
आकाश दत्त मिश्रा

जीते जी इंसान तमाम परेशानियों से मुक्त नहीं हो पाता , लेकिन मुंगेली में तो मौत के बाद भी परेशानियों से मुक्ति नहीं। आज भी मुंगेली पड़ाव चौक बायपास रोड स्थित मुक्तिधाम की जर्जर स्थिति की वजह से हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से अंतिम संस्कार भी तमाम परेशानियों के बीच संपन्न करना पड़ रहा है। नया जिला बनने के बाद प्रशासन ने भले ही विकास के लाख दावे किए हो , पर सच तो यह है कि मुंगेली में एक कायदे का श्मशान घाट तक नहीं है। मुंगेली पड़ाव चौक बायपास रोड पर पुल के पास स्थित मुक्तिधाम की हालत पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। बरसात के दिनों में कच्चे रास्ते से मुक्तिधाम तक पहुंचना दुरूह बना हुआ है। जहां-तहां उग आयी झाड़ियों के बीच किसी तरह से लोग शवों को लेकर मुक्तिधाम पहुंचते हैं, जिसके बाद तमाम परेशानियों से उन्हें दो-चार होना पड़ता है।
एक तो अपने निकट के किसी व्यक्ति की मृत्यु का शोक, ऊपर से अंतिम संस्कार में भी तमाम परेशानियों से लोगों का विश्वास प्रशासन पर से उठने लगा है ।मुक्तिधाम की बदहाल स्थिति नयी नहीं है। वर्षों से यहां यही हाल है। मुंगेली आगर नदी के किनारे स्थित मुक्तिधाम तमाम सुविधाओं से अछूता है। यहां पर ना तो लोगों के बैठने की व्यवस्था है, ना ही पेयजल की। मुक्तिधाम के चारों ओर गंदगी पसरा हुआ है। जहां तहां जंगली झाड़ियां उग आई है, जिनके बीच सांप, बिच्छू और तमाम जहरीले जीव जंतु खतरा बन सकते हैं । मृतक के साथ पहुंचे परिजन और नाते रिश्तेदारों के लिए यहां किसी प्रकार की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। बैठने की व्यवस्था ना होने पर लोगों को जमीन पर ही बैठना पड़ता है । दूसरे मौसम में तो फिर भी यह गवारा हो सकता है, लेकिन बरसात के मौसम में ऐसा करना परेशानियों भरा है। यहां बरसों पहले लगाया गया टिन का शेड जर्जर होकर उखड़ गया है।
पुराने जर्जर टिन के शेड की वजह से बारिश के दौरान यहां किसी तरह की सुरक्षा उपलब्ध नहीं हो पाती। विडंबना है कि बारिश के दौरान बरसात का पानी ठीक चिता पर गिरता है। इस वजह से मृतक का दाह संस्कार भी करना मुश्किलों भरा हो चुका है। एक तो शेड ना होने की वजह से लोग भी अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के दौरान पूरी तरह भींग जाते हैं, वहीं शेड ना होने से भीगी लकड़ियों से अंतिम संस्कार चुनौतीपूर्ण बन रहा है। बारिश के दौरान शव के साथ लकड़िया भी गीली हो जाती है और फिर आग नहीं पकड़ती, लिहाजा विधि विधान विरुद्ध लोगों को अपने ही परिजन पर पेट्रोल या केरोसिन छिड़ककर अंतिम संस्कार करना पड़ता है। यह स्थिति अपनों के लिए बेहद ही मार्मिक और दुखद बन जाती है। किसी वजह से जब कोई शव यहां शाम को पहुंचता है तो अंतिम संस्कार होते होते पूरे परिसर में अंधेरा फैल जाता है, क्योंकि यहां रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। जिस वजह से भी लोगों को काफी परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है ।
ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन को नहीं है। अलग-अलग माध्यमों से इस ओर ध्यान आकर्षण के बावजूद न तो जिला प्रशासन और ना ही नगरी निकाय की ओर से किसी तरह की सुविधा जुटाने का प्रयास किया गया। लोग कहते है, मुंगेली में ना तो लोग चैन से जी पा रहे हैं और ना ही मरने के बाद ही उन्हें चैन मिल पा रहा है।
विकसित शहर कि कुछ आवश्यकताएं होती है, जिनमें एक सुव्यवस्थित, सर्वसुविधायुक्त मुक्तिधाम भी प्रमुख है। अगर मुंगेली में यह भी नहीं है तो फिर नया जिला बनने का क्या लाभ ? आज भी मुंगेली बाबा आदम के जमाने में बने जर्जर मुक्तिधाम में अपनों का अंतिम संस्कार करने को विवश है। कई बड़े शहरों में दानदाताओं द्वारा बेहतर मुक्तिधाम और श्मशान घाट का निर्माण कराया गया है। मुंगेली में भी धन्ना सेठों की कमी नहीं है लेकिन उनकी ओर से भी अब तक किसी तरह का प्रयास नहीं हुआ है। मुंगेली में कब्रिस्तान के हालात फिर भी ठीक है ,उसकी तुलना में मुक्तिधाम बेहद जर्जर , बदहाल और सुविधाहिन हो चुका है । इसे लेकर जल्द ही कुछ करने की आवश्यकता है, क्योंकि विधि का विधान यही है कि हर किसी को एक न एक दिन यहां आना ही पड़ेगा, चाहे इच्छा हो या अनिच्छा। कम से कम दुनिया से विदा होने के बाद अंतिम याद तो सुखद हो, यह प्रयास करने की आवश्यकता है।