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पूर्णतः भगवान गणेश जी को समर्पित बिलासपुर के एकमात्र गणेश मंदिर रेलवे क्षेत्र स्थित श्री सुमुख गणेश मंदिर में गणेश चतुर्थी पर पारंपरिक रूप से गजानन की पूजा अर्चना की गई । हर वर्ष की तरह इस बार भी यहां पांच दिवसीय आयोजन किया जा रहा है । पहले दिन गणपति हवन, अभिषेक , सहस्त्रनाम अर्चना महादीप आराधना दर्शन और प्रसाद का वितरण किया गया। यहां प्रतिदिन विभिन्न आयोजन किए जाएंगे। वही मूषक वाहन पर सवार होकर भगवान नगर परिक्रमा पर भी निकलेंगे।
प्रथम आराध्य भगवान गणेश की पूजा अर्चना करते हुए यहां प्रतिमा पर चंदन का अलंकार किया गया। बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन और पूजा अर्चना के लिए मंदिर पहुंचे। बिलासपुर के रेलवे क्षेत्र के कंस्ट्रक्शन कॉलोनी तारबाहर स्थित इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। कोरोना के 2 साल बाद आयोजन को लेकर विशेष उत्साह देखा जा रहा है । दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित इस मंदिर का निर्माण 1956 में कॉलोनी के आसपास बने 800 क्वार्टर में रहने वाले दक्षिण भारतीयों द्वारा किया गया। 1961 में गणेश चतुर्थी पूजा के दौरान तमिलनाडु के तंजाउर जिले से विशेष रूप से काले ग्रेनाइट पत्थर की 3 फीट ऊंची प्रतिमा विराजित की गई। गणेश चतुर्थी के बाद प्रतिमा का विसर्जन करने की बजाय यही एक पेड़ के नीचे प्रतिमा को स्थापित कर लोग पूजा अर्चना करने लगे।
1963 में कॉलोनी के भक्तों ने अस्थाई कवर शेड बनवाया। फिर तमिल समाज द्वारा 1967 में 3000 स्क्वायर फीट में दक्षिण भारतीय शैली में सुमुख गणेश मंदिर का निर्माण कराया गया ।इसके लिए विशेष रूप से तमिलनाडु से कारीगर बुलाए गए थे। मंदिर में 1977 में हॉल का निर्माण कराया गया था। बताया जाता है कि यह शहर का पहला गणेश मंदिर है। यहां दक्षिण भारतीय पुजारी द्वारा दक्षिण भारतीय शैली में पूजा अर्चना की जाती है। वैसे तो क्षेत्र के सभी श्रद्धालु भगवान गणेश की पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं लेकिन यहां विशेषकर दक्षिण भारतीय वह भी तमिल भाषी बड़ी संख्या में आते हैं। यहां भगवान का अभिषेक तिल के तेल से किया जाता है । 12 साल के अंतराल में मंदिर का कुंभ अभिषेकम करने की परंपरा है। हर वर्ष यहां पांच दिवसीय आयोजन किया जाता है। इस दौरान भी दक्षिण भारतीय परंपराओं के दर्शन यहां होते हैं। गणेश पंडालों में जहां पूजा अर्चना देर शाम तक आरम्भ होती है तो वहीं यहां नियमानुसार तड़के से ही लंबोदर की पूजा अर्चना आरंभ हो गई।