

वैसे तो सभी धर्मों में भूखे को भोजन कराने से बड़ा पुण्य कोई दूजा नहीं। सनातन में यह परंपरा आदिकाल से है। धर्म ग्रंथों में निहित इसी परंपरा का पालन बिलासपुर में भी कई रूप में किया जा रहा है, जिसमें से एक है पुराना बस स्टैंड हनुमान मंदिर परिसर में आयोजित श्री राम रसोई। विश्व हिंदू परिषद और अन्य समाजसेवी संगठनों ने मिलकर इसकी शुरुआत ठीक 1 साल पहले की थी। देखते ही देखते 1 साल बीत गया। श्री राम रसोई में भूखे और जरूरतमंदों को गरमा- गरम स्वादिष्ट और सात्विक भोजन मात्र ₹10 में उपलब्ध कराया जाता है , जिसमें दाल, चावल सब्जी और अचार शामिल है। ₹10 भी इसीलिए लिए जाते हैं ताकि ग्रहण करने वाले को यह आत्मग्लानि ना हो कि उसने भोजन मुफ्त में पाया है और इससे अपव्यय की प्रवित्ति भी समाप्त होती है।

वैसे शहर के कई जागरूक नागरिक और सेवा धारी भी है जो निरंतर इस कार्य में अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं । 15 अगस्त 26 जनवरी कोई धार्मिक त्योहार या फिर बर्थडे एनिवर्सरी जैसे अवसर पर लोग इस सेवा में सहयोग कर भोजन का शुल्क वहन कर लेते हैं। पिछले 1 साल से अनवरत बिना रुके यह सेवा जारी है।
इस सेवा के 1 साल पूर्ण होने पर श्री राम रसोई से जुड़े सदस्यों ने बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता के दौरान श्रीराम रसोई से संबंधीत जानकारी साझा की। श्री राम रसोई में एक तरफ जहां दानदाता शुभ अवसरों पर आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं तो वही तुलादान के माध्यम से लोग अपने वजन के बराबर अन्न दान कर राम रसोई के संचालन में सहयोग भी कर रहे हैं। केवल भोजन बनाने और परोसने तक यह सेवा सीमित नहीं है , बल्कि परिसर की साफ-सफाई, श्री राम रसोई के फर्नीचर को व्यवस्थित करने और फिर उसे समेटने में भी स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से जुटे हुए हैं। रोजाना दोपहर 12:00 से 2:00 या भोजन समाप्त होने तक श्री राम रसोई में भोजन सेवा प्रदान की जाती है ।पिछले 1 साल में ही यहां 1 लाख 09 हज़ार 500 थाली परोसी जा चुकी है, यह उपलब्धियां असाधारण है ।

श्री राम रसोई का संचालन करने वाले विश्व हिंदू परिषद से जुड़े सदस्यों का मानना है कि जरूरतमंदों को भोजन करा कर जिस आत्मिक शांति और तृप्ति की प्राप्ति होती है वह अनमोल है। यहां अन्य लोग भी समय-समय पर सेवा प्रदान करने पहुंचते हैं। भोजन सेवा आरंभ करने से पहले प्रतिनिधि यहां हनुमान चालीसा का पाठ होता है, जिससे भोजन मात्र भोजन नहीं रहता, बल्कि प्रसाद बन जाता है, और फिर प्रसाद ग्रहण करने का आनंद ही कुछ और है। यही कारण है कि ढेरों लोग रोज श्री राम रसोई में प्रसाद स्वरूप भोजन प्राप्त करने पहुंच जाते हैं। समिति के सदस्यों ने इसके लिए जहां बिलासपुर शहर और यहां के दानदाताओं का आभार व्यक्त किया है वहीं निरंतर सेवा को गतिमान रखने का भी संकल्प लिया।
जिस रसोई के साथ प्रभु श्री राम का नाम जुड़ा हो, वह वैसे ही दिव्य हो जाती है। राम के नाम से तो पत्थर भी तैर जाते हैं , तो फिर भला कोई श्री राम रसोई से भूखा कैसे लौट सकता है ? एक अद्भुत शुरुआत श्री राम रसोई के रूप में की गई है। अपेक्षा यही है कि इसी तरह की सेवा शहर के चारों दिशाओं में भी आरंभ हो, ताकि इस शहर में कोई भूखा ना सोए।
