प्रि ऑथराइजेशन मिलने में कई-कई दिन लग जाने से आयुष्मान कार्ड से इलाज कराने वाले मरीज और अस्पताल हो रहे परेशान, विभाग से भी नहीं मिल पा रही है सही जानकारी

आलोक

इन दिनों बिलासपुर में आयुष्मान योजना के तहत अपना इलाज कराने अस्पतालों में पहुंच रहे मरीज परेशान हो रहे हैं। उन्हीं के साथ संबंधित अस्पताल का स्टाफ और डॉक्टर भी बेहद परेशान है । और इसके पीछे योजना के साथ जुड़े अधिकारियों की लापरवाही दोषी है। छत्तीसगढ़ में आयुष्मान स्वास्थ्य योजना का नाम बदलकर डॉ खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना तो कर दिया गया लेकिन इससे संबंधित समस्याएं खत्म नहीं हुई। इस योजना के तहत एपीएल परिवार को हर वर्ष 50,000 और बीपीएल परिवार को 5 लाख रुपये तक की स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती है।

नियमानुसार योजना में शामिल बीमारी से संबंधित मरीज के किसी भी अस्पताल पहुंचने पर उसका दाखिला करते हुए इसकी प्राथमिक अनुमति विभाग से ली जाती है। बताया जा रहा है कि स्वास्थ्य विभाग पहले 3 से 4 घंटे में इसकी अनुमति दे दिया करता था। जिसके बाद मरीज का इलाज भी आरंभ हो जाता था, लेकिन पिछले 15 दिनों से यह अनुमति मिलने में ही 3 से 4 दिन लग रहे हैं। नियमानुसार आयुष्मान योजना के लिए प्रि ऑथराइजेशन हेतु मरीज को अस्पताल में दाखिल करना आवश्यक है। इसके बाद कागजी कार्रवाई की प्रक्रिया पूरी की जाती है। लेकिन 4 दिनों तक अनुमति न मिलने पर मरीज का इलाज आरम्भ नहीं किया जा सकता।

इस दौरान कई बार काफी जटिल समस्याओं के साथ अस्पताल पहुंचे मरीज इलाज के अभाव में तड़पते रहते हैं। आयुष्मान विभाग से अनुमति न मिलने के कारण मजबूरी में चिकित्सक भी मरीज का इलाज शुरू नहीं कर पाते, लिहाजा इस दौरान केवल खानापूर्ति की जाती है। दर्द से तड़प रहे मरीजों को पेन किलर आदि देकर अनुमति की प्रतीक्षा की जाती है। लेकिन यह अनुमति मिलने में कई कई दिन लग जाने से एक तरफ जहां मरीज और उसके परिजन अपना सब्र खो रहे हैं , तो वहीं इस वजह से अस्पताल और चिकित्सकों के साथ हर दिन विवाद की स्थिति बन रही है।

मरीजों को लगता है कि चिकित्सक ही आयुष्मान योजना के तहत इलाज करने में लापरवाही बरत रहे हैं और मरीज की अवहेलना की जा रही है। अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र के मरीज तकनीकी समस्याओं को समझने में सक्षम नहीं होते, इसलिए उनका गुस्सा अस्पताल स्टाफ और डॉक्टर पर उतरता है, जिस कारण इन दिनों अस्पतालों में हर दिन विवाद की नौबत उत्पन्न हो रही है।

जब हमने इस संबंध में अस्पताल प्रबंधन और चिकित्सकों से बात की तो उन्होंने बताया कि पहले भी इस तरह की त्रुटियां सामने आती रही है, लेकिन उसका निराकरण आसानी से हो जाता था। मगर इस बार अधिकारी कोई जवाब देने को तैयार नहीं। संबंधित विभाग से पूछने पर कभी इसके लिए केंद्र को तो कभी राज्य सरकार को दोषी बताया जाता है। समस्या का निराकरण कब होगा यह भी बताने को कोई अधिकारी तैयार नहीं। नियमानुसार डॉ खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत इलाज के बाद अस्पताल को 3 सप्ताह में भुगतान मिलना चाहिए लेकिन इसमें भी कई- कई महीने लग जाते हैं। इस व्यवस्था को भी स्वीकार करने वाले चिकित्सक मौजूदा स्थिति से बेहद परेशान है। उनका कहना है कि अगर वे आयुष्मान योजना के तहत मरीजों का इलाज नहीं करते हैं तो भी उनके खिलाफ कार्यवाही हो सकती है और अगर वे योजना के तहत मरीज को एडमिट करते हैं तो भी यह सुनिश्चित नहीं है कि विभाग से कब तक अनुमति मिल पाएगी। इस दुविधा के बीच मरीजों का इलाज करना हर दिन कठिन होता जा रहा है। इतना ही नहीं इस वजह से अस्पतालों में रोज विवाद की स्थिति भी बन रही है। वही समय पर इलाज ना मिलने से मरीजों की जान भी खतरे में है। सीएमओ और संबंधित विभाग के अधिकारी इस मामले में कुछ भी कहने को तैयार नहीं, जिस कारण से यह भी नहीं पता कि समस्या का निराकरण निकट भविष्य में संभव है भी या नहीं। केंद्र राज्य सरकार के बीच खींचतान का खामियाजा आम मरीज उठा रहा है। इस वजह से पीस रहा मरीज लाचार है, क्योंकि अस्पतालों में महंगा इलाज कराना उसके बस का नहीं है ।खासकर ग्रामीण और गरीब वर्ग आयुष्मान योजना के तहत स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त करता है, जो विभागीय लापरवाही के चलते इससे वंचित होता नजर आ रहा है। इतना ही नहीं जिनका आयुष्मान कार्ड नहीं बना है, पहले उनका नया आयुष्मान कार्ड कुछ ही घंटों में बन जाता था। अब यह प्रक्रिया भी बेहद जटिल हो गई है और नया आयुष्मान कार्ड बनने में भी कई कई दिन लग जा रहे हैं, जिससे भी मरीज और उनके परिजन परेशान हो रहे हैं।

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