

आकाश दत्त मिश्रा

सनातन हिंदू समाज की सबसे बड़ी विशेषता उसका लचीलापन है । यहां धार्मिक ग्रंथ हो या फिर समाज के पथ प्रदर्शक साधु संत, यह धार्मिक कट्टरता नहीं सिखाते बल्कि परिस्थितियों के अनुसार आचरण बदलने की स्वतंत्रता सनातन धर्म में स्वीकार्य है । कभी कथित रूप से स्त्री पुरुष में भेद होता रहा होगा, लेकिन वर्तमान में यह भेदभाव समाप्त हो चुका है। बेटियों का लालन पोषण माता-पिता बेटों की तरह करते हैं। शिक्षा दीक्षा और किसी भी क्षेत्र में कोई कमी नहीं की जाती, यहां तक कि अब ऐसे संस्कार भी बेटियां संपन्न करने लगी है जो कभी विधि सम्मत नहीं मानी जाती थी। एक बार फिर एक बेटी ने अपनी माता को मुखाग्नि देकर यह सिद्ध किया कि बेटियां बेटों की ही तरह हर परिस्थितियों में सक्षम है ।
बिलासपुर नगर निगम कि पूर्व सुपरीटेंडेंट इंजीनियर स्वर्गीय तिवारी का निधन 20 फरवरी 2020 को हो गया था। उनके पीछे उनकी पत्नी रंजना तिवारी और एक मात्र पत्री सृष्टि तिवारी थी। शहीद अविनाश शर्मा शासकीय कन्या शाला बिलासपुर में बतौर अध्यापिका कार्यरत रंजना तिवारी पिछले कुछ समय से बीमार थी। रंजना तिवारी 12 सालों तक कान्यकुब्ज ब्राह्मण समाज बिलासपुर छत्तीसगढ़ की अध्यक्ष रही और वर्तमान में वो ब्राह्मण समाज बिलासपुर छत्तीसगढ़ में संयोजिका थी। समाज सेवा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाली रंजना तिवारी बीमार हुई तो बेटी सृष्टि तिवारी ने एक बेटे की तरह उनकी पूरी सेवा सुश्रुषा की, लेकिन काल के आगे किसकी चली है ? मंगलवार 7 मार्च को रंजना तिवारी ने अंतिम सांस ली। रंजना तिवारी को कोई बेटा नहीं था।
उनके पीछे उनकी एकमात्र वारिस उनकी पुत्री सृष्टि तिवारी ही थी, जिन्होंने सामाजिक वर्जनाओ को दरकिनार करते हुए एक पुत्र की भांति अपने कर्तव्य पालन का निर्णय लिया और अपनी माता रंजना तिवारी का अंतिम संस्कार करते हुए उन्हें मुखाग्नि प्रदान की। विशेष बात यह है कि सृष्टि तिवारी के इस निर्णय को समाज का पूरा समर्थन और साथ मिला, जिन्होंने न केवल सृष्टि तिवारी को इसके लिए प्रेरित किया बल्कि उनके इस प्रयास के लिए सृष्टि तिवारी के सम्मान की भी बात कही जा रही है। ऑल इंडिया ब्राह्मण समाज ने श्रीमती संजना तिवारी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उनकी पुत्री सृष्टि तिवारी के इस कदम की मुक्त कंठ से सराहना की है और कहा है कि बेटियां किसी भी मायने में बेटे से कम नहीं है। और सच मानिए तो यही असली महिला सशक्तिकरण है।
