अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति आचार्य डाॅ. अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी जी की अध्यक्षता एवं कुलसचिव डाॅ. सुधीर शर्मा जी के सफल निर्देशन में ‘‘राष्ट्र, राष्ट्रीयता एवं युवा’’ विषय पर विशिष्ट व्याख्यान एवं विचार संगांेष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। व्याख्यान का उद्घाटन स्वामी अभिषेक ब्रह्मचारी जी ने किया । इस अवसर पर आदरणीय कुलसचिव महोदय द्वारा स्वागत भाषण प्रस्तुत कर मंच पर उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया गया। तत्पश्चात् कार्यक्रम के मुख्य अतिथि युवा चेतना के राष्ट्रीय संयोजक श्री रोहित कुमार सिंह द्वारा अपने उद्बोधन में भारत के स्वर्णम अतीत का बोध अपने ओजस्वी भाषा में वर्णित किया। उन्होने देश के युवाओं को संबोधित करते हुए युवाओं से भरी भारत भूमि में राष्ट्रीयता की भावना अपने जागृत करने का प्रयास अपने सारगर्भित उद्बोधन से किया और कहा की भारत एक राष्ट्र है तथा भारतीयता विचार धारा, जो संसार की सभी विचार धारा से सर्वश्रेष्ठ, उत्तम, सर्वोत्तम है। इसी राष्ट्रीयता का भाव लिये राम वन-वन गमन करते है, राम ही भारतीयता के परिचायक है राष्ट्रीयता ने ही सूट-बूट रहे गांधी को अपने देश, लोगों और व्यवस्थाओं के प्रति चिंतन कर महात्मा बना दिया।
जिनके द्वारा जगह-जगह सुशासन हेतु राम राज्य की बाते स्वीकार्य की गई है। श्री रोहित जी ने उपस्थित लोगो से भारत के गौरव, प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित कर भारत को सोने के चिड़िया, विश्वगुरू बनाने का आवाहन एवं वैदिक गणित का प्रचार होने की आवश्यकता पर जोर दिया। विचार गोष्ठी के क्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय ने अपने उदबोधन में मुख्य वक्ता की बातो को और स्पष्टता से रखा और राष्ट्र क्या है?, राष्ट्रीयता क्या है? इसे कैसे आज के युवा अपने जीवन में आत्मसात कर सकते है, जैसे विषयों पर अपने विचार व्यक्त किया। उन्होने आध्यात्म एवं जीवन मूल्यों का राष्ट्रवाद में महत्व पर अपने विचार व्यक्त किया साथ ही उन्होने कहा की हमारे प्राचीन ऋषियों के ‘‘वासुदैव कुटुंबकम’’, सम-गच्छामी एवं सर्वे भवंतु सुखिना का विचार कही और नहीं भारत में है ऐसे विचारों को वर्तमान युग की सार्थकता से परिचय कराया। इसके साथ ही संक्षिप्त रूप में स्वामी जी के उत्कृष्ठ कार्यो का परिचय साझा किया। कार्यक्रम के अगले चरण में ‘‘स्वामी श्री अभिषेक ब्रम्हाचारी जी‘‘ ने विश्वविद्यालय परिवार के समक्ष संस्कृत में वैदिक गान के माध्यम से अपना शुभाशीर्वाद प्रदान किया। स्वामी जी ने अपने विचारो में भारत की क्षेत्रीय, भाषा, ज्ञान, विचार, संस्कृति एवं अनेक विविधता में एकता विषय को समाहित किया। उन्होने बताया कि किस प्रकार पूर्व से ही भारत के नागरिकों एवं महापुरूषों ने समय≤ पर अपनी जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र एवं लिंगभेद से उपर उठकर राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।
लार्ड मैकाले एवं उनके द्वारा अनुमोदित ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का भारतीयों पर हुए प्रभावों का वर्णन किया और कहा की व्यक्ति का व्यक्तित्व ही देश, समाज और राष्ट्र निर्माण की दिशा तय करता है। कार्यक्रम अतिम सत्र में डाॅ. एच.एस. होता ने मंचासीन महानुभाओं के साथ सभी उपस्थितो के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। उक्त कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय व्याख्यान माला प्रकोष्ठ के संयोजक श्री धर्मेन्द्र कश्यप, सदस्य डाॅ. रश्मि गुप्ता द्वारा किया गया। उक्त कार्यक्रम में विश्वविद्यालय से उप-कुलसचिव श्रीमती नेहा यादव, वित्ताधिकारी एलेक्जेडर कुजूर, एन.एस.एस. से डाॅ. मनोज सिन्हा, विश्वविद्यालय अध्ययन शाला से श्री सौमित्र तिवारी, श्री यशवंत कुमार पटेल, डाॅ. सुमोना भट्टाचार्या, डाॅ. सीमा बेलोरकर, सुश्री श्रिया साहू, श्री हामीद अब्दुल्ला, श्री हैरी जार्ज, डाॅ. लतीका भाठिया, डाॅ. कलाधर, शहर के गणमान्य नागरिक, प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मिडिया के प्रतिनिधियों के साथ अधिकारी, कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएं आधिक्य संख्या में उपस्थित रहें।