मोहम्मद नासिर
कोटा एसडीएम आनंद रूप तिवारी के परिजनों को रविवार को कानन पेंडारी में वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं मिली तो उनके निर्देश पर सकरी नायब तहसीलदार अभिषेक राठौर ने एसडीओ विवेक चौरसिया को 3 घंटे तक थाने में बिठाकर उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया। इस मामले के सुर्खी पकड़ने और इस मुद्दे को बिलासपुर विधायक शैलेश पांडे द्वारा विधानसभा में उठाने की बात कहने के बाद अब डैमेज कंट्रोल करने के मकसद के साथ नायब तहसीलदार के मातहत नए पैंतरे आजमा रहे हैं। इसी मुद्दे पर बुधवार को राजस्व पटवारी संघ द्वारा कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर उल्टे पीड़ित विवेक चौरसिया के खिलाफ ही कार्यवाही की मांग कर दी गई । इस अटपटी मांग से खुद प्रशासन भी हैरान में है। रविवार को कोटा एसडीएम आनंदरूप तिवारी का परिवार कानन पेंडारी घूमने आया हुआ था। उसी दौरान वन विभाग के एसडीओ विवेक चौरसिया वहां पहुंच गए और अनजान लोगों की भीड़ को देखकर उन्होंने अपने ही कर्मचारी पर नाराजगी जाहिर की। यह बात एसडीएम के परिजनों को चुभ गई। इसकी सूचना एसडीएम अनूप तिवारी को मिली जिसके बाद उन्होंने संभव है कि अपने मातहत सकरी नायब तहसीलदार अभिषेक राठौर को निर्देशित किया। शाम को एसडीओ विवेक चौरसिया जैसे ही कानन पेंडारी से बाहर निकले वैसे ही सकरी के नायब तहसीलदार ने उनका नाम पूछा और नाम बताते ही उन्हें अपने साथ लेकर सकरी थाने पहुंच गए। वहां 3 घंटे तक उन्हें बिठा कर रखा गया । जब विवेक चौरसिया ने कार्यवाही की वजह पूछी तो यहां तक कहा गया कि चुप बैठिए, हमारे पास प्रशासनिक पावर है, कार्रवाई तो होगी ही। इस घटना ने प्रशासनिक निरंकुशता को जगजाहिर किया है। सिर्फ एसडीएम के परिवार को वीआईपी ट्रीटमेंट ना देने पर एसडीओ और कानन पेंडारी अधीक्षक को जिस तरह जिल्लत झेलनी पड़ी उसके बाद वन विभाग द्वारा इस मामले में मुख्यमंत्री और कलेक्टर को ज्ञापन सौंप कर कार्यवाही की मांग की गई। स्वयं कलेक्टर ने न्यायिक जांच कराने की बात कही थी इसलिए अब मामले को कुछ और रंग देने की कोशिश आरंभ हो गई है। बुधवार को तखतपुर राजस्व पटवारी संघ के अध्यक्ष और सदस्यों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर इस पूरे मामले को मनगढ़ंत और झूठा बताया और उल्टे उप वन मंडल अधिकारी विवेक चौरसिया के खिलाफ ही कार्यवाही की मांग कर डाली। जाहिर है इस मामले में एसडीएम कोटा और सकरी नायब तहसीलदार पर कार्यवाही की तलवार लटकने से हड़बडाये यह लोग अपने मातहतों द्वारा तमाम पैंतरों का इस्तेमाल कर रहे हैं । यहां तक कि इन दोषी अधिकारियों को बचाने के लिए पटवारी संघ ने धारा 144 का उल्लंघन करते हुए कलेक्ट्रेट में घेराव तक कर दिया, जिसके चलते यहां घंटों कामकाज भी प्रभावित हुआ। इसी को शायद उल्टा चोर, कोतवाल को डांटे कहते हैं। खुद को अति विशिष्ट समझने वाले लोग खुद और अपने परिवार के लिए वीआईपी ट्रीटमेंट को अपना अधिकार मान बैठे हैं और ऐसा नहीं करने पर इसी तरह प्रशासनिक गुंडागर्दी की जा रही है। इसी प्रशासनिक आतंकवाद के खिलाफ अब हो रही कार्यवाही को भी अलग रंग देने की कोशिश शुरू हो चुकी है। उचित तो यह है कि मामले की जांच हो और दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए । सिर्फ कुछ पटवारियों के एक ज्ञापन सौंप देने से यह फैसला नहीं हो जाता कि उस दिन की कार्यवाही उचित थी। मोटर व्हीकल एक्ट के नाम पर एक राजपत्रित अधिकारी के साथ इस तरह का बर्ताव सामान्य नहीं है। इसके पीछे के प्रशासनिक आतंकवाद को स्पष्ट समझा जा सकता है । अब भले ही दोनों अधिकारी खुद को पाक साफ और निर्दोष बता रहे हो लेकिन मीडिया ने सच उजागर कर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है। अब तो इस कार्रवाई पर प्रशासनिक मुहर लगनी बाकी है। वैसे भी बिलासपुर विधायक शैलेश पांडे ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ पुख्ता कार्यवाही की बात कहकर यह स्पष्ट कर दिया है कि अब इस तरह के पैंतरे खास काम नहीं आने वाले।