
कैलाश यादव


मंगलवार महा दशमी की तिथि पर सिंदूर खेला के साथ देवी दुर्गा को विदाई दी गई ।बंगाल में देवी दुर्गा को बेटी के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि मां दुर्गा अपनी संतानों के साथ इन दिनों मायके आई हुई थी और अब वह अपने धाम कैलाश पर्वत लौटेगी। इससे पहले एक सुहागिन की तरह उन्हें सिंदूर लगाकर महिलाओं ने विदाई दी। इस अवसर पर सुहागिन महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाकर सिंदूर की होली खेली। इसे बंगाल में सिंदूर खेला कहा जाता है, वही परंपरा बिलासपुर में भी नजर आती है। खासकर रेलवे क्षेत्र और आसपास , जहां बंगाल के परंपरा अनुसार दुर्गा पूजा मनाया जाता है, वहां सिंदूर खेला एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है ।

दशमी की तिथि पर महिलाओं ने पहले मां दुर्गा को फिर एक दूसरे को सिंदूर लगाकर मंगल कामना की। बंगाल में नवरात्रि के दशमी तिथि पर महा आरती के बाद कोचई की भाजी, हिलशा मछली, पांता भात का भोग लगाया जाता है। दर्पण रखकर माता के चरणों के दर्शन किए जाते हैं । मान्यता है कि इससे सुख समृद्धि आती है । फिर सिंदूर खेला आरंभ होता है, जिसमें महिलाये एक दूसरे को सिंदूर लगाकर , गले मिलकर मां को विदाई देती है। सिंदूर खेला के बाद ही मां दुर्गा का विसर्जन किया जाता है ।बिलासपुर के कई दुर्गा पंडालो में इस परंपरा का पालन मंगलवार को किया गया । बंगाल से शुरू होकर यह परंपरा पूरे देश में फैल चुकी है। जहां महिलाओं ने मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर उन्हें मिठाई अर्पित की और महिलाओं ने भी आपस में सिंदूर की होली खेली। इस तरह से सष्ठी से आरंभ पांच दिवसीय दुर्गा पूजा उत्सव का समापन हुआ।


