माँ ने गर्भ में ही बेटी को मारने के लिए खा लिया था चुना-गुड़ाखु , सड़क किनारे तड़पती गर्भवती को मनीषा किन्नर ने दिया सहारा ,कराया डिलीवरी और अब अनाथ बेटी को माँ बनकर दे रही सहारा ,अब तक नौ अनाथों का नाथ बनी मनीषा किन्नर गढ़ रही उनका भविष्य

पाखंजुर
बिप्लब कुण्डू  
“किन्नर” जो हमेशा आपकी और हमारी खुशियों में बुलाये या बिन बुलाये ही शामिल हो जाते है, जो हमेशा आपके और हमारे लिए दुआएं मांगते है कि हमारी झोली हमेशा खुशियों से भरी रहें, लेकिन अक्सर उनकी खुद की झोली हमेशा खाली रह जाती है | “उनके गालियों और तालियों से भी उड़ते है खून के छींटे ,और ये जो गाते बजाते उधम मचाते हर चौक-चौराहों पर उठा देते है अपने कपड़े ऊपर दरअसल उनकी अभद्रता नहीं ,बल्कि उस ईश्वर से प्रतिशोध लेने का उनका एक तरीका है ,जिसने उन्हें बनाया है या फिर नहीं बनाया” कृष्णमोहन झा की ये पंक्तिया किन्नरों की दशा बयां करती है | ये किन्नर समाज से दूर रहकर भी हमारे ही समाज का एक अंश है | लोगों की खुशियों में शामिल होना ,उन्हें दुआएं देकर उनसे इनाम लेना इनके ज़िन्दगी का एक हिस्सा होता है |जहाँ एक ओर समाज में लोग किन्नरों को हेय दृष्टि से देखते है , जहाँ किन्नरों को समाज हमेशा अपने से दूर रखता है वही दूसरी ओर पखांजूर में रहने वाली मनीषा किन्नर उसी समाज के अनाथ बच्चों को सहारा देकर उनके शिक्षा और बेहतर भविष्य देने की दिशा में निरंतर काम कर रही है | मनीषा एवं उनके साथियों ने अब तक नौ अनाथों को न सिर्फ सहारा दिया है बल्कि उनकी देखभाल और शिक्षा की दिशा में माता-पिता की भूमिका भी निभायी है |मनीषा एवं उनके साथियों के पास खुद का घर तक नहीं है और न ही कोई रोजगार वावजूद इसके ईन मासूमों की हर छोटी-बड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शादी-व्याह और बच्चो के जन्म पर नाच-गाना कर पैसे इकठ्ठा करते है परन्तु जब अनाथ बच्चो को उनकी उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहरों में भेजने का वक़्त आया तब पैसो की ज़रूरत बढ़ने लगी , परन्तु मनीषा ईन मासूम बच्चो के भविष्य को बीच मझधार में नहीं छोड़ना चाहती थी लिहाज़ा उन्होंने बकरी,बत्तख और गायो को पालना शुरू किया और उससे होने वाले आमदनी को बच्चो की उच्च शिक्षा में लगाया | मनीषा ने एक अनाथ बालक को पढ़ाई के लिए विदेश सिंगापूर भी भेजा जहा से वो अपनी पढ़ाई पूरी कर अब कलकत्ता में नौकरी कर अपना भविष्य को बेहतर बना रहा है |शिक्षित समाज के एक माँ द्वारा अपने ही बच्चे को गर्भ में मारने के लिए चुना और गुड़ाखू खा लिया जाता है , जिसे रात को सड़क किनारे तड़पता देख शादी से नाच गा कर लौट रहे मनीषा एवं उनके साथी उसे अस्पताल ले आते है और जब अस्पताल वाले भी महिला के डिलीवरी कराने से कतराते है तो वो उन्हें अपने साथ अपने घर ले जाती है और डॉक्टर बुलाकर घर में महिला का सफल डिलीवरी करवाती है , परन्तु माँ द्वारा नवजात बेटी को अपने साथ ले जाने से साफ़ इंकार कर दिया जाता है ,पर जो समाज किन्नरों को अपने से दूर रखते है उसी समाज के ईस नवजात बेटी को मनीषा किन्नर अपना लेती है और उसका ख्याल एक माँ-बाप बनकर आज भी करती है | जब एक सड़क दुर्घटना में महाराष्ट्र के धनौरा गाँव का एक महज 6 माह का मासूम अपने माँ-बाप दोनों को ही खो देता है और यह खुद को सभ्य कहने वाला समाज अनाथ हो चुके उस बच्चे को अपनाने से इंकार कर देता है, ऐसे में जब यह ख़बर मनीषा किन्नर तक पहुँचती है तो वो उस अनाथ का नाथ बनकर उसे अपने पास ले आती है | समाज के प्रति ईस प्रकार की सेवा भावना रखने वाले, घर-घर जाकर सबको सुख-समृधि की दुआ देने वाले,दुसरों की खुशियों में शामिल होने वाले किन्नरों से जब समाज का उनके प्रति नजरिये की बात की गयी तो मनीषा किन्नर ने बताया कि समाज के लोगों का उनके प्रति मिलाजुला रवैया रहता है | कभी-कभी लोग उन्हें अपनी खुशियों में शामिल होने के लिए खुद ही बुलाते है और उनका आदर-सत्कार भी करते है परन्तु अधिकांश लोग उन्हें देखकर मुंह फेर लेते है तो कोई अपने घर का दरवाज़ा ही बंद कर लेता है तो कोई धिक्कारते हुए मजदूरी करने की सलाह भी दे बैठता है | लोगों के धिक्कार, ताना और हेय दृष्टि को अपनी किस्मत मान ये किन्नर रोजाना सज-धजकर अपने आँसुओ को अपने अन्दर ही समेटे हुए लोगों की खुशियों में शरिख होने पहुँचते है | मनीषा बताती है कि उनके जन्म के बाद जब उनके माता-पिता को ये पता चला कि वो किन्नर है तो वो उन्हें वही छोड़कर चले गए तब अनाथ मनीषा को एक किन्नर ने सहारा दिया | आज भी वो अपने परिवार के पास जाना चाहती है पर परिवार आज भी उसे अपनाने को तैयार नही इसलिए मनीषा ने अनाथ आश्रम खोलकर अनाथ बच्चो को माँ-बाप का प्यार और देखभाल देने का संकल्प लिया है ताकि कोई अनाथ माँ-बाप के प्यार से उसकी तरह वंचित न हो | मनीषा कई दफे स्थानीय जनप्रतिनिधियों और शासन से एक अनाथ आश्रम की गुहार लगा चुकी है परन्तु अब तक उसकी यह फ़रियाद सुनने वाला कोई आगे नहीं आया है परन्तु मनीषा का कहना है कि मै हार नहीं मानूंगी और जब भी मुझे कोई अनाथ मिलेगा मै उसे अपने साथ ले आऊँगी |
वाकई जहाँ समाज किन्नरों को अपने से दूर रखता है वही यही किन्नर लगातार समाज सेवा कार्य कर मिसाल कायम कर रहे है | मनीषा किन्नर एवं उनके साथियों के ईस मानवतापूर्ण सेवा भावना को का सालम |

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