

शक्ति ही शासन करती है और वो ही तय करती है क्या श्रेष्ठ है और क्या त्यागने योग्य
काँतारा फिल्म (मूलतःजो कन्नड़ में बनी )भारत की सनातन संस्कृति का यशोगान करतीं है , हमारे ग्रामीण भारत में , हमारे वनों में , पहाड़ों में बसने वाले प्रकृति प्रेमी , उसकी रक्षा करने वाले , उसके प्रति कृतज्ञ रहने वाले
शक्ति ही शासन करती है , जब अंग्रेज आए तो उनके साथ भारत को बौद्धिक गुलाम बनाने के लिए मिशनरी भी आए
उन्होंने हमें अनुभूत कराया कि हम मूर्ख है , जंगली है , असभ्य है क्यों कि हम पर्यावरण की पूजा करते है , उसके प्रति कृतज्ञ रहते है ,वे साथ के लेकर आए एक काल्पनिक पुस्तक और उसका काल्पनिक परमेश्वर और चमत्कार करने वाला उसका पुत्र..
तो कहा गया आप इन्हें मानो , आप के देव , आपका ये प्रकृति प्रेम केवल मूर्खता है ,
तो भाई , हमारे में से बहुतो इसे स्वीकार किया
फिर विकास की वेस्टर्न डेफिनेशन यानी पश्चिमी परिभाषा हमारे दिमाग में बैठाई गई , उसके आधार पर हम जिन वनों को , उन में रहने वाले जीव जंतुओं को , पहाड़ों को पूज्य मानते थे उसे हम ने उजड़ना आरम्भ किया
ये फिल्म आप से प्रश्न करती है , हमारे पूर्वज भले ही अनपढ़ थे , उनके अंतर कुछ अंध विश्वास भी था किन्तु वे पृथ्वी का विनाश नहीं चाहते थे ।
ये फिल्म अद्भुत है , आप को एक काल्पनिक संसार में ले जाएगी किन्तु आप को अनुभूत होगा , हमारे पूर्वज सही थे और हम ने प्रकृति के विनाश को स्वीकार कर लिया।
फिल्म मौलिक है , यदि ऑस्कर ने बैठे गोरे चमड़ी वाले इस फिल्म के मूल भाव को समझ पाए तो इस फिल्म को दो या तीन ऑस्कर दिया जा सकता है , बेस्ट स्टोरी के लिए , बेस्ट डायरेक्शन के लिए, बेस्ट एक्टिंग के लिए
फिल्म आदि शिव को समर्पित है , मां पार्वती जो शक्ति है
जो देव इस फिल्म में दिखाए गए है , वे मूलतः इनके गण है जिन्हें इस संसार में अनेक कार्य सौंपे गए है , आज भी हमारे हर गांव में ग्राम देवता होते है , यदि आप किसी बड़े शहर में रहते है तो कभी घर में पूजा पाठ करवाया हो तो , पुरोहित उस पूजा में निश्चित ही आप के ग्राम देवता को भी नमन करता है , उन्हें हव्य अर्पित करता है
ग्राम देवताभ्यो नमः
याद आया आप को ??
फिर कहता है
कुल देवताभ्यो नमः
आप के कुल देवता को नमन करता है , आप के लिए
यही देव है जो मां पार्वती और शिव के गण है जो इस संसार में है
यही देव इस फिल्म की कथा का आधार है , फिल्मांकन आप को दक्षिण भारत के हरे-भरे वनों से आक्षच्छादित्, कल-कल का नाद करते झरने ,वहां की लोक संस्कृति के दर्शन कराएगा, फिल्म का सब से कमजोर पक्ष इसका संगीत है , एक भी गीत ऐसा नहीं जो लोकप्रिय हो सके , फिल्म का अंत भी थोड़ा सा नाटकीय लगा
नवीन तकनीक का कमल देखिए अब हमारी फिल्म अनेक भारतीय भाषाओं में एक साथ रिलीज होती है और अरबों का कारोबार करती है
मै अपनी समीक्षा में कभी भी फिल्म की कहानी नहीं बताता , ताकि आप का थियेटर में रोमांच बना रहे
तो सपरिवार देखिए , ये दक्षिण का सिनेमा है , मुंबई के हिंदी सिनेमा से एकदम अलग
आप को अपना लगेगा ,
फिल्म के निर्देशक और एक मात्र एक्टर ऋषभ शेट्टी जो इस फिल्म के केंद्र बिंदु है , उन्हें बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन फिल्म के लिए
हमारी ओर से दस में नौ
डॉ.संजय अनंत ©
