शुक्रवार शाम को 11,000 दीपदान करते हुए छठ घाट पर की गई अरपा मैया की महा आरती, नहाय- खाय के साथ हुआ छठ पर्व का आरंभ , रविवार शाम को सूर्य देव को दिया जाएगा अर्घ्य

शुक्रवार को नहाय- खाय के साथ आस्था के लोक पर्व छठ का आरंभ हो गया। बिलासपुर में भी रहने वाले बिहार और उत्तर भारतीयों द्वारा यह पर्व पूरे उल्लास- उमंग के साथ मनाया जाता है। इसके लिए बिलासपुर का छठ घाट किसी दुल्हन की तरह सज- धज कर तैयार है। विगत 12 वर्षों की भांति इस वर्ष भी आयोजन के प्रथम दिवस शुक्रवार शाम को बिलासपुर की जीवन रेखा अरपा नदी की महिमा से सबको परिचित कराने और उनके प्रति आभार प्रकट करने के लिए छठ पूजा समिति द्वारा अरपा मैया की महा आरती का आयोजन किया गया । श्री श्री 1008 प्रेम दास जी महाराज ब्रह्मा बाबा के सानिध्य में यह महा आरती की गई । इस अवसर पर वैदिक मंत्रो का सस्वर पाठ किया गया। सिंधी समाज के अध्यक्ष धनराज आहूजा, गुजराती समाज के अध्यक्ष अरविंद भानूशाली और अग्रसेन समाज के अध्यक्ष श्री राम अवतार अग्रवाल की गरिमा मयी उपस्थिति में गंगा मैया की तर्ज पर अरपा मैया की महा आरती की गई। बिलासपुर के प्रसिद्ध गायक आंचल शर्मा के स्वर में अरपा मैया की आरती से छठ घाट गूंज उठा ।


इस वर्ष बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी इस महाआरती में सम्मिलित हुए
अरपा मैया की महा आरती में छठ पूजा समिति के अध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र दास, कार्यकारी अध्यक्ष अभय नारायण राय, सचिव विजय ओझा, संरक्षक एचपीएस चौहान, एसपी सिंह , डॉक्टर बृजेश सिंह, व्ही एन झा, आरपी सिंह, कमलेश चौधरी एसके सिंह, लव कुमार ओझा, विनोद सिंह, डॉक्टर कुमुद रंजन सिंह, दिलीप चौधरी ,धनंजय झा आदि बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। इस मौके पर भारत स्काउट एंड गाइड के 51 वॉलिंटियर्स ने आयोजन के संचालन में अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया, जिनका नेतृत्व दिलीप स्वाईं द्वारा किया गया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा 11,000 दीपदान किया गया। दीपदान के पश्चात अरपा नदी में तैरते और टिमटिमाते दीपको ने अद्भुत नजारा सृजित किया, जिसे देखने बड़ी संख्या में नर- नारी, बच्चे छठ घाट में उपस्थित रहे।

छठ पर्व की महिमा

पहले छठ पूजा केवल बिहार और बिहार के आसपास के कुछ इलाकों में ही की जाती थी , लेकिन आज पूरे उत्तर भारत के अलावा विदेशों में भी पूरे उल्लास के साथ छठ पर्व मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाये जाने वाले इस पर्व में प्रत्यक्ष भगवान सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया की पूजा अर्चना की जाती है। निसंतान दंपत्ति संतान की कामना के साथ और शेष व्रती संतान एवं पूरे परिवार की मंगल कामना के साथ 36 घंटे का यह कठिन व्रत करते हैं। इस अवसर पर कठोर चार दिनों का निर्जला व्रत किया जाता है

माता सीता और द्रौपदी ने भी किया था यह व्रत

धार्मिक ग्रंथो के अनुसार वनवास से लौटकर सुचारू राज्य संचालन की कामना के साथ माता सीता ने यह व्रत किया था, तो वही जब पांडवों ने अपना राज पाट खो दिया तो भगवान कृष्ण के कहने पर देवी द्रोपदी ने भी यह व्रत किया और उन्होंने खोया राजपाट वापस पाया। कहते हैं सूर्य पुत्र करण भी नित्य सूर्य देव को अर्घ्य दे कर यह पर्व मनाते थे।

उत्तर भारतीयों का सबसे बड़ा पर्व छठ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाई जाती है। वैसे तो साल में दो बार छठ मनाने की परंपरा है। एक चैत मास में और दूसरा कार्तिक मास में। लेकिन कार्तिक मास के छठ को ही विशाल और भव्य रूप से मनाने की परंपरा है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार छठी माता सूर्य भगवान की बहन और भगवान कार्तिकेय की पत्नी है, जिनकी पूजा अर्चना परिवार के कल्याण और संतान प्राप्ति के लिए की जाती है। छठ को लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है। पारिवारिक सुख समृद्धि तथा मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए महिलाएं और पुरुष दोनों इस पर्व को मानते हैं । छठ पर्व कुल 4 दिवस का होता है, जिसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है । इस दिन सेंधा नमक , घी से बने हुए अरवा चावल, कद्दू की सब्जी चना दाल को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। जिसके बाद उपवास की शुरुआत होती है। इसके साथ अन्न जल त्याग कर अगले दिन शाम को गन्ने के रस , गुड और चावल से खीर तैयार करते हैं जिसे खरना कहा जाता है। खरना पूरी शुद्धता के साथ तैयार किया जाता है जिसे व्रती और परिवार के अन्य सदस्य नियम पालन करते हुए ग्रहण करते हैं।

तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य देव को जल एवं दूध का अर्घ्य दिया जाता है । इसी भांति चौथे दिन उगते हुए सूर्य देव को अर्घ्य चढ़ाते हैं ।

इस वर्ष 19 नवंबर की शाम को सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा। इसकी तैयारी में सभी जुट गए हैं । छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ, कचवनिया आदि तैयार किये जा रहे हैं। छठ पूजा के लिए घर के पुरुष सदस्य बांस की बनी हुई टोकरी दउरा में पांच प्रकार के फल ,नारियल, कंद, सब्जी पूजन सामग्री आदि सर पर लेकर घाट में पहुंचते हैं । रास्ते भर महिलाएं छठ गीत गाते हुए साथ चलती है। नदी या तलाब के किनारे पहुंच कर नदी के मिट्टी से ही छठ माता का चौरा बनाया जाता है। गन्ने से मंडप बनाकर पूजा का सारा सामान चौरा पर रखते हैं। नारियल चढ़ाकर दीप जलाते हुए सूर्य देव की पूजा अर्चना घुटने तक पानी में खड़े होकर की जाती है। इसी के साथ ही डूबते हुए सूर्य देव को जल एवं दूध का अर्घ्य देकर 5 बार परिक्रमा की जाती है।

भारत स्काउट एंड गाइड के वॉलिंटियर्स का मिला साथ

शाम की पूजा के पश्चात घर के पूर्व सदस्य वापस दउरा को सर पर रखकर घर लौट जाते हैं । वहीं अगले देश सूर्य उदय के पहले ही घाट में वापस पहुंचकर पूर्व मुखी होकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसे उषा अर्घ्य कहते हैं । सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद घाट पर प्रसाद वितरण कर व्रती घर आते हैं। घर में भी अपने परिवार के सदस्यों को प्रसाद वितरण किया जाता है । घर के पास पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है। इसके पश्चात ही व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा सा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं, जिसे पारण कहते हैं ।

दीपदान

खरना से लेकर उषा अर्घ्य तक कठिन व्रत कर संतान और परिवार के कल्याण की कामना की जाती है । पहले केवल बिहार और उत्तर भारत के लोग ही इस पर्व को मानते थे लेकिन अब तो छत्तीसगढ़ में स्थानीय लोग भी इस पर्व को पूरे नियम के साथ मनाने लगे हैं। बिलासपुर के बड़े उत्सवों में इसकी गिनती होती है। बिलासपुर के तोरवा छठ घाट में करीब 50,000 लोगों इस अवसर पर जुटते हैं । छठ पूजा समिति द्वारा यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए पार्किंग समेत विशेष व्यवस्था की गई है। व्रतियों के लिए निशुल्क दूध के अलावा सभी के लिए निशुल्क चाय सेवा, भंडारा, पुलिस और फर्स्ट एड की सुविधा भी दी जाएगी । इस अवसर पर बिलासपुर छठ घाट में मेले जैसा नजारा रहता है। जितने लोग अर्घ्य देने पहुंचते हैं उससे दुगनी संख्या यहां उनके दर्शन के लिए पहुंचने वालों की होती है । अब तो यह छत्तीसगढ़ और बिलासपुर का भी लोक पर्व बन चुका है, जिसकी प्रतिक्षा वर्ष भर लोगों को होती है।

घाट की सजावट

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