पेसमेकर की दुनिया में क्रांतिकारी पहल, बिलासपुर अपोलो में पहली बार लगाई गई लिडलेस पेसमेकर, बिना तार के यह पेसमेकर 10 साल तक करेगा काम

बिलासपुर: लीड लेस पेसमेकर ह्रदय में लगाया जाने वाला एक ऐसा पेसमेकर है जो बिना वायर वाला होता है। इसे बिना चीर फाड़ के पैर की नस के माध्यम से भी हृदय तक पहुंचाया जा सकता हैं। छत्तीसगढ़ का पहला बिना वायर का पेसमेकर इंप्लांटेशन होने की वजह से यह एक अनूठी उपलब्धि है। अपोलो हॉस्पिटल्स बिलासपुर के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एमपी सामल ने बताया कि पपारंपरिक कृत्रिम पेसमेकर से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए ही वायरलेस पेसमेकर लगाए जाते हैं, क्योंकि लीडलेस पेसमेकर पारंपरिक पेसमेकर से 90% छोटा होता है, वस्तुतः यह एक छोटा उपकरण है जिसे सीधे हृदय में भेजा जाता है इसके लिए संबंधित मरीज की छाती में चीरा लगाने की भी जरूरत नहीं होती है।

डॉ सामल ने बताया श्री देव आशीष नंदी जिनकी उम्र 66 वर्ष है इमरजेंसी में पल्स के कम ज्यादा होने पेट एवं श्रेष्ठ में असामान्य अनुभव एवं उच्च तथा निम्न रक्तचाप को लेकर भर्ती हुए जांच के पश्चात पता चला कि इन्हें पेसमेकर लगाना अनिवार्य है जब यह बात देवाशीष जी को बताए गए तो उनका पहला सवाल था डॉक्टर साहब कोई ऐसा पेसमेकर होता है जिसमें वायर ना हो तब डॉक्टर सामल ने उन्हें इस नवीन तकनीक के बारे में बताया देवाशीष जी की सहमति के पश्चात सफलतापूर्वक बिना वायर वाला पेसमेकर लगाया गया देवाशीष नंद जी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा डॉक्टर साहब एवं उनकी टीम बधाई के पात्र हैं और अपने पूर्णता सामान्य होने की जानकारी साझा की।

डॉक्टर एमपी सामल ने बताया कि संबंधित मरीज लिडलेस पेसमेकर लगाए जाने के बाद पूरी तरह से स्वस्थ है उन्होंने इसके बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए बताया कि यह प्रक्रिया एंजियोग्राफी की तरह की जाती है जिसके तहत मरीज की जान के पास एक छोटा छेद किया जाता है जिसके माध्यम से लीडलेस पेसमेकर शरीर मैं प्रवेश कराया जाता है फिर उसे मशीन में देखते हुए मरीज के हृदय में ही प्रत्यारोपित कर दिया जाता है इस पूरी प्रक्रिया में जरा सा भी रक्तस्राव नहीं होता है जिसके चलते इस तकनीक को अपनाने वालों की संख्या में इजाफा होना तय है छत्तीसगढ़ का यह पहला लिड लेस पेसमेकर इंप्लांटेशन हैं। डॉक्टर से मिलने बताया यह टीम वर्क था जिसमें वरिष्ठ सीटीवीएस सर्जन डॉक्टर संजय जैन एवं कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर मिलन सतपति का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

बिना वायर वाले पेसमेकर की लाइफ अमूमन 10 वर्ष की होती है। नवीन तकनीक होने के कारण इसमें खर्च थोड़ा ज्यादा आता है, किंतु अगर हम इससे होने वाले फायदों को देखें तो यह एक प्रकार की विशिष्ट तकनीक है जो मरीज की दैनिक दिनचर्या को सकारात्मक रूप से बदल देती है।

मरीज श्री देवाआशीष नंदे जी ने अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर के डॉक्टरों का विशेष धन्यवाद दिया। और ये पूछने पर की आपको अब कैसा लग रहा हैं उन्होंने कहा मैं आपके सामने हूं क्या आप मुझे हार्ट पेशेंट बोल सकते हैं ?

अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर के यूनिट हेड डॉ मनोज नागपाल ने इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा जैसे अपोलो की परंपरा रही है नवीन तकनीकों को मरीजों तक पहुंचाना उसी कड़ी मैं बिना वायर वाला पेसमेकर इंप्लांटेशन भी एक मील का पत्थर है। अब राज्य के मरीजों को अत्याधुनिक ट्रीटमेंट के लिए महानगरों की ओर रुख करने की कोई आवश्यकता नहीं रही। उन्होंने कहा डॉ महेंद्र प्रसाद सामल, डॉ संजय जैन एवं डॉक्टर मिलन सतपथी का कार्य विशेष रूप प्रशंसनीय हैं।

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