साल भर की पूरी फीस लेने के बाद भी एलसीआईटी स्कूल द्वारा बच्चों का रिजल्ट रोके जाने और भरी कक्षा में बच्चों को और अन्य पेरेंट्स से सामने अभिभावक को जलील करने का आरोप, पीड़ित अभिभावक ने कलेक्टर के साथ बिलासपुर प्रेस क्लब में भी सुनाई आपबीती

आलोक मित्तल

प्राइवेट स्कूल पूरी तरह से टकसाल बन चुके हैं, जहां बच्चों को शिक्षा देने पर नहीं बल्कि उनके जरिए नोट छापने पर जोर होता है। इसमें सिर्फ प्राइवेट स्कूल का कसूर है, ऐसा भी नहीं है। अभिभावकों को भी यह वहम हो चुका है कि उनके बच्चे जितने बड़े और महंगे स्कूलों में पढ़ेंगे, उनका भविष्य उतना ही उज्जवल होगा। वैसे हर साल जब भी बोर्ड परीक्षा के नतीजे आते हैं तो मेरिट लिस्ट में शामिल आधे से अधिक बच्चे सरकारी और गुमनाम स्कूलों से होते हैं, फिर भी समाज में बनी परिपाटी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। ऐसे ही एक स्कूल से प्रताड़ित अभिभावक ने अपनी व्यथा बिलासपुर प्रेस क्लब में सुनाई।

उन्होंने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए बोदरी में स्थित एलसीआईटी पब्लिक स्कूल के खिलाफ बेहद गंभीर और चौंकाने वाले आरोप लगाए हैं ।कई बार इस तरह की सूचना मिलती है कि अस्पताल की फीस न चुकाने पर मरीज को नहीं छोड़ा जा रहा या फिर शव नहीं सौंपा जा रहा। यहां भी स्कूल प्रबंधन ने फीस ना पटाने पर मासूम बच्चों के साथ उनके पिता को भी अपमानित किया और बच्चों का मार्कशीट रोक लिया। जबकि पिता प्रमाण के साथ कह रहे हैं कि उन्होंने साल के शुरू में ही पूरी फीस पटा दी है। यानी जानबूझकर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। इस भया दोहन के खिलाफ अब आशीर्वाद वैली रायपुर रोड निवासी संजय कुमार सिंह ने मोर्चा खोल दिया है।

संजय सिंह का पुत्र सजत कुमार सिंह कक्षा नवमी और बेटी दीक्षा सिंह कक्षा चौथी में एलसीआईटी पब्लिक स्कूल में पढ़ती है। शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के शुरू में ही 11 अप्रैल 2022 को संजय सिंह ने अपने बेटे रजत कुमार सिंह का साल भर का स्कूल फीस ₹48,070 तथा बेटी दीक्षा की साल भर की फीस ₹39,349 पटा दी थी। अन्य निजी स्कूल की तरह एलसीआईटी स्कूल ने भी बच्चों के लिए यूनिफॉर्म, किताब आदि स्कूल प्रबंधन से ही खरीदने का दबाव बनाया। मजबूरी में संजय सिंह ने यह भी किया। दोनों बच्चों को स्कूल लाने ले जाने के लिए बतौर परिवहन शुल्क ₹18,070 भी उन्होंने एडवांस में जमा करा दिया ।

हैरानी तो उन्हें उस वक्त हुई जब मार्च 2023 में परीक्षा से पहले दोनों बच्चों का प्रवेश पत्र जारी किया गया तो उसके साथ यह टीप लिखा गया कि उनकी फीस बकाया है। इतना ही नहीं क्लास टीचर ने मासूम दीक्षा को पूरे क्लास के सामने डांटते हुए अपमानित किया कि जब उनकी पिता की हैसियत स्कूल की फीस पटाने की नहीं है तो वह स्कूल आती ही क्यों है । आप सोच सकते हैं कि किसी मासूम बच्चे पर इस तरह की बातों का कितना गहरा असर पड़ सकता है । जब संजय सिंह को इसकी जानकारी हुई तो वे भी हैरान रह गए। उन्होंने खुद स्कूल जाकर सभी पुराने रसीद दिखाएं और बताया कि उन्होंने तो पहले ही सारा फीस पटा दिया है । यह देख प्रबंधन ने अपनी गलती मानी और कहा कि अब ऐसी भूल नहीं होगी। लेकिन जिनकी फितरत में ही मक्कारी हो वे कब बाज आने वाले थे।

31 मार्च को जब संजय सिंह अपने बेटे सजत और दीक्षा का रिजल्ट लेने स्कूल गए तो अन्य अभिभावकों के सामने ही कक्षा नौवीं की शिक्षिका डोला मुखर्जी तथा कक्षा चौथी की शिक्षिका दीपिका दीवान ने भरी महफिल में बेहद अपमानजनक ढंग से उन पर चिल्लाते हुए कहा कि जब फीस पटाने की हैसियत नहीं है तो इतने बड़े स्कूल में क्यों पढ़ाते हो। साथ ही कहा कि जब तक दोनों बच्चों की फीस अदा नहीं होती दोनों बच्चों का रिजल्ट नहीं दिया जाएगा। संजय सिंह ने जब यह बताने का प्रयास किया कि वे तो फीस पहले ही पटा चुके हैं तो दोनों शिक्षिकाओं ने हाथ खड़ा करते हुए कह दिया कि यह सब कुछ स्कूल के डायरेक्टर और प्राचार्य के आदेश पर किया जा रहा है। उनका ही निर्देश है कि फीस ना पटाने वाले अभिभावकों को यूं ही सबके सामने जलील किया जाए। उनकी कोई भी दलील दोनों टीचर द्वारा ना मानने पर संजय सिंह ने स्कूल के डायरेक्टर प्रमोद जैन और प्राचार्य सबस्टिन जोसेफ से भी मुलाकात की लेकिन दोनों जैसे पहले से तैयार थे। उन्होंने भी कोई बात ना सुनते हुए एक बार फिर से संजय सिंह को अपमानित किया।

पूरी फीस पटाने के बाद भी स्कूल प्रबंधन इस तरह से अभिभावक और उनके बच्चों को इस तरह प्रताड़ित कर रहे हैं, यह हैरानी की बात है । जाहिर है स्कूल प्रबंधन का लक्ष्य बेहतर शिक्षा देना नहीं बल्कि एन केन प्रकारेण फीस बटोरना भर है। इसीलिए तो जिन शिक्षकों पर बच्चों का भविष्य बनाने की जिम्मेदारी है , वहीं शिक्षक बच्चों को प्रबंधन के इशारे पर मानसिक रूप से प्रताड़ित कर उन्हें हीन भावना से ग्रसित कर रहे हैं। अपने ही सहपाठियों के सामने बार-बार फीस ना पटा पानी का अपमान बच्चे बेवजह सह रहे हैं, जिससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है। बाल मन पर इसका इसकी गहरी छाप पड़ सकती है, लेकिन स्कूल प्रबंधन को इस सबसे क्या ? उन्हें तो बस मतलब है तो पैसों की उगाही से। इसके लिए वे अभिभावकों को, बच्चों को ब्लैकमेल करने से भी गुरेज नहीं कर रहे। ऐसे निजी स्कूलों के लिए तो अभिभावक वह गन्ना है जिसका एक एक बूंद निचोड़ लेने की कला में इन स्कूलों ने मास्टर डिग्री हासिल कर रखी है। संजय सिंह के मामले में तो हैरान करने वाली बात यह है कि पूरी फीस पटाने के बाद भी उन्हें इस तरह से बार-बार बेवजह जलील किया जा रहा है। पता नहीं उनसे किस बात का बदला एलसीआईटी स्कूल ले रहा है। यह भी पता नहीं कि इसी अनुभव से और कितने अभिभावक गुजर रहे होंगे जो बच्चों के भविष्य की परवाह कर अपने होंठ सील कर खामोश है। फिलहाल संजय सिंह ने कलेक्टर से शिकायत कर एलसीआईटी स्कूल के डायरेक्टर प्रमोद जैन और प्राचार्य सबस्टिन जोसेफ के साथ स्कूल की शिक्षिका डोला मुखर्जी , दीपिका दिवान और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग की है। बिलासपुर प्रेस क्लब में उन्होंने सभी दस्तावेज दिखाएं , जिससे यह प्रमाणित हो रहा है कि संजय सिंह सही कह रहे हैं। ऐसे में स्कूल शिक्षा विभाग को ऐसे स्कूल की जांच कर तत्काल ही ऐसे स्कूल के गेट पर ताला जड़ देना चाहिए, जो शिक्षा का मंदिर नहीं बल्कि एन केन प्रकारेण पैसा कमाने का अड्डा बन गया है । उन अभिभावकों को भी सोचना होगा जो बड़े और महंगे स्कूलों में एडमिशन के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उन्हें आखिर में इस तरह से जलील होना पड़ता है। अपने ही सहपाठियों के सामने बार-बार लज्जित होने वाले बच्चों का भविष्य क्या सचमुच सुनहरा हो सकता है ? यह भी सोचने की जरूरत है।

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