


छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पहली बार गो-माता को राष्ट्र-माता का दर्जा दिलाने के उद्देश्य से एक भव्य महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। “गो-माता प्रतिष्ठा महायज्ञ” 28 मई से 5 जून तक रायपुर रोड स्थित रामा वर्ल्ड सिटी के 5 एकड़ मैदान में संपन्न होगा। इस नौ दिवसीय आयोजन में 1 करोड़ आहुतियां दी जाएंगी और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा भविष्य पुराण की कथा प्रतिदिन दोपहर 1 बजे से शाम 6 बजे तक सुनाई जाएगी।

इस महायज्ञ का उद्देश्य लोगों को गो-हत्या रोकने के लिए जागरूक करना और गो-माता को राष्ट्र-माता का दर्जा दिलाने के लिए जनसमर्थन जुटाना है। 25 अप्रैल को शास्त्रीय विधि से मंत्रोच्चार करते हुए भूमिपूजन संपन्न हुआ, जिसमें मुख्य यजमान शंकराचार्य के कृपापात्र शिष्य हरीश शाह सपत्नीक शामिल हुए। भूमिपूजन का विधिवत संचालन आचार्य मेघानंद शास्त्री द्वारा किया गया।

इस अवसर पर श्री शंकराचार्य आश्रम रायपुर के दंडी स्वामी डॉ. इन्दुभवानंद तीर्थ, लक्षेश्वर धाम बेमेतरा के दंडी स्वामी श्रीमज्ज्योतिर्मयानन सरस्वती, सीएफओ मदन मोहन उपाध्याय, पीतांबरा पीठ के आचार्य दिनेश महाराज, ब्रह्मचारी वासुदास निखिल, छोटू महाराज, विपुल शर्मा और गौ गोपाल कृष्ण सहित कई संत एवं गणमान्यजन उपस्थित रहे।

महायज्ञ के लिए विशाल यज्ञ कुंड का निर्माण एक महीने में किया जाएगा और गुरु की कुटिया बनारस से आए वैदिक आचार्यों के मार्गदर्शन में कुसे से बनाई जाएगी। भक्त प्रतिदिन सुबह 7 बजे गुरु दीक्षा ले सकेंगे, वहीं संध्या समय महाआरती और भंडारे का आयोजन होगा।

देशभर से हजारों की संख्या में साधु-संत इस महायज्ञ में भाग लेंगे। आयोजन की व्यापक तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और संतों के जत्थे लोगों को आमंत्रित करने के लिए घर-घर जाकर न्योता दे रहे हैं।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती वर्षों से गो-माता को राष्ट्र-माता का दर्जा दिलाने के लिए देशव्यापी आंदोलन चला रहे हैं। वे वृंदावन से दिल्ली तक पदयात्रा कर चुके हैं और 30 से अधिक राज्यों में गो-माता प्रतिष्ठा ध्वज फहरा चुके हैं। उनका प्रयास अब रंग ला रहा है—महाराष्ट्र विधानसभा में गो-माता को राज्य माता का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित हो चुका है, वहीं छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के ग्राम ताटीकसा और बेमेतरा जिले के ग्राम सलधा में गो-माता को ग्राम माता का दर्जा दिया जा चुका है।
यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना को भी जाग्रत करने का एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है।

