

श्री पीताम्बरा पीठ स्थित त्रिदेव मंदिर में श्री पीतांबरा हवनात्मक महायज्ञ मे 94 दिनो मे 24 लाख आहुतियाँ दी जा चुकी है।पीताम्बरा पीठाधीश्वर आचार्य श्री दिनेश जी महाराज के सानिध्य में धार्मिक कार्यक्रम संपन्न हो रहे हैं। श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में 18 जून से 27 नवंबर तक श्री पीताम्बरा हवनात्मक महायज्ञ किया जा रहा है जिसमें श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी मंत्र के द्वारा प्रतिदिन 25,000 आहुति दी जा रही है।रात्रि 8:30 बजे से 1:30 तक यज्ञ तत्पश्चात रात्रि 1:30 बजे महाआरती संपन्न हो रहा है।पीतांबरा पीठाधीश्वर एवं अखिल भारतीय संत समिति धर्म समाज छत्तीसगढ़ प्रमुख आचार्य दिनेशजी महाराज श्री बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर में विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा ज्योतिर्लिंग अभिषेक पूजन 12 /09/2023 श्री वासुकी नाथ बाबा जी का अभिषेक पूजन 13/09/2023 एवं भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी एवं अमावस्या पूजन पश्चिम बंगाल रामपुरहाट स्थित शक्तिपीठ तारापीठ में यज्ञ,पूजन के द्वारा साधना संपन्न किए।आचार्य श्री दिनेश जी महाराज ने बताया कि सभी सनातन धर्मी कथाकार महंत महामण्डलेश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर एवं शंकराचार्य महानुभाव कथा कीर्तन के समय सनातन धर्म की जय बुलवाते हैं। यह परंपरा सनातन नारायण के धर्म अस्तित्व से आरंभ है। सनातन धर्म उस धर्म को कहते हैं जो सृष्टि आरंभ के साथ-साथ सृष्टि करता नारायण के द्वारा संस्थापित प्रतिष्ठित एवं प्रतिपादित हो वही सनातन धर्म है। सनातन धर्म का अर्थ व्यापक है। भूत भविष्य और वर्तमान में जिसका अस्तित्व सदैव रहे वही सनातन धर्म है सनातन परमात्मा का धर्म सनातन धर्म है।
अर्जुन ने गीता ज्ञान समझने के बाद भगवान से कहा था कि आज जो आप मेरे सामने विराजमान है।
आप इस समय से बंधे हुए नहीं है।
सृष्टि के आदि में भी आप थे,
सृष्टि के मध्य में आप है और सृष्टि के अंत में भी आप ही रहते हैं इसलिए
,,सनातनास्त्वम्,,
आप सनातन पुरुष हैं आपका अंश होने के कारण मैं भी स्वरूप से सनातन हूं। आचार्य जी महाराज अपने प्रवचन से पूर्व तीन बार
जय सनातन
जय सनातन
जय सनातन बुलवाते हैं।
सनातन धर्म सतयुग में अपने पूर्ण अस्तित्व में था हिरणाक्ष और हिरणाकश्यप आदि असुरों ने सनातन धर्म को मिटाने और प्रभावित करने के लिए घोर तपस्या और प्रयास किए किंतु वे स्वयं मिट गए परंतु सनातन धर्म का कुछ बिगाड़ नहीं पाए। त्रेता युग में रावण आदि असुरों ने सनातन धर्म की व्यवस्था को योजनाओं को और योग्यता को मिटाना चाहा था परंतु रावण अपने कुल के साथ स्वयं मिट गए। उनकी धर्मपत्नी राम भक्ता मंदोदरी ने कहा था।

राम विमुख अस हाल तुम्हारा
रहा ना कोऊ कुल रोवन हारा।
हमारे सनातन धर्म में श्री राम भगवान धर्म की साक्षात मूर्ति एवं शक्ति हैं।
,,रामो वे धर्मवान विग्रह,,
इसलिए सनातन धर्म को मिटाना उतना ही कठिन है जैसे की सर्वेश्वर भगवान को मिटाना ।
द्वापर युग में रजोगुणी दुर्योधन आदि तथा तमोगुणी असुर जरासंध आदि असुरों ने सनातन धर्म एवं सनातन परमात्मा को शकुनि के साथ षड्यंत्र करके मिटाने का प्रयास किया। परंतु सभी सदैव के लिए रणांगण में सो गए। आचार्यजी ने कहा कि होली के अवसर पर कहते हैं कि बुरा ना मानो होली है
ऐसा ही यहां पर भी समझ लो की बुरा ना मानो कलयुग है। कलयुग के 5000 वर्ष हुए हैं 5000 वर्षों में कलयुग ने और कलयुग के एजेंटो ने समर्थकों ने पर्याप्त प्रयास कर लिया है परंतु सनातन धर्म की रक्षा के लिए शंकराचार्य आदि बुद्ध भगवान आदि महावीर भगवान आदि नानक जी जैसे संत महापुरुष कबीर, तुलसी मीरा ,सूरदास ,रसखान, रविदास आदि अनेक ज्ञान अवतार भक्त अवतार और योगा अवतार हो चुके हैं। जिनके परम पुरुषार्थ से सनातन धर्म अपनी अबाधित गति से सक्रिय है। कुछ कलि समर्थकों के रोने गाने चिल्लाने से सनातन धर्म अपने विश्व व्यापी ब्रह्मांड व्यापी
अंड और पिंड व्यापी उद्देश्य को ना छोड़ सकता है ना भूल सकता है ना उसे पर विराम दे सकता है। सनातन धर्म वह धर्म है जिसके समर्थकों द्वारा उपासकों द्वारा और विचारको द्वारा घोषणा की जाती है। विश्व का कल्याण हो। ऐसा विश्व व्यापी धर्म चार वर्ण ,चार आश्रम, और चार पुरुषार्थ और चार पुरुषार्थों द्वारा ही रक्षित नहीं है बल्कि सनातन परमात्मा आवश्यकता पड़ने पर अनेक रूपों में धर्म रक्षार्थ अवतार ग्रहण करते हैं। ऐसा वचन भगवान ने गीता के माध्यम से भक्तों के विश्वास को बढ़ाने के लिए दिया है। संपूर्ण ब्रह्मांड सनातन परमात्मा के द्वारा रक्षित है सुरक्षित है संस्कृत है शिक्षित है। इसलिए सनातन धर्मियों को अपना उत्साह बनाए रखना चाहिए। कलयुग का समय चल रहा है वह भी अपने समर्थकों के साथ अपने उपासकों के साथ कुछ ना कुछ अपना अस्तित्व बनाने के लिए प्रयास करेगा। लेकिन सनातनी बंधुओ आपको छोटी लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच करके उसको छोटा बनाना है। इसी अपेक्षा के साथ आपको सनातन परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त हो।
सर्वे भवंतु सुखिनः।
