दिव्य दार्शनिक प्रवचन में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कृपा प्राप्त प्रचारिका सुश्री श्रीश्वरी देवी जी ने महापुरुष की पहचान के बारे में बताते हुए कहा कि वास्तविक महापुरुष कभी भी किसी को संसार का सामान नहीं देते। महापुरुष जानते हैं ये संसार नशा पैदा करता है, अहंकार पैदा करता है जो अहंकार जीव को ईश्वर से विमुख कर देता है । जैसे हितेशी माता पिता अपने पुत्र को जहर पीते नहीं देख सकते उसी प्रकार महापुरुष भी जीव का पतन होते नहीं देख सकते। महापुरुष रिद्धि–सिद्धि के चमत्कार भी नहीं दिखाते, अपितु जो बाबा लोग इन सिद्धियों का चमत्कार दिखा कर लोगों को भरमाते हैं वो नरकीय लोकों को प्राप्त होते हैं । भागवत में भगवान अपने श्री मुख से स्वयं कहते है कि जो मुझसे प्रेम करते है वो रिद्धि– सिद्धि के चमत्कार इत्यादि के चक्कर में कभी नहीं पड़ते । मेरे वास्तविक भक्त तो ये रिद्धि–सिद्धि देने पर भी ठुकरा देते हैं। वास्तविक महापुरुष श्राप नहीं देते महापुरुषों का हृदय तो इतना कोमल होता है कि जो उनका अहित करते हैं उनका भी वो हित ही सोचते हैं ।

अतएव अनिष्ठ करने के दृष्टिकोण से कोई महापुरुष श्राप नहीं दे सकता। इसी प्रकार से वास्तविक महापुरुष आशीर्वाद भी नहीं देते । बिना शरणागति के बिना साधना के कोई भी महापुरुष किसी जीव को आशीर्वाद नहीं दे सकता । सर्व प्रथम जीव को किसी वास्तविक संत की पूर्ण शरणागति करनी होगी और उनके सानिध्य में रहकर ही साधना करनी होगी, साधना करते–करते जब अंतःकरण पूर्ण शुद्ध हो जायेगा तब वही महापुरुष हमें आशीर्वाद देंगे अर्थात कृपा करेंगे और तत्काल हमें ईश्वर की प्राप्ति हो जायेगी। इसी को दीक्षा देना कहा गया है, शास्त्रों में अर्थात् वास्तविक महापुरुष अंतःकरण की शुद्धि के पश्चात ही जीव को दीक्षा देता है । वास्तविक महापुरुष की अंतिम पहचान बताते हुए पूज्य दीदी जी ने कहा कि उनका संग करने से संसार से वैराग्य और ईश्वर में अनुराग अपने आप बढ़ने लगता है ।

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