
जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद्, भोपाल के द्वारा लोकरंग उत्सव जो दिनांक 25 -30 जनवरी , 2025 तक आयोजित हो रही है, में तीन दिवसीय शोध संगोष्ठी का आयोजन दिनांक 27 ,28 एवं 29 जनवरी , 2025 में हुआ। प्रथम दिवस यानी 27 जनवरी, 2025 में औपचारिक मंगलाचरण के पश्चात् स्वागत वक्तव्य एवं संगोष्ठी के बारे जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद्, भोपाल के निदेशक प्रो.धर्मेंद्र पारे ने सभी विद्वानों एवं अध्येताओं का स्वागत करते हुए लोक में विलुप्त हो रही वाद्य परंपरा को समृद्ध करने की बात की तथा लोक में वाद्यों को सुरक्षित और संरक्षित करते हुए अपनी भारतीय संस्कृति को मजबूत करने का आह्वान किया। उन्होंने उपभोक्तावादी व्यवस्था में रहते हुए भी अपनी कला और संस्कृति को समृद्ध बनाने और सुरक्षित रखने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यदि हमारे लोक की संस्कृति और जीवन प्रगति में सहायक परंपरा आहत होगी, जो हमारा जीवन विषम स्थितियों से बोझिल हो जाएगा और हम कृत्रिमता के जाल में फंसकर खुद ही ठगने का प्रयास करेंगे। प्रारंभिक सत्र में अयोध्या के हनुमान पीठ के पीठाधीश्वर आदरणीय आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने जीवन को लोक की समृद्ध से जोड़ते हुए कहा कि वाद्य की लयता के प्रारूप में हमारे जीवन में भी लय का होना नितांत जरूरी है। जब तक हमारे जीवन में सुर नहीं होगा, तब तक हम परस्पर बेसुरे होकर खुद को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। हमारे लिए हमारी लोक परम्परा एवं संस्कृति बहुत जरूरी है। यह जीवन को संरक्षित और सुरक्षित रखने में मदद करती है। लोक, व्यवहार है और शास्त्र व्यवस्था है। लोक जो प्रदान करता है, शास्त्र उसे परिष्कृत करते हुए व्यवस्थित और सुसंगठित तथा क्रमबद्ध सूत्रवत लोक को ही परोसता है। स्वामी जी के वक्तव्य से सभी अध्येता एवं महाविद्यालय से पधारे प्राध्यापक तथा विद्यार्थी गण मंत्र मुग्ध हो गए।
उद्घाटन सत्र के उपरांत प्रथम सत्र का आगाज हुआ, जिसमें अध्यक्षीय वक्तव्य डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू का हुआ और वक्ता के रूप में श्री शिवम् तनु शर्मा ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया है। दोनों ही वक्तव्य बहुत प्रभावी रहे। भोजनोपरान्त द्वितीय सत्र प्रारंभ हुआ, जिसमें सत्राध्यक्ष डॉ.श्रीकृष्ण काकड़े, अकोला, महाराष्ट्र, मुख्य वक्त डॉ.भुवनेश्वर दूबे, मीरजापुर तथा वक्ता के रूप में डॉ.ललिता लोधा तथा श्री रामकुमार वर्मा जी रहे। डॉ.ललिता लोधा ने अपने वक्तव्य में लोक वाद्यों के बारे में जानकारी देते हुए उसे संरक्षित एवं सुरक्षित रखने की बात कही। श्री रामकुमार वर्मा जी ने छत्तीसगढ़ के वाद्य के बारे में जानकारी प्रदान की। डॉ. भुवनेश्वर दूबे ने अपने वक्तव्य में वाद्य की उत्पत्ति तथा उससे संबंधित लोक कथाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके प्रकार तथा प्रमुख तत् वाद्य के बारे में जानकारी प्रदान की। डॉ.श्रीकृष्ण काकडे ने संगोष्ठी संयोजन के लिए प्रो.धर्मेंद्र पारे को बधाई देते हुए महाराष्ट्र के वाद्य के बारे में जानकारी प्रदान की।
द्वितीय दिवस यानी 28 जनवरी, 2025 की संगोष्ठी में प्रथम सत्र में सत्राध्यक्ष के रूप में दिल्ली से पधारी डॉ. विभा ठाकुर जी रहीं। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ.अनीता सोनी ने अपना वक्तव्य दिया। वक्ता के रूप में डॉ. करन सिंह, श्री गोपी कृष्ण सोनी, डॉ.नमिता साहू, डॉ.संजू साहू ने अपने वक्तव्य दिए। चाय अंतराल ने बाद के सत्र की अध्यक्षता डॉ.विजेन्द्र सिंहल जी ने की तथा मुख्य वक्ता के रूप में डॉ.सोनिया सिंह ने अपने वक्तव्य दिए। वक्ता के रूप डॉ. प्राणु शुक्ला, श्री गणेश तुमड़ाम तथा डॉ.अलका यादव जी ने अपने वक्तव्य दिए और लोक वाद्यों के बारे में अपने प्रभावी विचार रखे। द्वितीय सत्र में अध्यक्ष के रूप में डॉ. शोभा सिंह तथा मुख्य वक्ता के रूप डॉ.पूजा सक्सेना ने अपना वक्तव्य दिया। वक्ता के रूप में श्री छोगालाल कुमरावत, डॉ.योग्यता भार्गव, डॉ.रेखा ने अपने अपने विचारों की प्रस्तुति दी।
संगोष्ठी के तीसरे और अंतिम दिन यानी 29 जनवरी , 2025 में प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ.महेश शांडिल्य ने किया । मुख्य वक्ता के रूप में पंजाब की डॉ. प्रिया सूफी ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। वक्ता के रूप में डॉ.कमला नरवरिया, डॉ.बसोरीलाल इनवाती, श्री कन्हैया उइके ने अपने वैचारिकता को प्रस्तुत किया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता हरियाणा से पधारे डॉ.बाबूराम ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ.सुरेश मकवाना ने अपना प्रभावी वक्तव्य दिया। वक्ता के रूप में डॉ. सत्या सोनी, सुश्री स्वाति आनंद ने अपने वक्तव्य दिए।
समापन सत्र में सभी को स्मृति चिह्न भेंट किया गया। विद्वानों ने प्रो .धर्मेंद्र पारे को परस्पर एक साथ मिलकर लोक ऋषि सम्मान पत्र प्रदान किया। उन्होंने यह स्वीकार किया कि प्रो.धर्मेंद्र पारे ने लोक को उर्वर बनाने का प्रयास किया है और उनका कर्तृत्व लोक को समृद्ध करने का ही रहता है, अतः वे लोक ऋषि हैं, जो हमेशा लोक की सुरक्षा के लिए अनवरत तपस्यारत हैं । समापन सत्र की अध्यक्षता डॉ. श्रीराम परिहार जी ने किया और मुख्य वक्तव्य डॉ.मुकेश मिश्र जी का रहा। डॉ.मुकेश मिश्र ने अपने वक्तव्य में संगोष्ठी की सार्थकता और लोक के प्रति खुद के समर्पण की बात कही। उन्होंने यह कहा कि किसी संगोष्ठी का उद्देश्य तभी पूर्ण होता है, जब हम उसको आत्मसात् करते हुए व्यवहार में ग्रहण करते हैं। डॉ.श्रीराम परिहार ने लोक संस्कृति और परम्परा को संरक्षित करने का आह्वान किया।