संजय ‘अनंत’ ©
भारतीय सिनेमा मे उनका योगदान.. इतना कुछ है याद करने को उनके निर्देशन मे बनी बेहतरीन फिल्मो की एक लंबी श्रृंखला.. आनंद, मिली, सत्यकाम, अभिमान, गोलमाल, चुपके चुपके, गुड्डी, अनुपमा । हर फ़िल्म का कथानक एकदम भिन्न ।फ़िल्म आनंद ने राजेश खन्ना को अमर किया तो फ़िल्म अभिमान अमिताभ के फ़िल्मी सफऱ का यादगार पड़ाव, जया याद की जाएगी फ़िल्म मिली और गुड्डी के लिए तो धर्मेन्द्र सत्यकाम के लिए और अपने मिडिलक्लास के फिल्मो मे प्रतिनिधि अमोल पालेकर गोलमाल के लिए… ऋषि दा ने इन सब को अमर कर दिया, आप निर्देशन मे वेरायटी देखिए, मिली, आनंद जैसी संजीदा फ़िल्म तो गोलमाल व चुपके चुपके बावर्ची जैसी सहज अश्लीलता दूर हास्य फिल्मे , आज भी ये दोनों फिल्मे टीवी चैनल पर देखी जाती है, लोग अब भी अमोल पालेकर और उत्पल दत्त की जबरदस्त केमिस्ट्री को याद करते है, ठहाके लगा कर हॅसते है
ऋषि दा का जो कद है उनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण है, पात्रों को वे उभारते है, उन्हें अमर कर देते है फ़िल्म आनंद को ही लीजिए, आनंद के रूप मे राजेश खन्ना तो अमर हो गए किन्तु भास्कर बेनर्जी के रूप मे अमिताभ भी उभर कर सामने आते है, मिली मे अमिताभ एक गुस्सैल, एकांत प्रिय व्यक्ति तो जया चुलबुली अल्हड़। गुड्डी ने तो जया जी को अमर कर दिया, ये ऋषि दा के अद्भुत निर्देशन का कमाल था ,।
ज़ब आप ऋषि दा की अद्भुत कृति अभिमान देखते है तो ऐसा लगता है आप अमिताभ और जया के साथ होऔर सब कुछ आप के सामने व्यतीत हो रहा हो, आनंद मे आप राजेश खन्ना के पात्र के साथ एकरस हो जाते है, तो आप फ़िल्म खूबसूरत मे रेखा के साथ, अशोक कुमार के साथ एक हाई मिडिल क्लास परिवार के घर मे प्रवेश कर उनके जीवन को करीब से देखते है
ऋषि दा की फ़िल्म मे काम करने का मतलब हमेशा के लिए अमर हो जाना, कोई भी बड़े से बड़ा अभिनेता या अभिनेत्री उनकी फ़िल्म मे काम करने को एक अवसर के रूप मे देखते थे
हमारी हिन्दी फ़िल्म के संसार को अपनी बेहतरीन फिल्मो से अलंकृत करने वाले ऋषि दा हमेशा याद किए जाएंगे।