श्री पीतांबरा त्रिदेव मंदिर में नवमी पर कन्या पूजन भोजन एवं भंडारा के साथ नवरात्र संपन्न हुआ

श्री पीतांबरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा बिलासपुर छत्तीसगढ़ स्थित त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र उत्सव 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि इस अवसर पर नवरात्रि के नवमी तिथि पर श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन और श्रृंगार नवें स्वरूप सिद्धिदात्री देवी के रूप में किया गया। साथ ही प्रतिदिन प्रातःकालीन श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का रुद्राभिषेक, पूजन और परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का पूजन और श्रृंगार किया जा रहा है।इसके अलावा, श्री सिद्धिविनायक जी का पूजन और श्रृंगार, और श्री महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती राजराजेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी देवी का श्रीसूक्त षोडश मंत्र द्वारा दूधधारियापूर्वक अभिषेक किया जा रहा है। नवमी के पावन पर्व पर कन्या पूजन एवं भोजन एवं भंडारा का आयोजन किया गया।

पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉक्टर दिनेश जी महाराज ने बताया कि विजयदशमी के पावन पर्व पर नवरात्र समापन किया जाएगा।विजयादशमी को ही दशहरा भी कहा जाता है, जो बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है।

भगवान राम की विजय: इस दिन भगवान श्री राम ने दस सिरों वाले लंकापति रावण का वध करके माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया था। यह घटना अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।
माँ दुर्गा की विजय: नौ दिनों के युद्ध के बाद, इसी दशमी तिथि पर माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए, यह दिन शक्ति (दुर्गा) के विजय उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।

विजयादशमी के दिन कई तरह की पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं:
भगवान राम और हनुमान जी: रावण पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में भगवान राम और उनके भक्त हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है।

देवी अपराजिता: इस दिन देवी अपराजिता (अपर+अजिता = जिसे पराजित न किया जा सके) की विशेष पूजा की जाती है। इन्हें विजय और साहस की देवी माना जाता है।
शस्त्र पूजा (आयुध पूजा): यह दिन शौर्य और पराक्रम का पर्व माना जाता है। इस दिन क्षत्रिय और सेना में अस्त्र-शस्त्र की पूजा का विधान है। कारीगर और व्यवसायी लोग अपने औजारों, मशीनों और वाहनों की भी पूजा करते हैं।
शमी वृक्ष: शमी के वृक्ष की भी पूजा की जाती है।

इस पर्व को विजयादशमी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह विजय (जीत) की दशमी (दसवीं तिथि) है। इसे ‘अपराजिता’ नाम से भी इसलिए जोड़ा जाता है क्योंकि:अपराजिता देवी की पूजा: इस दिन विजय की कामना से देवी अपराजिता की पूजा की जाती है। ‘अपराजिता’ का शाब्दिक अर्थ है ‘जो कभी पराजित न हो’ या ‘जिसे हराया न जा सके’।

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