परम पावन श्रावण एवं पुरुषोत्तम मास श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का श्री महारूद्राभिषेकात्मक महायज्ञ,द्वितीय महारूद्र पाठ प्रारंभ,भगवान शिव है,भोलेनाथ

श्रावण मास में श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा स्थित त्रिदेव मंदिर में सावन महोत्सव एवं परम पावन पुरुषोत्तम मास पर श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारूद्राभिषेकात्मक महायज्ञ 4 जुलाई से लेकर 31अगस्त तक प्रातः8:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक किया जा रहा है,तत्पश्चात श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महाआरती दोपहर 1:30 बजे किया जाता है। द्वितीय महारूद्र पाठ के साथ महारुद्राभिषेक नमक चमक विधि से किया जा रहा है।श्री पीताम्बरा हवनात्मक महायज्ञ निरंतर चल रहा है।श्री रामप्रताप सिंह जी ‘पूर्व संगठन मंत्री’, भारतीय जनता पार्टी रायपुर ६०ग०, श्री विशेषर पटेल पूर्व अध्यक्ष गौ सेवा आयोग अध्यक्ष छ.ग.शासन, श्री हर्षवर्धन अग्रवाल अधिवक्ता हाईकोर्ट बिलासपुर, त्रिदेव मन्दिर दर्शन किये और महाराजजी से आशीर्वाद प्राप्त किये।अभिषेक,पूजन मे श्री यशवंत शर्मा श्रीमती प्रिया शर्मा सम्मिलित हुए।

पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद आसान है। असुर हो, देवता हो या फिर कोई सामान्य मनुष्य, शिव ने कभी अपने भक्तों के साथ भेदभाव नहीं किया। अगर कोई सच्चे मन और श्रद्धा के साथ उन्हें याद करता है तो वह बड़ी आसानी से उसे अपना बना लेते हैं और उसकी हर इच्छा को पूरी करते हैं। इसीलिए महादेव के भक्त उन्हें भोलेनाथ के नाम से भी जानते हैं।भस्मासुर नामक राक्षस, दुनिया का सबसे ताकतवर असुर बनना चाहता था। वह पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली प्राणी बनकर सभी पर शासन करना चाहता था। इसकी प्राप्ति हेतु उसने शिव की कठोर तपस्या की जिसके परिणामस्वरूप शिव को उसे वरदान देने हेतु बाध्य होना पड़ा ।भस्मासुर ने शिव से कहा कि उसे अमरता का वरदान चाहिए, अर्थात वह हमेशा इस पृथ्वी पर रहे और मौत भी उसका कुछ ना बिगाड़ सके। इस पर शिव ने कहा उसकी मांग पूरी तरह से प्रकृति के नियम के खिलाफ है, क्योंकि जिसने इस धरती पर जन्म लिया है, एक ना एक दिन उसका अंत निश्चित ही है।इस वरदान के न प्राप्त होने पर भस्मासुर ने दूसरा वरदान मांगा कि वह किसी के सिर पर अपना हाथ रखे तो वह व्यक्ति भस्म हो जाए। शिव ने भस्मासुर की यह बात मान ली। अपने वरदान को प्रमाणित करने के क्रम में उसने शिव के उपर ही हाथ रखने की चेष्टा की । शिव भस्मासुर से अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे और अन्त में भगवान विष्णु का स्मरण किया कि वे उनकी जान बचावें।विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया । मोहिनी को देखकर भस्मासुर उसकी खूबसूरती के जाल में बंध गया। उसने मोहिनी से पूछा ‘क्या तुम मुझसे विवाह करोगी’। नर्तकी मोहिनी उसका सवाल सुनकर हंस पड़ी। उसने भस्मासुर से कहा कि वह एक नृत्यांगना है और केवल उसी पुरुष से विवाह करेगी जो स्वयं बेहतरीन नर्तक हो। भस्मासुर ने अपने जीवन में कभी भी नृत्य नहीं किया था लेकिन वह मोहिनी के कहने पर नृत्य करने के लिए भी तैयार हो गया। और अन्ततोगत्वा अपना हाथ स्वयं के माथे पर रखने से स्वयं भस्म हो गया।

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