
गोलू कश्यप

छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में विगत 18 वर्षों से जुटी संस्था भोजली महोत्सव समिति बिलासपुर द्वारा विगत 5 वर्षों की तरह इस वर्ष भी शनिवार को सुआ नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। तोरवा धान मंडी चौक में आयोजित प्रतियोगिता में 28 दलों ने भाग लिया। कार्यक्रम का आरंभ मां सरस्वती एवं छत्तीसगढ़ी महतारी के छायाचित्र की पूजा अर्चना के साथ किया गया। इसके बाद एक के बाद एक प्रतिभागियों ने अपने नृत्य कौशल एवं साज श्रृंगार से दर्शकों को चमत्कृत किया।

क्या है सुआ नृत्य
छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति समृद्ध और गौरवशाली है। यहां लोक गीत और लोक नृत्य की परंपरा में सुआ नृत्य का स्थान बहुत ऊंचा है। सुआ तोता को कहा जाता है, जो मनुष्य की बोली भी बोल सकता है। यही कारण है कि लोक परंपराओं में तोता के माध्यम से स्त्रियां अपने प्रिय तक संदेश भेजती है, जिसमें कभी संदेश तो कभी वियोग गीत भी शामिल होता है। आम तौर पर दीपावली और एकादशी पर्व के आसपास गांव में टोलियों में युवतियां टोकरी के साथ निकलती है, जिसमें सुआ यानी कि तोता होता है । घर-घर जाकर ये सुआ के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हुए ताली बजाकर बेहद आकर्षक नृत्य प्रस्तुत करती है। यजमान द्वारा सभी को यथोचित पारितोषिक भी दिया जाता है।
छत्तीसगढ़ में गौरा गौरी का विवाह धूमधाम से मनाने की परंपरा है। मिट्टी के गौरा गौरी बनाकर उसके चारों ओर घूम-घूम कर सुआ गीत गाते हुए सुआनृत्य किया जाता है । इसमे सबसे प्रसिद्ध गीत है-
तरी हरी ना ना
मोर ना ना रे सुअना
कइसे के बन गे वो ह निरमोही
रे सुअना
कोन बैरी राखे बिलमाय
चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव
रे सुअना
मन के लहर लहराय
देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव
रे सुअना
बाती संग जाहंव लपटाय

शहरीकरण के कारण यह परंपराएं लुप्त होती जा रही है। नई पीढ़ी इससे जुड़ाव नहीं बना पा रही है। यही कारण है कि लोक संस्कृति के संरक्षण ,संवर्धन और नई पीढ़ी को इसके साथ जोड़ने के उद्देश्य के साथ भोजली महोत्सव समिति द्वारा विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी सुआ नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जहां पारंपरिक परिधान, साज श्रृंगार के साथ बिलासपुर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से टोलियां पहुंची , जिनमें देवरी खुर्द, चांटीडीह, कोनी, मोपका, महमंद, गतौरा, दर्रीघाट जैसे क्षेत्र थे ।

निश्चित समय काल में प्रतिभागियों ने सुआ गीत के साथ समूह में आकर्षक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। आयोजन समिति और निर्णायक मंडली द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले समूहों को पुरस्कृत भी किया गया।
यह रहे विजेता
निर्णायक मंडल द्वारा कुटी पारा मोपका के सुपर्णा सुआ ग्रुप को प्रथम स्थान प्रदान किया गया। पुरस्कार स्वरूप इन्हें ₹5000 नगद और स्वर्गीय परमेश्वर प्रधान स्मृति में कप प्रदान किया गया ।द्वितीय पुरस्कार श्याम की दीवानी ग्रुप चांटीडीह के नाम रहा, जिन्हें ₹3000 नगद और मनोज कुमार यादव द्वारा कप प्रदान किया गया। तृतीय पुरस्कार आकांक्षा सुआ ग्रुप देवरीडीह के नाम रहा जिन्हें ₹2000 नगद राशि और महापौर रामशरण यादव द्वारा कप प्रदान किया गया। चतुर्थ पुरस्कार के लिए गौरा गौरी ग्रुप को चुना गया जिन्हें प्रहलाद दूधेश्वर के द्वारा ₹1100 नगर प्रदान किया गया। इसके अलावा सभी समूहों को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किया गया।


इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बिलासपुर महापौर रामशरण यादव और विशिष्ट अतिथि के रूप में पार्षद अजय यादव, मोहम्मद हफीज कुरेशी, लक्ष्मी यादव, पल्लव धर , अंजनी खैरवार, गणेश प्रधान शामिल हुए। सभी मेहमानों ने आयोजन और कलाकारों की दिल खोलकर सराहना की। सफल आयोजन के लिए आयोजन समिति भोजली महोत्सव समिति के अध्यक्ष शंकर यादव की भी सराहना करते हुए कहा गया कि उन्होंने छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और परंपराओं को बचाने का जो अभियान चलाया है उसमें उन्हें आशानुरूप सफलता मिले। कार्यक्रम का सफल संचालक डॉक्टर सुनीता मिश्रा और महेंद्र ध्रुव द्वारा किया गया।


इस अवसर पर उपाध्यक्ष सुनील कुमार भोई सलाहकार गंगेश्वर सिंह उइके नंदकिशोर यादव, चंदन यादव सहदेव केवट, शुभम यादव सुरेश दास,बृजभूषण सरवन शरद यादव जतिन विश्वकर्मा, गोपाल यादव,मनीष पटेल,तिलक केवट,जीतू यादव वीरू पटेल श्रीमति रामबाई सैनिक,संतोषी भोई, यशोदा उइके, रेखा दास मानिकपुरी, सुखमत केवट, रामप्यारी पटेल बनवासा यादव, संगीता यादव, समस्त भोजली महोत्सव समिति तोरवा बिलासपुर के सदस्य उपस्थित रहे।

