
प्रवीर भट्टाचार्य



सूर्य देव और छाया के पुत्र न्याय के देवता भगवान शनि देव की जयंती शुक्रवार को मनाई जा रही है। जेष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनिदेव का जन्म हुआ था। मानव कुंडली में भी शनि देव का प्रभाव सर्वाधिक माना जाता है, उनकी कुदृष्टि होने से जातक को गंभीर संकट का सामना करना पड़ता है। प्रत्येक शनिवार के साथ शनि जयंती पर शनिदेव की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि की कुदृष्टि से राहत मिलती है, इसीलिए शनि जयंती महत्वपूर्ण पर्व है।

शनि जयंती पर बिलासपुर के भी अभी शनि मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। मंदिर पहुंचे श्रद्धालु शनिदेव का तेलाभिषेक कर रहे हैं , साथ ही उन्हें तिल, उड़द, नीले फूल, काला वस्त्र, लोहा आदि भी अर्पित किया जा रहा है। शनि मंत्रों का जाप करते हुए दीपदान की जा रही है।
राजकिशोर नगर स्थित श्री शनि धाम में भी सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है। यहां शनि देव की आराधना उपासना की जा रही है। विगत 22 वर्षों से यहां शनिदेव की पूजा अर्चना की जा रही है। मंदिर समिति का दावा है कि यहां जागृत शनिदेव से मांगी गई सकल मनोकामना अवश्य पूरी होती है, इसलिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना के लिए पहुंच रहे हैं। शनि जयंती के अवसर पर मंदिर की आकर्षक सजावट भी की गई है। दोपहर को यहां भोग प्रसाद भंडारे का भी आयोजन किया गया।

आज वट सावित्री व्रत भी

अल्पायु सत्यवान के साथ विवाह करते समय ही देवी सावित्री को ज्ञात था कि उनके पति की शीघ्र मृत्यु हो जाएगी, लेकिन उन्हें अपने सतीत्व पर पूरा भरोसा था, इसीलिए जब यमराज उनके पति का प्राण हर कर ले जाने लगे तो अपने सतीत्व के बल पर देवी सावित्री ने पति के प्राण वापस लाएं। उसी स्मृति में सुहागिन महिलाओं ने वट सावित्री का व्रत किया। वट वृक्ष के नीचे सुहाग की सामग्री, फल, फूल,मिष्ठान आदि अर्पित करते हुए कथा का श्रवण किया गया। वही व्रत धारी महिलाओं ने वट वृक्ष के चारों ओर सूत लपेटकर अखंड सुहाग की कामना की।

