


पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने भीमसेनी एकादशी (निर्जला एकादशी) के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह व्रत वर्ष भर की समस्त एकादशियों का फल एक ही दिन में प्रदान करता है। यह पुण्य पर्व इस वर्ष 6 जून 2025 को प्रातः 2:15 बजे प्रारंभ होकर 7 जून को प्रातः 4:47 बजे तक रहेगा।
उन्होंने बताया कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी का महत्व अत्यंत विशेष है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इसका प्रचलन महाभारत काल से जुड़ा है। कथा के अनुसार, भीमसेन भोजन के बिना नहीं रह सकते थे, अतः उन्होंने व्यास जी से ऐसा व्रत बताने का आग्रह किया जो केवल एक बार रखा जाए और सभी एकादशियों का फल दे। तब व्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करने का परामर्श दिया, जिसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता।

इस व्रत में व्रती को एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करने का संकल्प लेना होता है। केवल आचमन के रूप में अल्प जल (छ: मासा से कम) लिया जा सकता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना, दान देना तथा स्वयं भोजन ग्रहण करना व्रत की पूर्णता मानी जाती है। इस व्रत से सभी पाप नष्ट होते हैं और व्रती को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि इस दिन भगवान विष्णु का पूजन, “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप, गौ दान, जल से भरे कलश का दान, अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूते) आदि का दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि यह व्रत इतना प्रभावशाली है कि इसके प्रभाव से ब्रह्म हत्या, मद्यपान, चोरी जैसे महापाप भी क्षमा हो जाते हैं। मृत्यु के समय यमदूत नहीं आते, बल्कि भगवान के पार्षद पुष्पक विमान से व्रती को स्वर्ग ले जाते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि जो श्रद्धालु इस दिन अन्न खाते हैं, वे चांडाल के समान माने जाते हैं और अंततः नरक में जाते हैं। अतः श्रद्धा, नियम और भक्ति से यह व्रत करना चाहिए।
पीठाधीश्वर ने सभी श्रद्धालुजनों से आग्रह किया कि वे इस पर्व पर उपवास कर व्रत की विधि अनुसार दान करें, ब्राह्मणों का पूजन करें और प्रभु का स्मरण करें। उन्होंने कहा कि इस व्रत की कथा को पढ़ने या सुनने मात्र से ही महान पुण्य प्राप्त होता है।
विशेष जानकारी:
भीमसेनी एकादशी (निर्जला एकादशी)
तिथि प्रारंभ: 6 जून 2025, सुबह 2:15 बजे
तिथि समाप्त: 7 जून 2025, सुबह 4:47 बजे
यह अवसर उन भक्तों के लिए विशेष है जो नियमित एकादशी व्रत नहीं कर पाते। एक दिन का यह कठिन तप सभी एकादशियों के फल को प्रदान करने वाला कहा गया है।