
शशि मिश्रा

बिलासपुर। मल्हार स्थित पीएम श्री जवाहर नवोदय विद्यालय में पढ़ने वाले 10वीं के छात्र हर्षित यादव की मौत ने पूरे सिस्टम की लापरवाही और प्रबंधन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बीमारी से तड़पते छात्र को न समय पर इलाज मिला, न वाहन की सुविधा। हॉस्टल की बदहाल स्थिति और स्टाफ की अनदेखी ने मिलकर एक मासूम की जान ले ली। हर्षित के पिता का दर्दनाक आरोप है—“समय पर इलाज मिलता तो बेटा बच सकता था… पर स्कूल ने हाथ खड़े कर दिए।”
कैसे हुई घटना—समय पर मदद न मिलने से एक छात्र की मौत
शनिवार, 22 नवंबर – सुबह 10:30 बजे
बेलगहना निवासी हर्षित यादव (कक्षा 10वीं) के पिता को फोन आया कि बेटे की तबीयत खराब है। वे तुरंत लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित नवोदय विद्यालय पहुंचे।
हॉस्टल की दयनीय स्थिति देखकर पिता स्तब्ध
पिता ने बताया—
- कमरे में सीलन
- टूटी खिड़कियां-दरवाजे
- बाथरूम की गंदगी व लगातार पानी का बहाव
- नाली का पानी खाने की जगह तक
- सांप-बिच्छू तक नजर आते हैं
- ठंड में सुबह 5 बजे छात्रों को नहलाया जाता है
अस्पताल ले जाने वाहन तक नहीं मिला
हर्षित की हालत गंभीर थी, लेकिन प्रबंधन का जवाब था— “गाड़ी नहीं है… प्राचार्य मीटिंग में तीन दिन से वाहन लेकर गए हैं।”
स्टाफ ने बच्चे को बाइक में ले जाने की सलाह दी। मजबूरी में पिता ने हर्षित को पकड़े-पकड़े बाइक से अस्पताल पहुंचाया।
बिलासपुर के निजी अस्पताल में जांच
डॉक्टरों ने बताया कि उसे गंभीर न्यूमोनिया है। प्राथमिक इलाज के बाद उसे घर भेज दिया गया।
रविवार – हालत बिगड़ती रही, स्कूल न पूछने पहुंचा न मदद
कोई टीचर, वार्डन या प्रबंधन हर्षित का हाल जानने भी नहीं आया।
सोमवार सुबह – अचानक बेहोश
अस्पताल ले जाया गया, आईसीयू में भर्ती किया गया। डॉक्टरों ने कहा— “उसे बहुत देर से लाया गया… पहले लाते तो बच सकता था।”
कुछ घंटों बाद हर्षित ने दम तोड़ दिया।
परिजनों का आरोप: “यह मौत नहीं, लापरवाही की हत्या है”
हर्षित के पिता ने रोते हुए कहा—
- “समय पर वाहन और इलाज मिलता तो बेटा बच जाता।”
- “प्रबंधन ने मुंह मोड़ लिया, कोई साथ देने नहीं आया।”
- “एक ही बेटा था… हमारा सबकुछ छिन गया।”
अभिभावकों ने भी प्रबंधन पर कार्यवाही की मांग की।
नवोदय हॉस्टल की असलियत—बीमारियों की फैक्ट्री
जांच में सामने आई गंभीर कमियां:
- सीलन भरे कमरे, टूटी दीवारें
- बाथरूम में रिसाव, बदबू, गंदगी
- नाली का पानी कैंटीन तक
- सुरक्षा लचर—सांप-बिच्छू दिखते हैं
- नाममात्र की मेडिकल सुविधा
- सुबह 5 बजे ठंड में नहलाने की मजबूरी
फंड के नाम पर उदासी, छात्र भुगत रहे कीमत
विद्यालय प्रबंधन ने 2022 से अब तक 6.60 करोड़ रुपये के 4 मरम्मत प्रस्ताव भेजे, लेकिन कोई मंजूर नहीं हुआ।
जबकि नियम अनुसार हर नवोदय विद्यालय को 90 लाख – 1 करोड़ रुपये सालाना का बजट मिलता है।
सवाल बड़ा है—
फिर छात्र बुनियादी सुविधाओं से क्यों वंचित हैं?
प्रबंधन का बयान
विद्यालय प्रबंधन ने कहा—
“मरम्मत के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। फंड स्वीकृति का इंतजार है।”
कई सवाल अनुत्तरित
- बीमार छात्र को समय पर डॉक्टर क्यों नहीं बुलाया गया?
- स्कूल में एम्बुलेंस या वैकल्पिक वाहन क्यों नहीं था?
- हॉस्टल की जर्जर हालत वर्षों से क्यों जारी है?
- मेडिकल सुपरविजन सिस्टम क्यों नहीं है?
हर्षित यादव की मौत ने सिस्टम की वह क्रूर तस्वीर उजागर कर दी है, जिसमें सुविधाओं के अभाव, प्रबंधन की अनदेखी और जिम्मेदारियों से भागने की संस्कृति ने एक मासूम की जिंदगी छीन ली।
परिजन न्याय की मांग कर रहे हैं और पूरे मामले की जांच की मांग जोर पकड़ रही है।
