

रायपुर। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्यौहारों में पहला और सबसे खास माने जाने वाला हरेली तिहार गुरुवार को मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के रायपुर स्थित निवास पर पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर प्रदेश की समृद्ध लोक संस्कृति और परंपराओं की झलक दिखाई दी। मुख्यमंत्री ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की।

पारंपरिक पूजा और छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की महक
कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक पूजा से हुई। पूजा स्थल पर लकड़ी और मिट्टी के कृषि औजार सजाए गए और उन पर तेल, हल्दी तथा नीम की टहनियों से पूजा कर प्रकृति और खेती-किसानी के प्रति आभार व्यक्त किया गया। इसके बाद छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे ठेठरी, खुरमी, चीला, फरा, बोरे बासी और महुआ लड्डू का भोग लगाया गया। पूरा परिसर लोकगीतों और मांदर की थाप से गूंज उठा।

मंत्रीमंडल के सदस्य और विशिष्ट अतिथि हुए शामिल
हरेली उत्सव में मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल, भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के सह संयोजक डॉ. धर्मेंद्र कुमार दास सहित कई मंत्रिमंडलीय सदस्य और विशिष्ट जन उपस्थित रहे। सभी ने मिलकर कृषि औजारों की पूजा कर छत्तीसगढ़ी परंपराओं को संजोने का संदेश दिया।

लोक संस्कृति को संजोने का संकल्प
इस अवसर पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि हरेली तिहार केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह हमारी जड़ों और कृषि संस्कृति से जुड़े रहने का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ की पहचान उसकी लोक संस्कृति और परंपराओं से है। हमारी सरकार इन परंपराओं को बढ़ावा देने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए निरंतर प्रयासरत है।”
लोकगीतों और गुढ़ी-गेड़ी की रौनक
कार्यक्रम में लोक कलाकारों ने पारंपरिक हरेली गीत प्रस्तुत किए। बच्चों और युवाओं ने गेड़ी चढ़कर अपनी कला का प्रदर्शन किया, जिसने माहौल को और भी रंगीन बना दिया। अतिथियों को छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का स्वाद चखाया गया और उन्हें पारंपरिक ताम्रपत्र व प्रतीक चिन्ह भेंट किए गए।
पूरे प्रदेश में हरेली की धूम
इधर, प्रदेश के गांव-गांव में भी हरेली पर्व की धूम रही। लोगों ने अपने घरों और खेतों में कृषि औजारों की पूजा कर नीम व करील की टहनियां लगाईं। जगह-जगह नारियल फेंक प्रतियोगिता और लोकनृत्य आयोजित किए गए।
हरेली तिहार का महत्व
हरेली सावन महीने की अमावस्या को मनाया जाने वाला छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। इसे खेती-किसानी की शुरुआत का पर्व माना जाता है। इस दिन लोग खेतों और बैलों की पूजा करते हैं और आने वाले समय में अच्छी फसल की कामना करते हैं।
