आधा घंटा पहले पहुचकर भोजन बना रहे टीचर,हड़ताल पर रसोइया

पखांजूर से बिप्लब कुण्डू-18.9.22

पखांजूर
रसोइयों की हड़ताल के चलते जहां अधिकांश शालाओं के चूल्हे ठंडे पड़े है । वहीं नव गोंडाहूर प्राथमिक शाला के शिक्षकों ने शाला में पढ़ाई के साथ रसोई की भी जिम्मेदारी संभाल ली है । शिक्षक पहले शाला में मध्याह्न भोजन का संचालन कर रहे समूह और इसके बाद गांव में महिलाओं को खाना बनाने का प्रस्ताव दिया , लेकिन जब कोई तैयार नहीं हुआ , तो शाला के शिक्षकों ने ही यह जिम्मेदार संभाल ली । रोजाना शिक्षक स्कूल आधे घंटे पहले पहुंच खाना बनाते हैं और इसके बाद समय से स्कूल का संचालन भी कर रहा है । प्रदेश भर में 7 सितंबर से रसोइयों द्वारा अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल में है । इसके चलते अधिकांश शालाओं में मध्यान्ह भोजन का संचालन बंद पड़ा है । सरकार द्वारा रसोइयों को इतना कम वेतन दिया जाता है कि इस वेतन में कोई और काम करने को तैयार नहीं है । इस कारण गांव में कोई महिला भी खाना बनाने को तैयार नहीं हो रही । इसी समस्या के चलते नवा गोंडाहूर में पदस्थ शिक्षक भुवन वर्मा को गांव में कोई खाना बनाने के लिए नहीं मिला । इस पर उन्होंने स्वयं ही अब रसोइया का काम संभाल लिया है । इस काम में शाला में पदस्थ एक शिक्षिका शांति वीसी भी सहयोग कर रही है । शाला के प्रधान पाठक भुवन वर्मा ने बताया उन्हें पहले से पता था कि 7 सितंबर से रसोइया हड़ताल पर जाने वाले हैं । इसस कारण वे पहले ही इसकी तैयारी कर लिए थे । पहले उसने शाला में मध्यान्ह भोजन का संचालन कर रहे समूह की महिलाओं से संपर्क किया , लेकिन वे खाना बनाने को तैयार नहीं हुई । इसके बाद वे गांव में महिलाओं को खोजा पर कोई 50 रुपए रोजी पर तैयार नहीं था । इस दौरान वे अपनी जेब से और 50 रुपए देने को कहा । इसके बाद भी कोई खाना बनाने को तैयार नहीं हुआ । इसके बाद उनके पास कोई और विकल्प नहीं था । इस कारण वे स्वयं खाना बना रहे हैं । उन्होंने बताया उनके यहां 24 छात्र है , अगर शाला में मध्यान्ह भोजन बंद कर दिया जाता , तो शाला में आधे छात्र भी नहीं आते । ऐसे में स्कूल में शत प्रतिशत उपस्थिति के लिए शाला में मध्याह्न भोजन बनना जरूरी था । उन्होनें बताया उनके स्कूल में खाना बनाने के लिए दो बड़े – बड़े कूकर है । इसमें वे दाल – भात बना देते है और बर्तन मांजने का काम सफाई कर्मी कर देती है । इसके लिए वे शाला खुलने के आधे घंटे पहले आ जाते हैं । इस आधे घंटे में पहले दाल – भात कूकर से बना देते हैं । इसके बाद शाला संचालक के काम में लग जाते है।

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