

शशि मिश्रा
यह कहानी नहीं, छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य व्यवस्था का नंगा सच है। कवर्धा जिले के रेंगाखार जंगल में रहने वाले 65 वर्षीय समलू सिंह मरकाम का जीवन इस व्यवस्था पर एक करारा तमाचा है। तीन साल से वह अपनी थायराइड कैंसर पीड़ित पत्नी कपूरा मरकाम को मोटरसाइकिल पर बांधकर इलाज के लिए एक शहर से दूसरे शहर, एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक भटक रहे हैं — दुर्ग से रायपुर, फिर मुंबई तक। लेकिन सिस्टम इतना बीमार है कि उसे मरीज से ज्यादा फाइलों की चिंता है।
घर के जेवर बिक गए, बर्तन और अनाज गिरवी रखे गए, रिश्तेदारों से उधार लेकर 5 से 6 लाख रुपए तक झोंक दिए, लेकिन इलाज नहीं मिला। अब पैसे नहीं बचे, पर उम्मीद बाकी है। इसलिए समलू ने अपनी पुरानी बाइक पर लकड़ी की पटिया बांधी है — उस पर पत्नी को लिटाकर, रस्सी से बांधकर वह सड़कों पर निकल पड़ते हैं, ताकि कहीं तो इंसानियत की आखिरी सांस बाकी मिले।
तीन साल की जद्दोजहद, सिस्टम का एक भी जवाब नहीं
रेंगाखार के जंगलों से निकलकर यह बूढ़ा आदमी जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के चक्कर काट चुका है। कवर्धा, दुर्ग, रायपुर, और मुंबई के सरकारी-निजी अस्पतालों के दरवाजे उसने पीटे, लेकिन जवाब हर बार एक ही — “सुविधा नहीं है, कहीं और ले जाइए।”
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य योजनाओं की घोषणाएं हर चुनाव से पहले नई भाषा में गूंजती हैं, लेकिन इस एक जोड़े की हालत पूछने वाला कोई नहीं।
उपमुख्यमंत्री से मिले, 10 हजार की राहत, पर इलाज नहीं
थक-हारकर समलू कुछ दिन पहले उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के पास पहुंचे। उन्होंने 10 हजार रुपए की मदद दी और महिला को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन इलाज के इंतजार में पत्नी की तबीयत और बिगड़ गई। अस्पताल से छुट्टी मिली, पर बीमारी वहीं की वहीं। अब वे फिर जंगल लौट आए हैं — वही टूटी झोपड़ी, वही दर्द, और वही इंतजार।
बाइक बनी एंबुलेंस, लाचार पति बना ड्राइवर
जब पूरी व्यवस्था सो गई, तो समलू ने खुद अपनी एंबुलेंस बना ली। उनकी टूटी मोटरसाइकिल अब मरीज ढोती है। लकड़ी की पटिया पर बंधी पत्नी, सिर के नीचे कपड़े का गद्दा और ऊपर बंधी उम्मीदें — यही उनकी जिंदगी है।
सड़क पर गुजरने वाले लोग उन्हें देखकर ठहरते हैं, फोटो लेते हैं, वीडियो बनाते हैं, पर कोई नहीं पूछता कि आखिर इतने सालों बाद भी सरकारी योजनाएं सिर्फ दीवारों पर क्यों जिंदा हैं?
‘गरीब के इलाज’ का सरकारी झूठ
राज्य में करोड़ों की स्वास्थ्य योजनाएं, आयुष्मान कार्ड, मुख्यमंत्री विशेष सहायता फंड — सब कागजों में मौजूद हैं। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि एक कैंसर पीड़ित महिला को अपने पति की बाइक पर लादकर इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है।
सरकार के रिकॉर्ड में शायद सब “ठीक” है, लेकिन रेंगाखार का यह दृश्य हर उस दावे का शव है जो ‘मुफ्त इलाज’ और ‘जनकल्याण’ के नाम पर रोज सजाया जाता है।
स्थान: ग्राम नगवाही, रेंगाखार जंगल, जिला कवर्धा (छत्तीसगढ़)
पीड़ित: समलू सिंह मरकाम (65 वर्ष)
बीमार पत्नी: कपूरा मरकाम – थायराइड कैंसर पीड़ित
खर्च: लगभग ₹5–6 लाख (जेवर, अनाज, बर्तन तक बेचे)
वर्तमान स्थिति: बाइक पर पटिया बांधकर पत्नी को इलाज के लिए ले जा रहे हैं
मदद: उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा द्वारा ₹10,000 की सहायता
