पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र के पांचवे दिन माँ श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का स्कन्दमाता के रूप में आराधना किया गया

छत्तीसगढ़ बिलासपुर सरकण्डा स्थित श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र उत्सव हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है। पीताम्बरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि त्रिदेव मंदिर में नवरात्र के चौथे दिन प्रातःकालीन श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन श्रृंगार कूष्मांडा देवी के रूप में किया गया।श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारुद्राभिषेक, महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवी का षोडश मंत्र द्वारा दूधधारिया पूर्वक अभिषेक किया गया।परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का पूजन एवं श्रृंगार किया जा रहा है।श्री दुर्गा सप्तशती पाठ एवं श्री पीताम्बरा हवनात्मक यज्ञ रात्रिकालीन प्रतिदिन रात्रि 8:30 बजे से रात्रि 1:30 बजे तक निरंतर चलता रहेगा तत्पश्चात महाआरती रात्रि 1:30 बजे किया जा रहा है।

नवरात्रि में पाँचवे दिन ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का स्कन्दमाता रूप में पूजा जाएगा।पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा और अर्चना की जाती है। स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है। स्कंद की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। माना जाता है कि मां दुर्गा का यह रूप अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाता है। मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं और इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात् कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है और इसी तरफ वाली निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है। बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा है और नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल है। सिंह इनका वाहन है। क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिये इनके चारों ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है। सर्वदा कमल के आसन पर स्थित रहने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुर तारकासुर कठोर तपस्या कर रहा था। तारकासुर की तपस्या से भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हो गए थे। वरदान में तारकासुर ने अमर होने की इच्छा रखी। यह सुनकर भगवान ब्रह्मा ने उसे बताया कि इस धरती पर जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है , कोई अमर नहीं हो सकता है। तारकासुर निराश हो गया, जिसके बाद उसने यह वरदान मांगा कि भगवान शिव का पुत्र ही मेरा वध कर सके। तारकासुर ने सोचा की भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे और ना ही उनका पुत्र होगा। तारकासुर यह वरदान प्राप्त करने के बाद लोगों पर अत्याचार करने लगा। तंग आकर सभी देवता भगवान शिव से मदद मांगने लगे। तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। विवाह करने के बाद शिव-पार्वती का पुत्र कार्तिकेय हुआ। जब कार्तिकेय बड़ा हुआ तब उसने तारकासुर का वध कर दिया। स्कंदमाता को कार्तिकेय की माँ कहा गया है।
भवदीय
पं. मधुसूदन पाण्डेय
व्यवस्थापक
श्री पीठाधीश्वर पीठ त्रिदेव मन्दिर
सुभाष चौक सरकण्डा बिलासपुर
छत्तीसगढ 495006

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