
शुक्रवार को देवों के देव महादेव शिव की आराधना का महापर्व महाशिवरात्रि श्रद्धा उल्लास के साथ मनाया गया। वैसे तो चंद्रमास का हर 14वा दिन शिवरात्रि है लेकिन वर्ष में 1 दिन का निर्धारण महाशिवरात्रि के रूप में है। शुक्रवार को एक सौ 17 वर्षों बाद शनि और शुक्र के दुर्लभ योग के बीच महाशिवरात्रि का पर्व मनाया गया। मान्यता है कि इस योग में शिव पूजा करने पर शनि गुरु शुक्र के दोषों से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है। वैसे तो आदि देव महादेव की उत्पत्ति अज्ञात है फिर भी कुछ भक्त इसे भगवान शिव का जन्मोत्सव मानते हैं तो वहीं दूसरी मान्यता यह है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। लेकिन यह सर्वमान्य है कि महाशिवरात्रि पर की गई पूजा अर्चना से सभी मनोकामनाएं भगवान शिव पूर्ण करते हैं।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को बिलासपुर में भी महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया गया। यहां के सभी मंदिरों में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा नजर आया। श्रद्धालु अपने साथ पूजन सामग्री लेकर मंदिर पहुंचे और यहां कतार में लगकर भोले भंडारी का जलाभिषेक किया। मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर ही सृष्टि का आरंभ हुआ था ।सृष्टि का आरंभ शिव के ही रूप अग्नि लिंग से हुआ था। दंतकथा है कि जब समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला तो उसे भगवान शिव ने ग्रहण कर विश्व को बचाया, लेकिन इस विष के प्रभाव से उनका पूरा शरीर तपने लगा ।इसलिए शिवलिंग पर लगातार जल अर्पित करने की परंपरा है ताकि उनकी जलन, पीड़ा शांत हो। वही देव चिकित्सकों ने भगवान शिव को विष का प्रभाव दूर करने के लिए रात भर जागने की सलाह दी थी। यही कारण है कि महाशिवरात्रि पर लोग रात्रि जागरण करते हैं।
महाशिवरात्रि पर मंदिरों में पहुंचे श्रद्धालुओं ने भोले भंडारी का जलाभिषेक किया। इसके अलावा शिवलिंग पर उनको प्रिय दू,ध दही, शहद, पंचामृत, आक का फूल, धतूरा बेल पत्र, नारियल आदि अर्पित किए गए। भगवान शिव को पवित्र स्नान कराया गया । भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय बेल और बेल के पत्ते अर्पित किए गए । वहीं श्रद्धालुओं ने धूप दीप दिखाकर उनकी आरती की।
