वृंदावन से पधारी विश्व के पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कृपा प्राप्त प्रचारिका सुश्री श्रीश्वरी देवी जी ने बताया कि ईश्वर–प्राप्ति के केवल तीन उपाय अर्थात मार्ग हैं। आप कहेंगे, जब भौतिकवाद में अनेक उन्नतियाँ हो रही है तो ईश्वर–प्राप्ति में अनादिकाल से अब तक तीन ही मार्ग क्यों है? चौथे मार्ग की खोज आज तक किसी आध्यात्मिक वैज्ञानिक ने क्यों नहीं की ? पर शायद आप यह नहीं जानते की नेचर के विपरीत विज्ञान नही हुआ करता।

आँख से अनादि काल से देखने का काम लिया जाता है । वह कार्य विज्ञान द्वारा भी कान नहीं कर सकता । उसी प्रकार इन तीनों का स्वभाविक विज्ञान है जिसे समझ लेने पर आपका यह भ्रम समाप्त हो जायेगा। वेदों, शास्त्रों, पुराणों आदि समस्त ग्रंथों में तीन हो मार्गों का प्रतिपादन किया गया है– प्रथम कर्म, द्वितीय ज्ञान एवं तृतीय भक्ति या उपासना। बस चौथा कोई मार्ग नहीं । यदि कहीं पढ़ने, सुनने को मिलेगा तो वही इन्ही तीनों के अंतर्गत ही होगा ।


इसका विज्ञान यह है कि ब्रम्हा की तीन स्वरूप शक्तियां हैं – सतब्रम्ह, चितब्रम्ह एवं आनंद ब्रम्ह। इसमें सत ब्रम्ह का स्वभाव कर्मवाला है, चितब्रम्ह का स्वभाव ज्ञान एवं आनंद ब्रम्ह का स्वभाव प्रेम का है । चौथा कोई स्वभाव ईश्वर का नहीं है और उसी का अनादि सनातन अंश होने के कारण प्रत्येक जीव का भी तीन प्रकार का स्वभाव हो सकता है – कर्म, ज्ञान और भक्ति का । जब चौथा स्वभाव है ही नहीं तो चौथा मार्ग कैसे बन सकता है ? अब एक–एक मार्ग पर गंभीर विचार करना है।

नोट: सुबह 6:00 बजे भी कीर्तन किया जा रहा है दुर्गा पंडाल हेमू नगर में आप सभी सादर आमंत्रित हैं

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