चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के दर्शन और उनके हाथ से जल ग्रहण कर पूरा हुआ करवा चौथ का व्रत, इस बार भी सुहागिनों में दिखा गजब का उत्साह, हालांकि बादलों की ओट में छुपे चंद्रमा ने किया खूब परेशान भी

शाम से ही चांद की प्रतीक्षा करती घर की चांद को उस वक्त सुकून आया, जब आसमान पर चौथ का चांद दिखा। पति की लंबी आयु के लिए मनाया जाने वाला करवा चौथ इस वर्ष भी उत्साह के साथ मनाया गया। पहले पंजाब में इसकी धूम हुआ करती थी, लेकिन फिल्मों और टीवी सीरियल की वजह से अब यह घर-घर में लोकप्रिय हो चुका है। वैसे भी महिलाएं त्याग की प्रतिमूर्ति है, जो कभी संतान तो कभी पति के लिए खुद को भूखा प्यासा रख कर उनके लिए मंगल कामना करती है।

इसी क्रम में मनाए जाने वाले महिलाओं के सबसे बड़े पर्व करवाचौथ को लेकर सुहागिनों ने कुछ दिन पहले से ही शुरुआत कर दी थी। मार्केट में खरीदारी से लेकर खुद को सोलह श्रृंगार में सजाने की तैयारी और फिर पूजा की थाल सजाकर समूह में बैठ कर पूजा करने तक महिलाओं में गजब का उत्साह देखा गया। परंपरा अनुसार सास से एक दिन पहले सरगी लेकर व्रत की शुरुआत की गई। महिलाओं ने निर्जला उपवास रखा। कुछ महिलाओं ने घर में , तो कुछ ने सामूहिक पूजा कर करवा चौथ की कथा सुनी। साथ ही गीत गाते हुए पूजा की थाली आपस में घुमायी गयी।


थाली में दीपक, करवा चुनरी के साथ मठरी आदि रखी हुई थी। यह मठरी पूजा के बाद अपनी सास को देने की परंपरा है । इस परंपरा में परिवार को एक सूत्र में बांधने की भावना निहित है। जहां सास बहू को सरगी प्रदान करती है, जिसमें फेनी सहित कई पकवान होते हैं । इसे एक दिन पहले खाकर ही व्रत की शुरुआत की जाती है। अर्थात इस व्रत में पति ही नहीं सास की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। जिसके बाद दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को थाल सजाकर सामूहिक रूप से पूजा अर्चना के बाद चंद्र देव को अर्घ्य देकर इसका पारण किया गया। कई स्थानों पर तो पत्नी के प्रति समर्पण का भाव प्रदर्शित करने पतियों ने भी दिनभर उपवास रखा।

एक दूसरे के प्रति इसी समर्पण से ही पति-पत्नी का मधुर रिश्ता और मजबूत और गाढ़ा होता है। भारतीय परंपराओं में जितने भी पर्व है उसमें कोई ना कोई संदेश और मूल मंत्र छुपा हुआ है। करवा चौथ का पर्व भी जहां पति पत्नी के शिथिल पड़ते रिश्ते में नई ऊर्जा भरने का कार्य करता है तो वही दिनभर निर्जला व्रत से एक दूसरे के प्रति समर्पण भी प्रकट होता है।


इस बार आसमान पर बादल होने से चांद की प्रतीक्षा कुछ लंबी ही हो गई , लेकिन फिर बादलों की ओर से जब चंदा मामा ने दर्शन दिए तो फिर चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी की ओट से अपने चांद यानी कि पति के दर्शन के बाद उनके हाथों से पानी पीकर सुहागिनों ने करवा चौथ का व्रत पूरा किया। जिसके बाद एक दूसरे को तोहफे देने, साथ में बाहर जाकर घूमने-फिरने और डिनर का सिलसिला शुरू हो गया। अब परंपराओं के साथ आधुनिकता भी करवा चौथ के साथ अभिन्न रूप से जुड़ती जा रही है। यही लचीलापन सनातन धर्म की असली ताकत भी है।

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