

बिलासपुर रेलवे जोन के अधिकारियों द्वारा खेल के साथ जिस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है उसके चलते बिलासपुर में खेल गतिविधियां अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यह आरोप लगाते हुए पूर्व पार्षद और भाजपा विधानसभा प्रभारी वी रामा राव ने कहा कि साल 2003 में जिस वक्त बिलासपुर रेलवे जोन बना था तब 5000 करोड़ रुपए का टर्नओवर था जो आज बढ़कर 23000 करोड रुपए हो चुका है। रेलवे की सकल आय में 25% योगदान तो केवल बिलासपुर जोन का ही है । रेलवे का अपना वेलफेयर फंड भी है, लेकिन इसका इस्तेमाल कर्मचारी हित और खेलों को बढ़ावा देने की बजाय अधिकारी अपने बंगलों को सवारने में कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वर्तमान रेलवे अधिकारियों, खासकर खेल अधिकारियों की उपेक्षा के चलते बिलासपुर में सभी तरह के टूर्नामेंट बंद हो चुके हैं। एक दौर था जब बिलासपुर रेलवे नॉर्थ ईस्ट इंस्टिट्यूट मैदान में राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल मैच हुआ करते थे, तो वही प्रदेश स्तर के क्रिकेट टूर्नामेंट भी हुए हैं। इसके अलावा खेल गतिविधियां भी निरंतर हुआ करती थी, लेकिन खेल अधिकारियों की उपेक्षा के चलते यह सब अतीत की बात हो चुकी है। रेलवे क्षेत्र से हर साल बड़ी संख्या में प्रतिभावान खिलाड़ी निकलते थे जो प्रतिदिन रेलवे के दोनो मैदानों नॉर्थ ईस्ट इंस्टिट्यूट मैदान और सेकरसा मैदान में प्रैक्टिस किया करते थे। इन खिलाड़ियों का खेल के प्रति रुचि की एक बड़ी वजह थी कि हर साल रेलवे 45 खिलाड़ियों का खेल कोटे से रेलवे में भर्ती करता था। लेकिन इसे भी रेलवे ने साल 2015 से बंद कर दिया, जिससे खिलाड़ियों का खेल के प्रति रुझान कम हो चुका है।

इससे एक तरफ खिलाड़ियों को रोजगार का अवसर नहीं मिल रहा है तो वही खेल गतिविधियों को छोड़कर रेलवे क्षेत्र के युवा नशे की ओर बढ़ रहे हैं। खेल कोटे के आकर्षण की वजह से ही हर साल बिलासपुर से कई प्रतिभावान खिलाड़ी सामने आते थे ,जो शहर और प्रदेश का नाम रोशन करते थे। खेल कोटे के बंद हो जाने से नई प्रतिभाओं के सामने आने का सिलसिला भी खत्म हो चुका है। वी रामराव ने आरोप लगाया कि रेलवे के मौजूदा अधिकारियों की खेल गतिविधियों में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे अपने कार्यकाल का वक्त बिताकर किसी और जगह पोस्टिंग पर चले जाते हैं। बिलासपुर के खेल मैदान अपने सबसे बदहाल दौर से गुजर रहे हैं। सेकरसा मैदान में 2015 में निर्माण की तैयारी चल रही थी ,जिसके चलते ग्राउंड को खोद तो दिया गया लेकिन फिर काम आगे नहीं बढ़ा। आज ग्राउंड के चारों तरफ लंबे-लंबे घास उग आए हैं, जिसकी सफाई नहीं होती। यहां खिलाड़ियों को भी किसी तरह की सुविधा नहीं मिल रही। यही हाल रेलवे नॉर्थ ईस्ट इंस्टीट्यूट मैदान का है। मैदान की देखरेख बिल्कुल भी नहीं की जा रही। एक तो रेलवे द्वारा किसी तरह की खेल गतिविधियों का संचालन यहां नहीं हो रहा ऊपर से जब कोई अन्य संस्थान यहां टूर्नामेंट कराती है तो उनसे भी 10,000 रु प्रति दिन का किराया लिया जाता है ।

पूर्व पार्षद और भाजपा विधानसभा प्रभारी व्ही रामराव ने आगे कहा कि एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार खेलो इंडिया अभियान की तहत हर तरह के खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित कर रही है, ताकि नई खेल प्रतिभाएं सामने आये और भारत के खिलाड़ी विश्व पटल पर अपना नाम रोशन कर सके। उसके उलट बिलासपुर रेलवे द्वारा खेल गतिविधियों का गला घोटा जा रहा है।
रामाराव कहते हैं कि बिलासपुर और रेलवे क्षेत्र में खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और नए खिलाड़ियों को बड़े मुकाबले देखने का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से इन संस्थानों को यह मैदान निशुल्क उपलब्ध कराना चाहिए, लेकिन रेलवे के अधिकारियों ने इन मैदानों को आय का जरिया बना लिया है।

कुछ समय पहले तो लोगों के मैदान में प्रवेश और मॉर्निंग एवं इवनिंग वॉक के लिए भी शुल्क वसूलने की योजना बनाई गई थी । वह तो भला हो जनप्रतिनिधियों का जिनके विरोध के बाद रेलवे को अपनाया तुगलकी फरमान वापस लेना पड़ा। वर्तमान परिस्थितियां खेल और खिलाड़ियों को पूरी तरह से हतोत्साहित कर रही है। यही वजह है कि लंबे अरसे से बिलासपुर रेलवे क्षेत्र से कोई भी बड़ा नाम खेल के क्षेत्र में उभर कर नहीं आया है। रेलवे में खेल कोटे से भर्ती बंद होने का भी प्रतिकूल असर पड़ा है।
पूर्व पार्षद और विधानसभा प्रभारी भाजपा रामा राव कहते हैं कि उन्होंने कई मर्तबा रेलवे के अधिकारियों से इस संबंध में चर्चा की है, लेकिन अधिकारी इस संबंध में रेलवे बोर्ड के पाले में गेंद डालकर पल्ला झाड़ लेते हैं। रामा राव का कहना है कि ऐसे छोटे-छोटे मामलों में रेलवे के स्थानीय अधिकारी ही सक्षम है लेकिन उनके द्वारा किसी तरह का प्रपोजल बोर्ड को नहीं भेजा जाता, क्योंकि वे स्थानीय खिलाड़ियों और खेल गतिविधियों के प्रति उपेक्षा का भाव रखते हैं। रामराव आरोप लगाते हैं कि अन्य संस्थाओं की तरह रेलवे अपने सीएसआर मद का उपयोग स्थानीय लोगों और कर्मचारियों के हित में नहीं कर रहा जो बिलासपुर का दुर्भाग्य है। रामा राव का कहना है कि ऑल इंडिया फुटबॉल टूर्नामेंट कभी इन मैदानों की पहचान थी। वही कई और तरह की खेल गतिविधियां भी रेलवे के इन दोनों मैदानों में हुआ करती थी, जिन्हें बंद कर दिया गया है । मैंदाना राजनीति के अखाड़े बन गए हैं, जिसके चलते खेल गतिविधियां हाशिए पर चली गई है। रामा राव इसके लिए पूरी तरह से रेलवे के मौजूदा अधिकारियों को दोषी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि रेलवे जोन के लिए जिस तरह के जन आंदोलन की आवश्यकता पड़ी थी, शायद मौजूदा परिस्थितियों में उसी तरह के एक और बड़े आंदोलन की आवश्यकता नजर आ रही है।
रामा राव कहते हैं कि एक तरफ केंद्र सरकार खेलो इंडिया जैसे अभियान चलाकर खेल गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है तो वहीं केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले रेलवे के अधिकारी खेलों को लेकर पूरी तरह से उदासीन है।
