डॉ अलका यतेंद्र यादव

डॉ अलका यतेंद्र यादव बिलासपुर छत्तीसगढ़

आज पृथ्‍वी दिवस है, हमें यह याद दिलाने का अवसर है कि हम इस पृथ्‍वी के प्रति अपना पुत्रभाव पूरी तरह दिखाएं और इसकी धारण शक्ति, सौन्‍दर्य की गंभीरता को बनाए रखें। पृथ्‍वी को हमारी माता कहा गया है। शतपथ ब्राह्मण के बाद, पौराणिक मिथक रूप में वराहावतार का अाख्‍यान जाहिर करता है कि जलमग्‍न पृथ्‍वी का ब्रह्मा ने अवतार लेकर उद्धार, उत्‍थान किया और मनुष्‍यों को सौंपा कि वे इसकी गरिमा, स्थिति, पवित्रता को बनाए रखे। सभी दोहन मित् मित् हो अर्थात संयम को समझा जाए और पृथ्‍वी के सौंदर्य को बनाए रखा जाए।

वेद में पृथ्‍वीसूक्‍त में जो अवधारणा आई है, वह बड़ी ही प्रासंगिक हैं, उसमें पृथ्‍वी के प्रति अपने कर्तव्‍यों का निर्धारण हुआ है। यह भी कहा गया है कि यह भूमि सर्वेश्‍वर द्वारा हमें श्रेष्‍ठ, आर्योचित उद्देश्‍यों के लिए दी गई है– अहं भूमिमददामार्यायाहं। (ऋग्‍वेद 4, 26, 2)

इस पर रहने वालों के लिए सर्वेश्‍वर ने सूर्य, चंद्रमा, गगन, जलादि सब समान बनाए हैं, इन संसाधनों का संतुलित उपयोग, उपभोग ही करना चाहिए अन्‍यथा यह रत्‍नगर्भा अपना स्‍वरूप खो बैठेगी और वह घातक होता है। पृथ्‍वी से बडी कोई हितकारी नहीं। महाभारत, विष्‍णुपुराण, वायुपुराण, समरांगण सूत्रधार आदि में पृथुराजा के द्वारा पृथ्‍वी के दोहन का जो आख्‍यान है, वह जाहिर करता है कि धरती ने बहुत दयालु होकर मानव को अपने संतान के रूप में सब कुछ देने का निश्‍चय किया… मगर मानव की लालसाएं धरती के लिए हमेशा घातक सिद्ध हुई, वह लालची ही होता गया।

ब्रह्मवैवर्त के प्रकृतिखंड में भी ऐसी धारणा आई है। सुबह उठते ही पृथ्‍वी को प्रणाम करने की परंपरा हमारी संस्‍कृति में शामिल रही है। मनुस्‍मृति, देवीभागवत, पद्मपुराण आदि में ऐसे कई विचार हैं जो पृथ्‍वी के प्रति हमारे व्‍यवहार को निर्धारित करते हैं। पृथ्‍वी के प्रति नमस्‍कार का मंत्र भी हमसे कुछ कर्तव्‍य मांगता है।

विष्‍णुपुराण में पृथ्‍वी गीता आई है जिसमें पृथ्‍वी ने स्‍वयं अपनेे विचार रखें हैं कि हर कोई ये समझता है कि ये भूमि मेरी है और मेरे बाद मेरी औलाद की रहेगी। न जाने कितने राजा आए, चले गए, न राम रहे न रावण… सब समझते हैं कि वे ही राजा हैं, मगर अपने पास खडी मौत को नहीं देखते… मनोजय के मुकाबले मुक्ति है ही क्‍या। (विष्‍णुपुराण 4, 24)

शिल्‍पग्रंथों में वराह मूर्तियों के साथ पृथ्‍वी को भी बनाने का निर्देश मिलता है जिसमें उसका रत्‍नगर्भा रूप प्रमुख है। पृथक से भूदेवी की मूर्ति के लक्षण भी मयमतम् आदि में मिलते हैं, उनके मूल में भाव ये है कि हम पृथ्‍वी को देवी की तरह स्‍वीकारें और उसके सौंदर्यमय स्‍वरूप को ऐसा बनाए रखें कि आने वाली पीढि़यां भी ये कहे कि हमारे बुजुर्गों ने हमें बेहतरीन धरती सौंपी हैं…।
यही पृथ्‍वी दिवस का संकल्‍प होना चाहिए।

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