव है। इसी के साथ बिलासपुर में बंगाली परंपरा के साथ दुर्गा पूजा उत्सव भी आरंभ हो चुका है।

बिलासपुर में 102 वर्षों से प्रवासी बंगालियों द्वारा धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। अब तो स्थिति यह है कि बंगाल के बाद सबसे अधिक धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन बिलासपुर में ही होता है , जो बिलासपुर की पहचान बन गई है। दुर्गा पूजा उत्सव बिलासपुर का सबसे बड़ा सार्वजनिक पूजा उत्सव है। इसका आरम्भ इस बार शनिवार को देवी बोधन के साथ हुआ। रविवार को षष्ठी पूजा और संध्या आरती की गई तो वहीं विधिवत पूजा का आरंभ सोमवार से हुआ।

बिलासपुर के अधिकांश क्षेत्रों में बंगाली परंपरा के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। विशेष कर रेलवे क्षेत्र और उसके आसपास यह परंपरा आज भी कायम है। इन्हीं में से एक तोरवा धान मंडी चौक में विगत 19 वर्षों से श्री श्री विवेकानंद दुर्गा लक्ष्मी उत्सव समिति द्वारा इस वर्ष भी धूमधाम से मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जा रही है। सोमवार को यहां कोला बोउ स्नान, नव पत्रिका प्रवेश के बाद महा सप्तमी पूजा अर्चना की गई । बंगाली परंपरा के साथ सभी भक्तों ने पुष्पांजलि अर्पित की। इसके पश्चात यहां खिचड़ी का पारंपरिक भोग प्रसाद सभी को वितरित किया गया।

बंगालियों के लिए दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक आयोजन भर नहीं है, बल्कि यह सामाजिक उत्सव भी है। बंगाली जहां भी रहता हो, वह सब कुछ छोड़कर इन दिनों अपने घर आ जाता है। पारंपरिक वेशभूषा में बंगाली भद्र लोक पूजा पंडाल पहुंचते हैं, जहां देवी दर्शन और आराधना के साथ मेल मिलाप और अड्डा भी जमता है। ऐसा ही कुछ नजरा श्री श्री विवेकानंद दुर्गा लक्ष्मी पूजा समिति के उत्सव में भी नजर आया।

आयोजन समिति के पल्लव धर ने बताया कि मंगलवार को महा अष्टमी पूजा की जाएगी, जिसमें सुबह 11:30 बजे बिलासपुर विधायक अमर अग्रवाल भी सम्मिलित होंगे। इसके बाद दोपहर 1:21 से दोपहर 2:09 तक संधी पूजा की जाएगी ।


पारंपरिक रूप से महा अष्टमी और महानवमी के संधि काल के बीच के 24-24 मिनट यानी कुल 48 मिनट में यह पूजा की जाती है। इसी संधि काल में देवी चामुंडा ने महिषासुर के दो मुख्य सेनापति चण्ड और मुंड का वध किया था। संधी पूजा में देवी को 108 प्रदीप, 108 कमल, चंदन, धूप , दीप नैवेद्य आदि अर्पित कर पूजा की जाती है। पूजा के साथ ही रखिया नींबू आदि की सांकेतिक बलि देने की भी परंपरा है । मान्यता है कि इस समय देवी बहुत जागृत रूप में होती है और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है, जिसमें सम्मिलित होना परम सौभाग्यकारी माना जाता है ।

पारंपरिक ढाक की धुन पर यहां प्रतिदिन संध्या आरती और धुनुची नाच का भी आयोजन किया जा रहा है, साथ ही भोग प्रसाद का भी नियमित वितरण किया जा रहा है। 2 अक्टूबर दसमी पूजा के साथ देवी वरण किया जाएगा, तत्पश्चात प्रतिमा का विसर्जन होगा । इस वर्ष 6 अक्टूबर को कोजागरी लक्ष्मी पूजा आयोजित होगी। सोमवार महा सप्तमी पूजा पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवी के दर्शन और पुष्पांजलि देने पहुंचे थे।

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