श्रावण मास में श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा स्थित त्रिदेव मंदिर में सावन महोत्सव एवं परम पावन पुरुषोत्तम मास पर श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारूद्राभिषेकात्मक महायज्ञ 4 जुलाई से लेकर 31अगस्त तक प्रातः8:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक किया जा रहा है,तत्पश्चात श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महाआरती दोपहर 1:00 बजे किया जाता है।श्री प्रवीण शुक्ला,श्रीमती सुनीता शुक्ला,शास्वत शुक्ला पूजन एवं अभिषेक में सम्मिलित हुए।
पीताम्बरा पीठ में 18 जून से प्रारंभ पीताम्बरा हवनात्मक महायज्ञ 27 नवंबर 2023 तक निरन्तर चलेगा।जिसमें 36 लाख आहुतियाँ दी जाएगी।प्रतिदिन रात्रि 8:30 से रात्रि 1:30बजे तक हवनात्मक महायज्ञ तत्पश्चात रात्रि1:30बजे ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का महाआरती किया जा रहा है।
पीताम्बरा पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि श्रावण भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता हैं भगवान शिव को मृत्युंजय भी कहा जाता है मृत्युंजय अर्थात मृत्यु पर विजय। एक बार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मृकंडु मुनि ने कठोर तपस्या की।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए| मृकंडु ने उनसे विनती की -हे प्रभु! मुझे पुत्र प्रदान करें।शिव ने पूछा -कैसा पुत्र चाहिए भक्त? ऐसा कि जिसकी आयु तो लंबी हो किंतु गुण कोई न हो, अथवा जो बुद्धिमान हो, गुणी हो किंतु जिसकी आयु मात्र सोलह वर्ष की हो।मुनि ने कहा – भगवान! मुझे गुणवान पुत्र चाहिए।
शिवजी ने कहा – “तथास्तु!” यह वरदान देकर शिवजी अंतर्धान हो गए।समय आने पर मृकंडु की पत्नी मरुद्वती ने पुत्र को जन्म दिया।अनेक ऋषि-मुनियों ने आकर प्रसन्नता जताई और बच्चे को आशीर्वाद दिया| ऋषि-मुनियों की उपस्थिति में ही मृकंडु दंपति ने बालक का नाम मार्कंडेय रखा।बालक मार्कंडेय बहुत मेधावी निकला।सोलह वर्ष की आयु से पहले ही उसने वैदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया।उसके आचार्यगण उसकी प्रशंसा करते न थकते।कहते-मृकंडु! बहुत भाग्यशाली हो तुम, जो ऐसा होनहार बेटा मिला।लेकिन मार्कंडेय के भाग्य को लेकर उसकी माता बहुत चिंतित रहती।मृकंडु जब उसे समझाते तो वह रोते हुए कहती –स्वामी! मैं भूल नहीं पाती कि शीघ्र ही हमारा बेटा हमसे हमेशा के लिए दूर हो जाएगा।एक दिन की बात है- कुमार मार्कंडेय पूजा के लिए फूल लेने वाटिका में गया हुआ था,लौटा तो उसने अपनी माता को रोते हुए देखा,समीप ही उदास भाव में उनके पिता बैठे हुए थे,माता को रोते हुए देख उसने पूछा –मां! तुम रो क्यों रही हो?मां कुछ न बोली, बस धीरे-धीरे सिसकियां भरती रही| इस पर मार्कंडेय ने पुन: पूछा –मां! तुम बोलतीं क्यों नहीं,बोलो मां, बोलो। कौन-सा दुख है तुम्हें? कहीं ऐसा तो नहीं कि जो तुम चाहती हो, वह मैं नहीं कर पाऊंगा? पर देखो मां! अब मैं बालक नहीं रहा| कल पूरे सोलह वर्ष का हो जाऊंगा। तुम्हारी मां इसीलिए तो रो रही है, पुत्र! पिता धीरे से बोले।मार्कंडेय ने उलझन भरे स्वर में पूछा –क्यों? सोलह वर्ष का होने में क्या हानि है?पिता बोले –बताता हूं, सुनो।तब मृकंडु ने उसके जन्म से संबंधित बातें उसे बताईं। सुनकर मार्कंडेय ने माता को धैर्य बंधाया, बोला –रोओ मत मां! मैं नहीं मरूंगा। भगवान शिव मृत्युंजय हैं| मैं उनसे अमरत्व का वरदान प्राप्त करूंगा।पिता ने आशीर्वाद देते हुए कहा–मेरे बच्चे, शिव की कृपा से तुम्हें सफलता मिले।मार्कंडेय माता-पिता से आशीर्वाद लेकर वन में चला गया,जाते समय माता ने शिव से प्रार्थना की –हे सदाशिव, मृत्युंजय! मेरा पुत्र आपके आसरे है, हे देव! इसकी रक्षा करना।अगले दिन प्रात:काल मार्कंडेय ने सागर तट पर जाकर गीली मिट्टी से शिवलिंग बनाया।उस पर पुष्प चढ़ाए और शिव का ध्यान लगाकर बैठ गया,रात होने पर वह प्रभु के सामने नाचने और गाने लगा,तभी अचानक यमराज वहां आ पहुंचे और बोले तुम्हारी आयु पूरी हुई,इस संसार से चलने के लिए तैयार हो जाओ।मार्कंडेय बोले –थोड़ी देर ठहरिए महाराज! जब तक मैं अपनी उपासना पूरी कर लेता हूं।”यमराज ने गुस्से से कहा – “मूर्ख! क्या तू जानता नहीं कि मृत्यु किसी का इंतजार नहीं करती।
मार्कंडेय ने कहा –कृपा कर मेरी उपासना में बाधा मत डालिए।मेरी उपासना पूरी होते ही आप मुझे अपने लोक ले चलना।यमराज और भी क्रोधित होकर बोले –मूर्ख! क्या तू समझता है कि शिव की शरण लेकर तू मुझसे बच जाएगा? तुझे अभी मालूम हो जाएगा कि काल के पाश से कोई नहीं बच सकता।यह कहकर जैसे ही यमराज पाश फेंकने को उद्यत हुए, तभी एक चमत्कार हुआ,एकाएक वहां शिव प्रकट हो गए।मृत्यु के स्वामी को देखकर यमराज ठिठक गए।मार्कंडेय शिव के चरणों में गिर गया शिव ने उसके मन की इच्छा ताड़ ली और अमरत्व प्रदान कर दिया।