बृजेश सिंह कौशिक
सत्यदेव दुबे देश के शीर्षस्थ रंगकर्मी और फ़िल्मकार थे। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 19 मार्च 1936 में जन्मे सत्यदेव दुबे देश के उन विलक्षण नाटककारों में थे, जिन्होंने भारतीय रंगमंच को एक नई दिशा दी। उन्होंने फ़िल्मों में भी काम किया और कई पटकथाएं लिखीं. देश में हिंदी के अकेले नाटककार थे, जिन्होंने अलग-अलग भाषाओं के नाटकों में हिंदी में लाकर उन्हें अमर कर दिया।
सत्यदेव दुबे ने श्याम बेनेगल की फ़िल्म ‘भूमिका’ के अलावा कुछ अन्य फ़िल्मों के लिए भी कहानी और संवाद लिखे थे। उनके द्वारा चलाए जाने वाले थियेटर कार्यशाला को पेशेवर और शौकिया तौर पर थियेटर करने वाले लोग एक समान पसंद किया करते थे। निर्देशक के रूप में उन्होंने 1956 में काम शुरू किया। वे अनेक मराठी व हिन्दी फ़िल्मों के निर्देशक रहे हैं। सत्यदेव ने कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया और कुछ फ़िल्मों का निर्देशन भी किया है। उन्होंने निर्देशक श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी की फ़िल्मों के संवाद और पटकथा भी लिखी।
धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग को सबसे पहले सत्यदेव दुबे ने ही लोकप्रियता दिलाई. इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली।
हमारे बिलासपुर के प्रसिद्ध लेखक श्री द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने अपनी पुस्तक ‘याद किया दिल ने’ में ‘मोहल्ला गोंडपारा’ शीर्षक में सत्यदेव दुबे के बारे में विस्तार से लिखा है।
फिल्म और नाटक की दुनिया में बिलासपुर का नाम स्थापित करने वाले सत्यदेव दुबे का निधन 25 दिसंबर 2011 को मुंबई में हो गया।