अंधेर नगरी, चौपट छत्तीसगढ़! पुरातत्व विभाग में अरबों की लूट का खेल — सिरपुर से शुरू, अब पूरे प्रदेश में फैल रहा भ्रष्टाचार का जाल

शशि मिश्रा

रायपुर/महासमुंद।
छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरें, जिन्हें सहेजने की ज़िम्मेदारी सरकार और पुरातत्व विभाग की है, अब भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढ़ती दिख रही हैं। सिरपुर से शुरू हुआ यह खेल अब पूरे प्रदेश के पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग में अरबों रुपये के घोटाले का रूप ले चुका है।

पुरातत्व संरक्षण और टूरिज्म प्रमोशन की आड़ में योजनाबद्ध तरीके से सरकारी धन की बंदरबांट हो रही है। सिरपुर, रतनपुर, कोर्टगढ़, दंतेवाड़ा से लेकर जगदलपुर तक—कहीं अधूरे निर्माण हैं, तो कहीं कागज़ों में ही पूरे हुए प्रोजेक्ट।

सिरपुर: संरक्षण नहीं, भ्रष्टाचार की ईंटों पर खड़ा स्मारक

महासमुंद जिले का सिरपुर, जो भगवान लक्ष्मण मंदिर और बौद्ध विहारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है, अब पुरातत्व घोटाले का केंद्र बन गया है।
केंद्र सरकार से भेजी गई करोड़ों की राशि को स्मारक संरक्षण और पर्यटन विकास के नाम पर कागज़ी कामों में ठिकाने लगाया जा रहा है।

सूत्रों के मुताबिक, जनवरी से जुलाई 2025 तक सिरपुर में जारी हुए कई टेंडरों में भारी अनियमितताएं सामने आई हैं —

क्रमांक कार्य अनुमानित राशि (₹ लाख में) स्थिति

1 पद्मपानी मंदिर संरक्षण 31.5 साइट पर काम नहीं, सिर्फ कागज़ों में पूरा
2 एसआरपी-13, 14, 16, 6 719.98 अधूरा कार्य, टेंडर पुनः जारी
3 बौद्ध विहार, रायकेरा टैंक 722.99 घटिया निर्माण
4 पैलेस कॉम्प्लेक्स 745.59 काम अधूरा
5 एसआरपी-4 (जुलाई टेंडर) 732.47 दोहराव और फर्जी बिलिंग

एक ही ठेकेदार का साम्राज्य – “मां शारदा कंस्ट्रक्शन” और अरबों का खेला

जांच से खुलासा हुआ है कि पिछले कुछ वर्षों से “मां शारदा कंस्ट्रक्शन” नामक कंपनी और इसके संचालक राम किशोर झा को पुरातत्व विभाग के लगभग सभी प्रोजेक्ट्स का ठेका मिला है।
आरोप हैं कि टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी कर वेबसाइट से कई टेंडर हटाए गए, फर्जी अनुभव प्रमाणपत्रों के जरिए निविदा शर्तें पूरी दिखाई गईं, और एक ही ठेकेदार को “वन मैन शो” की तरह ठेके दिए गए।

बताया जा रहा है कि कई पुराने अधूरे कामों को फिर से नए टेंडर दिखाकर अरबों रुपये का गोलमाल किया गया। इसमें विभागीय इंजीनियर राहुल तिवारी, एक अन्य अधिकारी शर्मा, और ठेकेदार राम किशोर झा की मिलीभगत बताई जा रही है।

साइट पर सन्नाटा, कागज़ों में विकास

स्थानीय लोगों ने बताया कि सिरपुर के कई स्थलों पर महीनों से कोई काम नहीं हुआ, जबकि फाइलों में काम पूरा दिखा दिया गया है।
लक्ष्मण मंदिर परिसर में किए गए मरम्मत कार्य का फंड 71.5 लाख से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये कर दिया गया, लेकिन ग्राउंड पर ईंट तक नहीं लगी।

रिपोर्ट बताती है कि कुछ कार्य जैसे पाथवे निर्माण और दीवार मरम्मत में जानबूझकर घटिया सामग्री का प्रयोग किया गया ताकि अतिरिक्त फंड बाद में “एडजस्ट” हो सके।

रतनपुर से दंतेवाड़ा तक वही कहानी – “कागजों में किला, ज़मीन पर खंडहर”

रतनपुर किला, कोर्टगढ़ किला, दंतेवाड़ा के पुरातात्विक स्थलों में भी यही खेल चल रहा है। करोड़ों के टेंडर जारी हुए, लेकिन कार्य अधूरे या गुणवत्ताहीन हैं।
कुछ टेंडरों को वेबसाइट से ही हटा दिया गया ताकि रिकॉर्ड सार्वजनिक न हो। शुरुआती आकलन के मुताबिक, यदि स्वतंत्र जांच हुई तो घोटाले की रकम ₹100 करोड़ से अधिक हो सकती है।

जवाबदेही से बचाव – ठेकेदार बोला “काम पूरा”, अफसर गायब

जब ठेकेदार राम किशोर झा से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा — “काम पूरा हो गया है, जो पूछना है अधिकारी से पूछो।”
लेकिन मौके पर निरीक्षण में स्पष्ट हुआ कि न मरम्मत हुई, न संरचना मजबूत हुई।
कई स्थलों पर तो नौ महीने बाद भी कार्य शुरू नहीं हुआ है।

कलेक्टर ने लिया संज्ञान, जांच के संकेत

महासमुंद कलेक्टर विनय कुमार लंगेह ने मामले पर कहा —
“हमें प्रारंभिक जानकारी मिली है। संबंधित विभाग और अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी जा रही है। जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।”

सवाल जो उठते हैं…

  1. एक ही ठेकेदार को बार-बार ठेका क्यों दिया गया?
  2. पुरातत्व विभाग की वेबसाइट से टेंडर दस्तावेज क्यों हटाए गए?
  3. अधूरे कार्यों के बावजूद नई भुगतान स्वीकृतियां कैसे जारी हुईं?
  4. क्या इंजीनियरों और ठेकेदारों के बीच सेटिंग से अरबों का खेल संभव हुआ? विरासत नहीं, भ्रष्टाचार की विरासत बनता जा रहा है छत्तीसगढ़ का पुरातत्व

सिरपुर, जो भारतीय संस्कृति की गौरवशाली धरोहर माना जाता है, आज भ्रष्टाचार का प्रतीक बनता जा रहा है।
टूरिज्म और हेरिटेज के नाम पर “विकास” की इमारतें अब कागज़ों पर खड़ी हैं, और ज़मीन पर बिखरा है बेईमानी का मलबा।

यदि उच्चस्तरीय जांच एजेंसी ने इस मामले की तहकीकात की, तो छत्तीसगढ़ के पुरातत्व संरक्षण की आड़ में चल रही अरबों की लूट का पूरा जाल उजागर हो सकता है —
और तब शायद सच साबित हो जाएगा कि —
“अंधेर नगरी, चौपट छत्तीसगढ़!”

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