
आकाश दत्त मिश्रा

मुंगेली के झगड़ाहट्टागांव के खेत में 13 अक्टूबर की शाम बोरी में बन्द मिली बच्ची की लाश की गुत्थी को कोतवाली पुलिस ने सुलझा लिया है। जैसा कि S भारत न्यूज़ पहले ही खुलासा कर चुका है, इस मामले में हत्यारे सौतेले पिता को गिरफ्तार किया गया है।
इस कहानी की शुरुआत आज से 12-13 साल पहले कानपुर में हुई थी, जहां मुंगेली क्षेत्र में रहने वाला राजू अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ कानपुर में रहकर रोजी मजदूरी करता था। उसी दौरान इसी क्षेत्र का मनोज कुर्रे भी वहीं रहकर रिक्शा चलाता था। एक ही क्षेत्र से होने से इन सब में आपस में जान पहचान थी। मनोज अक्सर राजू के घर जाता था और इसी दौरान मनोज और लक्ष्मी के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी। बताया जा रहा है कि राजू शराबी था और अक्सर बीमार भी जाता था।
उधर मनोज विकलांग था, इसलिए लक्ष्मी धीरे-धीरे उसके करीब जाने लगी । इसकी भनक राजू को भी थी लेकिन लक्ष्मी पर उसका जोर नहीं चलता था। इसी दौरान लक्ष्मी ने एक बेटी को जन्म दिया। यह बात हमेशा रहस्य ही रही कि लक्ष्मी ने जिस बेटी संध्या को जन्म दिया था उसका जैविक पिता राजू है या मनोज। लेकिन मनोज का भरोसा था कि यह बेटी उसी की है इसलिए वह उस पर अपना हक जताता था। इसी बीच बीमारी की वजह से करीब 4 साल पहले राजू की मौत हो गई। जिसके बाद लक्ष्मी मनोज और अपनी बेटी को लेकर वापस अपने मायके भरवा गुड़ान आ गई। यही कुछ समय तक रहने के बाद अचानक लक्ष्मी भी चल बसी।

बताया जा रहा है कि लक्ष्मी की बेटी अक्सर बीमार रहती थी। वह पूरी तरह से मनोज कुर्रे पर ही आश्रित थी। ना तो वह चल पाती थी। ना उठ- बैठ और बोल पाती थी। मनोज ने अपने स्तर पर कई जगह उसका इलाज कराया लेकिन फिर भी कुछ असर ना हुआ।
इसी बीच लक्ष्मी के माता-पिता भी गांव छोड़कर कहीं और चले गए। पीछे अकेला छुट गया मनोज कुर्ते अपाहिज बेटी के साथ रह गया। इसी बीच उसका मकान भी टूट गया। सर पर छत न रहने पर बीमार, अपाहिज बेटी को लेकर मनोज कुर्रे इधर से उधर दर दर भटकता रहा। बेटी को शौच कराने से लेकर खाना खिलाने जैसा हर काम मनोज को ही करना पड़ता था। और यह भी स्पष्ट नहीं था कि यह बेटी उसी की है या फिर राजू की।
एक दिन उसके सब्र का बांध टूट गया और हारकर उसने चुनरी से गला घोट कर सात आठ साल की बच्ची की जान ले ली। फिर उसे बोरी में भरकर झगड़ हट्टा के खेत में फेंक दिया। इस वारदात को अंजाम देने के बाद मनोज कुर्रे उर्फ दाऊ मुंगेली आ गया। जहां उसने एक बेकरी में काम कर 300 रु कमाए। इसी पैसे से पहले वह दुर्ग पहुंचा। फिर वहां से वापस कानपुर चला गया और पहले की तरह ही रिक्शा चला कर अपना गुजारा करने लगा। लेकिन पुलिस उस तक पहुंच गई और उसे गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस के लिए भी मामले को सुलझाना आसान नहीं था। सबूत के तौर पर उसके पास केवल मनोज की एक तस्वीर थी, जिसके सहारे ही पुलिस पहले दुर्ग पहुंची ।जहां से जानकारी जुटाने के बाद टीम कानपुर पहुंची और वहां चप्पे-चप्पे पर उसकी तलाश की गई। इतने बड़े शहर में मनोज को ढूंढना भुंसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसा था। पुलिस को पता चला कि मनोज हरिहर धाम में एक झोपड़ी में रहता है। वहां पुलिस उसका इंतजार करती रही, लेकिन वह नहीं आया। पुलिस की टीम स्टेशन पर भी रात भर उसकी प्रतीक्षा करती रही, लेकिन वह नहीं दिखा । जब मनोज सुबह 7:00 बजे रिक्शा गैरेज में अपना रिक्शा जमा करने आया तो पुलिस की टीम ने उसे दबोच लिया। दिव्यांग मनोज अपनी चाल की वजह से पहचान में आ गया।
यह कहानी बेहद मार्मिक और इंसानी रिश्तो के अलग-अलग आयाम दिखाने वाली है। किसी की नजर में मनोज कुर्रे गुनाहगार है तो ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो उसकी मजबूरी जानकर उसके प्रति सहानुभूति भी रखते हैं। लेकिन कानून अपना काम कर रहा है। पुलिस ने हत्या के आरोप में मनोज कुर्रे को गिरफ्तार किया है।
यह कहानी ह्रदय विदारक है। इस कहानी के पात्र एक-एक कर मौत के आगोश में समाते चले गए। पहले राजू की मौत हुई । फिर लक्ष्मी चल बसी। लक्ष्मी से विवाह करने की वजह से मनोज कुर्रे भी अपने समाज और जाति से बाहर कर दिया गया। फिर लक्ष्मी की बेटी भी मनोज के हाथों मारी गई और अब मनोज कुर्रे जेल चला गया। इससे बड़ी बदनसीबी और क्या हो सकती है। मनोज कुर्रे को अपनी बेटी की हत्या इसलिए करनी पड़ी क्योंकि एक जिंदा लाश को ढोने की ताकत उसमे नहीं बची थी।
एक सप्ताह के भीतर कोतवाली पुलिस की यह दूसरी बड़ी कामयाबी है जिसमें पुलिस अधीक्षक के निर्देशानुसार
थाना प्रभारी गौरव पांडेय द्वारा तैयार की गई टीम में
एस के मिरी ए एस आई
मनीष गेंदले
परमेश्वर जांगड़े,
योगेश यादव वासुदेव पटेल
बुन्देल पटेल शामिल थे।
