साहित्य के उपासक समूह में दिनांक १५-०९-२०२४ को काव्य सह विचार गोष्ठी आयोजित कर हिंदी दिवस उत्सावित किया गया. गोष्ठी का आरम्भ कानपुर की कृतिका ‘कृति’ द्वारा सरस्वती वंदना के गायन से हुआ. तदोपरान्त उपस्थित समस्त साहित्य के उपासकों ने अपनी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं. बैंगलोर की ऋचा उपाध्याय ने अपनी रचना मेंरी भाषा हिंदी भाषा प्रस्तुत कर जीवन में हिंदी के महत्व को रेखांकित किया. इंदौर की आशा माहेश्वरी ने अपनी रचना ‘हिंदी मेंरी शान’ द्वारा सभी को प्रभावित किया. कानपुर कीं कृतिका ‘कृति’ ने अपनी अनूठी रचना “हिंदी मेंरा अभिमान” के माध्यम से हिंदी के विकास मे अतुलनीय योगदान देने वाले महान साहित्यशिल्पीयों का स्मरण किया. उज्जैन के प्रशांत माहेश्वरी ने अपनी कृति ”हिदी भारत की वाणी’ प्रस्तुत कर हिंदी भाषा को दैनिक व्यवहार में अपनाये जाने पर जोर दिया.
कार्यक्रम के द्वतीय सत्र में बैठक में उपस्थित सदस्यों द्वारा एक सामान्य नागरिक द्वारा हिंदी के उत्थान हेतु किये किये जा सकने वाले प्रयासों पर विचार विमर्श भी किया गया. कृतिका कृति ने कहा कि हिंदी में अन्य भाषाओं के शब्दों का मिश्रण नगन्य होना चाहिए साथ ही समस्त शासकीय कार्यभी हिंदी में ही निष्पदित होने चाहिए. ऋचा उपाध्याय ने विचार रखा कि माता-पिता को बच्चों को घर में ही हिंदी में वार्तालाप करने को प्रेरित करना चाहिए. आशा माहेश्वरी ने स्कूलों में बच्चों को हिंदी में बात करने की छूट देने की बात की व अमिता मिश्रा ने कहा कि बच्चों को स्कूल में हिंदी में वार्तालाप करने पर प्रशासन द्वारा उन्हें दण्डित नहीं किया जाना चाहिए. प्रशांत माहेश्वरी ने कहा कि हिंदी को उसका गौरवमयी स्थान दिलाने के लिए आम जनमानस को अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन कर हिंदी को अपने अंतस में बसाना होगा, भाषा वही श्रेष्ठ होती है जिसमे व्यक्ति अपने विचारों को उन्मुक्त भाव से व्यक्त कर सके. चीन, जापान जैसे देश आज इसीलिए समृद्ध हैँ, क्योंकि वे सभी अपनी मातृभाषा को ही दैनिक व्यवहार में प्राथमिकता देते हैँ. कार्यक्रम में दिल्ली की निशि अरोरा व शाहजहांपुर की कंचन मिश्रा की उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही. कार्यक्रम का संचालन प्रशांत माहेश्वरी ने किया. अंत में धन्यवाद ज्ञापन के साथ आयोजन सह आनंद संपन्न हुआ.