छत्तीसगढ़ में भी रही है रथ यात्रा की प्राचीन परंपरा – डॉ अलका यादव

डॉ अलका यादव

छत्तीसगढ़ की सीमा साथ उड़ीसा के साथ लगे होने एवं सांस्कृतिक संबंध होने के कारण वहाँ के तीज त्यौहारों का असर छत्तीसगढी जनमानस पर भी दिखाई देता है। यह पर्व छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा के बीच सांस्कृतिक सेतू का कार्य भी करता है तथा राष्ट्र को एकता के सूत्र में भी बांधता है। छत्तीसगढ़ अंचल में रथदूज या रथयात्रा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, जगह-जगह भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है तथा इस दिन मांगलिक कार्य करना भी शुभ माना जाता है। वैसे तो मुख्य रथयात्रा का पर्व उड़ीसा के पुरी में मनाया जाता है,
छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ का प्रभाव सदियों से रहा है, यह प्रभाव इतना है कि छत्तीसगढ़ के प्रयाग एवं त्रिवेणी तीर्थ राजिम की दर्शन यात्रा बिना जगन्नाथ पुरी तीर्थ की यात्रा अधूरी मानी जाती है। मान्यतानुसार जगन्नाथ पुरी की यात्रा के पश्चात राजिम तीर्थ की यात्रा करना आवश्यक समझा जाता है। राजिम को पद्म क्षेत्र कहा जाता है यहाँ भगवान राजीव लोचन विराजते हैं।


छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रथयात्रा पर्व उतना ही महत्व रखता है, जितना उड़ीसा की संस्कृति में। यहाँ प्राचीन काल से यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाया जाता है तथा इस दिन मांगलिक कार्य भी किये जाते हैं


बिलासपुर में रेल्वे परिक्षेत्र स्थित जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा निकाली जाती है, जो कि मंदिर से निकलकर तितली चौक से होते हुए रेलवे स्टेशन, गिरजा चौक, तारबाहर, गांधी चौक दयालबंद होते हुए मौसी मां के घर (मंदिर प्रांगण) में पहुंचती है। वहीं बाहुड़ा यात्रा के दिन यह यात्रा लौटती है तथा भक्त रथ खींचने के साथ महाप्रभु का आशीर्वाद लेते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!